Politico Web : रिमोट कंट्रोल सुधारिए, बॉलीवुड खुद-ब-खुद सुधर जाएगा

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Politico Web : रिमोट कंट्रोल सुधारिए, बॉलीवुड खुद-ब-खुद सुधर जाएगा

बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन में भारत की भूमिका के संदर्भ में बांग्लादेश के मुस्लिम विद्वान डॉ. सलाम आजाद ने अपनी पुस्तक Contribution of India in the War of Liberation of Bangladesh में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तानी जनरल टिक्का खान ने कहा था, “हिंदू लड़कियों के गर्भ में पाकिस्तान के बीज बोओ, भारत पर हमारी ओर से बिना किसी ताकत का प्रयोग किए कब्जा कर लिया जाएगा।”

उपर्युक्त तथ्य भारत में इस्लामीकरण की घृणित रणनीति को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है। यदि उपरोक्त संदर्भ में वर्तमान के बॉलीवुड को देखा जाए तो पाएंगे कि सभी फिल्मों में अधिकांश हीरो मुस्लिम ही हैं और उनमें से अधिकांश की पत्नियां हिंदू हैं। ऐसे हीरोज की लंबी फेहरिस्त मिल जाएगी।

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उनमें से कुछ हैं-
1. नवाब मंसूर अली खान पटौदी ने शर्मिला टैगोर से शादी की और धर्म परिवर्तन किया।
2. शाहरुख खान ने गौरी से की शादी।
3. आमिर खान ने दो शादियां की, उनकी पहली पत्नी रीमा दत्ता और उनकी दूसरी पत्नी किरण राव हैं, दोनों धर्मांतरित हिंदू हैं।
4. सैफ अली खान पटौदी ने दो बार शादी की, पहली अमृता सिंह और दूसरी करीना कपूर, दोनों ने हिंदू धर्म परिवर्तन किया।
5. फरहान अख्तर ने हिंदू लड़की अधुना भभानी और फिर शिवानी डांडेकर से शादी की और धर्म परिवर्तन किया।
6. फरहान आज़मी ने एक हिंदू लड़की आयशा टाकिया से शादी की और धर्म परिवर्तन किया।
7. अमृता अरोड़ा ने मुस्लिम युवक शकील लद्दाख से शादी की और इस्लाम कबूल कर लिया।
8. सलमान खान के भाई अरबाज खान ने मलाइका अरोड़ा से शादी की और उनका धर्म परिवर्तन किया।
9. सलमान खान के छोटे भाई सोहेल खान ने एक और हिंदू लड़की सीमा सचदेव से शादी की और उनका धर्म परिवर्तन कराया।
10. आमिर खान के भतीजे इमरान खान ने एक अन्य हिंदू लड़की अवंतिका मलिक से शादी की और धर्म परिवर्तन किया।
11. सलमान खान के पिता सलीम खान ने ईसाई युवती हेलेन से शादी की और धर्म परिवर्तन किया।
12. फिरोज खान के बेटे फरदीन खान की एक हिंदू पत्नी नताशा भी है।
13. इरफान खान ने एक और हिंदू लड़की सुतापा सिकदर से शादी की और धर्म परिवर्तन किया।
14. नसीरुद्दीन शाह ने रत्ना पाठक से शादी की और इस्लाम धर्म स्वीकार कराया।

15. संजय खान के बेटे जायद खान ने हिंदू लड़की मल्लिका पारेख से शादी की और धर्म परिवर्तन किया।

1960-70 के दशक तक मुस्लिम अभिनेता खुद के हिंदू स्क्रीन नाम रखते थे क्योंकि उन्हें डर था कि अगर दर्शकों को पता चलेगा कि वे मुस्लिम हैं, तो वे उनकी फिल्में देखने नहीं आएंगे।

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उनमें से सबसे प्रसिद्ध कुछ हैं-

