मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल से ज्यादा का समय है, लेकिन इससे पहले कांग्रेस के दो दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ (Former CM Kamal Nath) और दिग्विजय सिंह (Former CM Digvijay Singh) के बीच दूरियां निरंतर बढ़ती ही जा रहीं हैं। दोनों नेताओं के बीच मन की खटास धरना स्थल पर तू तू मैं मैं के बाद अब लोकतंत्र के मंदिर यानी विधानसभा सदन के भीतर तक पहुंच गई है। खुले तौर पर नजर आने वाली गतिविधियों पर मां बेटे वाला आलाकमान आखिर ओंठ सिलकर चुप क्यों बैठा हुआ है? इन हालात को देखकर अब तो पार्टी के निचले स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं तक में चिंताएं घर करने लगी है।
मार्च 2020 से ही दोनों ही गुटों ने सरकार गिराने के लिए जिम्मेदारी का ठीकरा एक दूसरे के सिर पर फोड़ने की हर संभव कोशिश की। फिर जो बात बिगड़ी तो बिगड़ती ही चली गई और इसी साल जनवरी में कमलनाथ के एतिहासिक जुमले ‘That’s true’ ने तो कफन में एक और कील जड़ दी। प्रतिष्ठा की इस लड़ाई में निश्चित मानिए कांग्रेस का बंटाधार होना तय नजर आ रहा है।
मध्य प्रदेश विधानसभा में बजट सत्र के पहले दिन सोमवार, 7 मार्च को राज्यपाल मंगूभाई पटेल के अभिभाषण का बहिष्कार कर प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने किसके कहने पर कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोला है, यह किसी से छिपा नहीं है। जीतू पटवारी और दिग्विजय सिंह के आत्मीय रिश्ते जगजाहिर हैं।जीतू पटवारी द्वारा राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार के निर्णय से मप्र कांग्रेस पार्टी ने किनारा कर लिया है। नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ कहते हैं कि यह पटवारी का फैसला था, पार्टी का नहीं। सदन की गरिमा बनी रहना चाहिए।
कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई का रायता जब सदन के भीतर फैल ही गया तो शातिर राजनेता की तरह मौके का फायदा उठाते हुए मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कोई चूक न करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के इस कदम की भूरि- भूरि प्रशंसा करते हुए आभार तक जता डाला। पुरानी कहावत तो याद ही होगी दो बिल्लियों की लड़ाई में फायदा किसका होता है।
अंदरखाने की खबर है कि दिग्विजय सिंह के साथ मन मुटाव के बाद से कमलनाथ का भी फ्रस्ट्रेशन लेवल लगातार बढ़ता जा रहा है। आयुजनित स्वाथ्य संबंधी बाध्यताओं के साथ साथ भविष्य को लेकर अनिश्चित्ताओं के चलते इन दिनों कमलनाथ ने लोगों से मिलना भी कम कर दिया है।इस कारण वे पार्टी में अलग थलग भी पड़ते जा रहे हैं। दूसरी तरफ गोटियां फिट करने में माहिर दिग्गी राजा अपना घेरा लगातार कसते जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह, उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव के बेटे अरुण यादव समेत अनेक नेताओं को अपने गुट में करके दिग्विजय ने शुरूआती बढ़त तो ले ली है। अब जीतू पटवारी को भी कमलनाथ को बताए बगैर राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार करके जो “पालिटिकल माइलेज” चाहिए था वह अपेक्षा अनुरूप मिल भी गया है।
आपको याद होगा इसी साल जनवरी में धरना स्थल पर मिले दोनों दिग्गज नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की तंज व तल्खी भरा वीडियो वायरल हुआ था। सोशल मीडिया पर वायरल 21 सेकंड के इस वीडियो ने मप्र कांग्रेस की नींव को हिला कर रख दिया था। वायरल वीडियो में कमलनाथ दिग्विजय सिंह से कहते हैं कि ये बात आपको बतानी चाहिए थी। चार दिन पहले ही हम उनसे मिले थे। इस पर दिग्विजय सिंह जवाब देते हैं कि ये बात आपको बताने की जरूरत नहीं थी। इसके बाद कमलनाथ कहते हैं कि मैं छिंदवाड़ा चला गया। दिग्विजय सिंह फिर कहते हैं कि हम तो डेढ़ महीने से उनसे( सीएम से) मिलने के लिए समय मांग रहे हैं। इसके बाद दिग्विजय सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री से मिलने के लिए मैं आपके थ्रू समय की मांग करूं। कमलनाथ फिर तल्ख लहजे में तंज कसते हुए ‘That’s true’ कह कर अपनी सुप्रीमेसी की मोहर लगा दी थी।