1. युसूफ खान जिन्होंने हिन्दु स्क्रीन नाम का इस्तेमाल किया और दिलीप कुमार के नाम से जाने जाते हैं।
2. महज़बीन अली बख्श को मीना कुमारी के नाम से जाना जाता है।
3. मधुबाला के नाम से हिंदू दर्शकों का दिल जीतने वाली मुमताज बेगम थीं।
4. बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी जिन्हें हम सभी जॉनी वॉकर के नाम से जानते हैं। (यहाँ एक ईसाई स्क्रीन नाम का उपयोग किया जाता है)।
5. हामिद अली खान अपने स्क्रीन नाम अजीत से प्रसिद्धि पाई।
6. सायरा खान अपने स्क्रीन नाम रीना रॉय से अधिक लोकप्रिय हैं।
7. फरहान अब्राहम ईसाई स्क्रीन नाम जॉन अब्राहम का उपयोग कर रहे हैं।
वास्तव में पिछले 60 वर्षों में क्या हुआ है कि मुस्लिम कलाकारों को अब हिंदू स्क्रीन नामों का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है? इसके बजाय आज मुस्लिम नाम ही ब्रांड बन गए हैं।
क्या यह मुस्लिम कलाकारों की मेहनत का नतीजा है ? या हिन्दुओं को सामाजिक और मानसिक तौर पर जबरन उदारमना बना दिया गया।
बालीवुड में आप एक और ट्रेंड देख सकते है। ऐसा क्यों है कि बॉलीवुड की अधिकांश फिल्मों में हीरो मुसलमान होते हैं और हीरोइन हिंदू लड़कियां होती हैं? इसका जवाब है कि फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा फाइनेंसर दाऊद इब्राहिम ऐसा ही चाहता है।

हम सभी जानते हैं कि टी-सीरीज़ के मालिक गुलशन कुमार ने फिल्मों में भजन और प्रार्थनाओं को शामिल कराने का जो सिलसिला चालू किया था जो दाऊद को बहुत ही नागवार गुजरा और गुलशन कुमार को जिसकी कीमत अपनी हत्या से चुकानी पड़ी थी।

लेकिन एक बात और है जिसकी पुष्टि तो नहीं हो सकी है पर चर्चा है कि अगर कोई फिल्म निर्देशक किसी मुसलमान को हीरो के रूप में साइन करता है, तो वह दुबई से बहुत ही साधारण शर्तों पर या नाममात्र के ब्याज पर कर्ज लेने का हकदार हो जाता है। इकबाल मिर्ची और अनीस इब्राहिम जैसे देशद्रोही एजेंट सेटिंग का काम करते हैं।

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वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि अगर हिंदी फिल्म में सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान, नसीरुद्दीन शाह, फरहान अख्तर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और फवाद खान जैसे एक्टरों में से कोई भी नाम हो तो सफलता गारंटीड हो। अक्षय कुमार, अजय देवगन और ऋतिक रोशन उनके लिए कांटे बने हुए हैं।

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प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों तब्बू, हुमा कुरैशी, सोहा अली खान और ज़रीन खान का करियर जबरन खत्म कर दिया गया क्योंकि वे मुसलमान हैं और इस्लामिक मुल्ला उनके इस काम को मज़हब विरोधी मानते हैं।

Salim Javed
अगर पटकथा लेखक सलीम- जावेद की जोड़ी हैं तो फिल्म को सफल बनाना ही होगा और यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार माना जाता था। सलीम जावेद की प्रत्येक कहानी में मूल रूप से निम्नलिखित पात्र होते ही थे-1. अच्छा ईमानदार मुसलमान।
2. पाखंडी ब्राह्मण 3. क्रूर हिन्दु राजा। 4. राजा (क्षत्रिय) का बलात्कारी पुत्र। 5. काला बाजारी में लिप्त वैश्य।
6. राष्ट्रविरोधी हिंदू नेता। 7. भ्रष्ट पुलिस अधिकारी।
8. गरीब दलित महिला। ये फिल्म की प्राथमिक शर्तें होती थीं।

इसके बाद ऐसी और भी दूसरी शर्तें होती थी जैसे- गीतकार और संगीतकार मुसलमान होना चाहिए। जो फिल्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण चरण में मौला की प्रशंसा करने वाला गीत ठूंस सके और उसका भी पार्श्व गायक पाकिस्तान से होना चाहिए।

वहीं अंडरवर्ड के लोगों के इशारे पर उनके गुर्गे पत्रकार अलग-अलग टीवी चैनलों पर बैठकर धर्मनिरपेक्षता की तारीफ करते हैं जबकि वे खुद अलग-अलग हिंदू लड़कियों से शादी करते हैं और उनका जबरन धर्म परिवर्तन करते हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या देश में मुस्लिम लड़कियों की कमी पड़ गई है ?

अगर इसे प्रेम का नाम भी दिया जाए तो उनमें से किसी को भी हिंदू लड़कियों के लिए अपना प्यार दिखाने के लिए हिंदू धर्म में परिवर्तित होते नहीं पाएंगे। कोई हो तो जरूर बताइएगा।

वास्तविकता तो यह है कि बॉलीवुड फिल्में अंडरवर्ल्ड के काले धन को सफेद करने का एक जरिया रही हैं। भारतीय अंडरवर्ल्ड में दाऊद एंड कंपनी के दबदबे को देखते हुए इन फिल्मों में कुछ खास तरह के निर्देशक, संगीत निर्देशक और गीतकार होते हैं। नतीजतन, बॉलीवुड न केवल इस्लाम को धीरे-धीरे बढ़ावा दे रहा है बल्कि हिंदू धर्म को भी बदनाम कर रहा है। @GemsOfBollywood नाम का एक ट्विटर हैंडल व्यवस्थित रूप से इन तथ्यों को उजागर कर रहा है।

फिल्म विक्टोरिया नंबर 203 में लेखक एहसान रिज़वी ने गीत तू न मिली तो हम जोगी बन जाएंगे में जानबूझकर ढोंगी साधु के संदर्भ को जबरन जोड़ दिया। फिर गीतकार इंदीवर जबरन धार्मिक संदर्भों को जोड़कर लिखते हैं –

” आ तेरी तकदीर बता दूं
आ तेरी तस्वीर बता दूं
चीर के अपना सीना दिखा दूं
राम बसे हनुमान के दिल में
तू मेरे दिल की महफ़िल में
तुझको अगर हो कोई शंका
जला दे अपने दिल की लंका।

फिल्म शोले में बीरू और बसंती प्रेमालाप व छेड़छाड़ के सीन के लिए मंदिर का इस्तेमाल करते हैं।यह कितना उचित है। क्या सलीम जावेद की जोड़ी इस सीन के लिए किसी और के धर्मस्थल के उपयोग की कल्पना भी कर सकते थे। इमाम साहब को पूरी तरह धर्मावलंबी दर्शाया गया है।

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ज्यादातर धार्मिक फिल्मों में देवर्षि नारद को इधर की बात उधर करने वाले मसखरे के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। नारद मुनि शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा के छः पुत्रों में से एक है जिन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया । वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते है। साथ ही वे भगवान विष्णु के अवतार हैं |श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है – देवर्षीणाम् च नारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। पर बालीवुड मे बनी फिल्मों में तो वे ऐसे ही रहेंगे।

फिल्म भाग मिल्खा भाग में गीतकार प्रसून जोशी ने मिल्खा व उसकी प्रेयसी पर बंटवारे के बाद के काल में फिल्माए गीत में जबरन अलिफ अल्लाह, अलिफ अल्लाह, अल्लाह अल्लाह हू को डाल दिया। स्टोरी की मांग हो या न हो पर विदेश में बैठे अंडरवर्ड डान की मांग जरूर रही होगी।

फिल्म संजू में संजय दत्त के निगेटिव कैरेक्टर को जबरन सुधारने का काम किया गया। राजकुमार हीरानी ने पूरी फिल्म में कहीं भी यह तथ्य उजागर नहीं किया कि मुम्बई बम कांड में दाऊद का हाथ था बल्कि दिखाया कि संजू का हिन्दू माफिया से संपर्क था और इसी कारण वह एके 56 रखने के मामले में फंस जाता है। इससे साफ जाहिर होता है कि बालीवुड पर अंडरवर्ड का कितना खौफ रहता है।

आमिर खान की फिल्मों में हिन्दु देवी देवताओं का मजाक न उड़ाया जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता। चाहे थ्री ईडियट्स हो या पीके या कोई और फिल्म।

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आमिर खान ने हमारे समाज की बुराइयों को उजागर करने के लिए सत्यमेव जयते शो बनाया। इसने सभी प्रमुख बुराइयों को कवर किया – जैसे कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, भारत में प्रेम विवाह और आनर किलिंग्स, जाति प्रथा व छुआछूत, मेडिकल क्षेत्र में धांधली, बच्चों का यौन शोषण, शारीरिक अपंगता, घरेलू हिंसा, शराबखोरी, बुढ़ापे से जुड़ी समस्याएं, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म, मानसिक स्वास्थ्य आदि आदि।

इन कुरीतियों में से पहली चार सिर्फ हिन्दू समाज से जोड़ कर ज्यादा देखी जाती हैं। क्या आपने यहां कुछ असामान्य देखा या महसूस किया?
इन 23+ एपिसोड में से आमिर खान ने मुस्लिम समाज की बुराइयों पर एक भी एपिसोड नहीं बनाया।
क्यों? क्या इसका मतलब यह है कि मुस्लिम/ईसाइयों में कोई बुराई/कदाचार नहीं है?