पिछले माह फरवरी में भोपाल में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक के साथ होने वाली बैठक में भी दिग्विजय सिंह ने अपने कारिंदों के साथ न पहुंचकर स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि मुकुल वासनिक जी, अब बातचीत की गुंजाइश मत खोजिए।
उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अपनी राजनीतिक धुरंधरता को लगातार पैना बनाते हुए कांग्रेस के अंदरूनी हालात पर निगाह रखे हुए हैं। कमलनाथ- दिग्विजय सिंह के बीच धधक रही आग किसी भी हाल में मंद न पड़े, यह भी सुनिश्चित करते रहते हैं। चूंकि मप्र में नवंबर 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं तब भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है।
शिवराज सिंह चौहान खेमे का मानना है कि दोनों कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्रियों में यदि तुलना की जाए तो सीएम की पहली पसंद कमलनाथ ही होंगे और यह दोनों नेताओं की पिछले अर्सों में हुई मुलाकातों व उस दौरान दोनों की बाडी लैंगुएज से भी महसूस किया जा सकता है।
21 जनवरी को भोपाल स्टेट हैंगर में सीएम शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बीच अचानक हुई भेंट के भी राजनीति क्षेत्रों में काफी निहितार्थ निकाले जाते जाते रहे हैं। हालांकि कमलनाथ का दावा है यह मुलाकात अचानक हुई थी। छिंदवाड़ा से वापसी के दौरान स्टेट हैंगर पर उनकी मुलाकात सीएम शिवराज सिंह चौहान से हुई थी। पर यहां इस तथ्य को नहीं भूला जा सकता है कि यह औचक मुलाकात लगभग आधे घंटे तक चली और इस कारण सीएम शिवराज सिंह के देवास के आगामी कार्यक्रम लेट हो गए थे।
इस दौरान के जो वीडियो देखे गए उनमें दोनों नेताओं के बीच केमेस्ट्री फील की जा सकती है। यह मुलाकात इसलिए ही सुर्खियों में रही क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को एक दिन पहले ही मुलाकात का समय देने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने गुरुवार को उनसे मिलने से इंकार कर दिया था। दिग्विजय इस मुलाकात के लिए सीएम हाउस से काफी अर्से से समय मांग रहे थे। दिग्विजय को यही बात लग गई कि हमें तो डेढ़ महीने से समय नहीं दिया और उनसे बगैर अपायंटमेंट के लंबी बातचीत, आखिर क्यों?
दिग्विजय खेमा का एक सवाल यह भी है कि शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ की भेंट आखिर अचानक ही क्यों होती है। इससे पहले 5 फरवरी 2021 को भी कमलनाथ सीएम शिवराज सिंह चौहान से मिलने अचानक उनके सरकारी आवास पर पहुंच गए थे। इस दौरान बंद कमरे में दोनों नेताओं में लंबी बातचीत भी हुई।
ऊपरी तौर पर बताया तो यही गया कि कमलनाथ ने तब शिवराज सिंह चौहान से किसानों के लिए समर्थन की मांग की थी और विवादास्पद तीन कृषि कानूनों पर चर्चा की थी।कांग्रेस प्रवक्ता ने दोनों ही मुलाकातों को शिष्टाचार भेंट बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया था।
विधानसभा में राज्यपाल मंगू भाई पटेल के अभिभाषण का कांग्रेस के नेता जीतू पटवारी द्वारा बहिष्कार करने के मामले में जब नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने उनसे किनारा कर लिया और कहा कि यह हमारी कांग्रेस पार्टी का फैसला नहीं था और आगे भी नहीं रहेगा। कांग्रेस में हुई दो फाड़ का फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ का धन्यवाद दिया और संसदीय परंपराओं का पालन करने के लिए उनका आभार भी जताया।
शिवराज सिंह चौहान व कमलनाथ की यह केमेस्ट्री- जुगलबंदी और कांग्रेस में मची सिर फुटौव्वल आखिर नवंबर 2023 में क्या गुल खिलाती है, इसके लिए तो इंतजार करना पड़ेगा पर इतना तय है कि वर्तमान घटनाक्रम कांग्रेस के लिए एक भी अच्छा संकेत नहीं देता है। मप्र से भाजपा के एक सांसद का यह कथन काफी मायने रखता है कि मप्र में भाजपा को कांग्रेस का सफाया करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी क्योंकि यह लोग खुद ही आपस में लड़कर खत्म हो जाएंगे। कांग्रेस का सफाया भाजपा को भले ही त्वरित लाभ का मामला दिखे पर स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह गंभीर चिंता मानी जानी चाहिए।