निर्माता किसी भी प्रकार की विवादास्पद बाधा नहीं चाहते थे जो इस्लामी / ईसाई क्रोध के कारण उनके शो को खराब कर सकती थी।

जुलाई 2018 में अभिनेत्री निदा खान के खिलाफ इसलिए फतवा जारी हो गया था क्योंकि उसने मुसलमान होते हुए तीन तलाक और निकाह हलाला जैसे संवेदनशील मसलों पर विरोध प्रकट किया था। जवाब में निदा ने भी कहा कि फतवा जारी करने वालों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए।

बॉलीवुड में इस्लाम को महिमामंडित करने और हिंदू संस्कृति का मजाक उड़ाने के दो कारण दिखते हैं- पहला व्यापार में हानि का डर और दूसरा हिन्दुओं को निशाना बनाकर व्यापार में वृद्धि हासिल करना।

बॉलीवुड का भारत और विदेशों में बहुत बड़ा दर्शक वर्ग है। विदेशों में पाकिस्तान, खाड़ी और मध्य-पूर्व ठिकाने महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा यदि वे भारत में मुसलमानों को नाराज करते हैं तो वे अपने व्यवसाय को जोखिम में नहीं डाल सकते।

बॉलीवुड मुस्लिमों के गुस्से का जोखिम नहीं उठा सकता, इसका कारण यह है कि उन्होंने अतीत में जो अनुभव किया है।
बॉलीवुड निर्देशकों को बहुत पहले ही समझ में आ गया था कि अगर इस्लाम को उसके असली रंग में सच्चाई के साथ पेश किया जाता है, तो अनेक मुसलमान इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसलिए, वे इस्लाम का काला हिस्सा नहीं दिखाते हैं जैसे तीन तलाक, लैंगिक असमानता, बाल-विवाह आदि। कुछ निर्देशकों ने कोशिश की लेकिन मुस्लिम समुदाय के भारी विरोध का सामना करना पड़ा।

दूसरा कारण – हिंदुओं को निशाना बनाकर व्यापार में वृद्धि को समझाना बहुत आसान है। हिंदू हमेशा से आसान निशाना रहे हैं। उनके देवी-देवताओं, उनकी संस्कृति, परंपराओं, उनकी धार्मिक मान्यताओं का मजाक उड़ाएं और आप आसानी से अपनी फिल्म को सौ करोड़ के ऊपर के क्लब में आसानी से ले जा सकते हैं।

ऐसा इसलिए है क्योंकि एक पारंपरिक हिंदू को अपने स्वयं के विश्वासों की आलोचना करना सिखाया जाता है, साथ ही दूसरों को धार्मिक आधार पर चोट पहुंचाने के लिए काम नहीं करता।

आपके कई हिंदू मित्र चर्च या मस्जिद जा रहे हैं और गर्व के साथ सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं जैसे – “फलानी चर्च जाने के बाद शांति का अहसास हुआ” या “हाजी अली दरगाह या अजमेर दरगाह इतनी शांतिपूर्ण जगह है”। क्या आपने किसी मुस्लिम को किसी मंदिर या गुरूद्वारे जाते देखा या सुना है। जब जाएंगे ही नहीं तो सोशल मीडिया पर फोटो का तो सवाल ही उठता। यही है वह अंतर जो हिन्दु और मुसलमान को अलग करता है।

बॉलीवुड में सारा कुछ मुस्लिम ही कर रहे हैं, ऐसा कतई नहीं है। हमारे ही समाज के भाई उनके साथ मिलकर हमारा नुकसान कर रहे हैं। हमारे लिए यह ज्यादा बड़ी चिंता की बात है। कुल मिलाकर यह बॉलीवुड ही है जिसने हिंदुओं को उस अपराध का दोषी बनाया है जो उन्होंने कभी नहीं किया है और वर्तमान में हिंदू “हिंदू होने” के बोझ के साथ दबा है किसी बाहुबली के इंतजार में।