राज- काज: EVM & Digvijay Singh: कांग्रेस में ईवीएम मसले पर अकेले पड़ रहे दिग्विजय….
– विधानसभा चुनाव में हार की वजह ईवीएम को बताने के मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं। हार के तत्काल बाद इसकी वजह ईवीएम को बताया गया था, लेकिन कमलनाथ ने ही इससे पल्ला झाड़ लिया था। उन्होंने कहा था कि हार के कारणों की समीक्षा करना होगी कि वास्तव में इसके क्या -क्या करण हैं, जबकि कमलनाथ सरकार बनाने की पूरी तैयारी कर चुके थे। विधायाकों को बाहर भेजने के लिए चार्टर्ड प्लेन तैयार थे। राज्यपाल को देने के लिए लेटर तक तैयार था। साफ है कि पराजय कमलनाथ के लिए बड़ा सदमा था, लेकिन उन्होंने अब तक ईवीएम को हार की मुख्य वजह नहीं बताया। पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने शनिवार को कांग्रेस के हारे प्रत्याशियों की बैठक बुलाई।
यहां सभी ने हार की वजह कांग्रेस नेताओं और भितरघात को बताया लेकिन ईवीएम की चर्चा किसी ने नहीं की। साफ है कि कांग्रेस के अधिकांश नेता ईवीएम को पराजय की वजह नहीं मानते। दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह ईवीएम को दोष देने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। वे सुझाव देते हैं कि वीवीपेट से निकलने वाली पर्चियां मतदाता को देखने को मिलें। उसे वे दूसरे बाक्स में डालें और मतगणना में इन सभी पर्चियों की गिनती की जाए। तभी सही रिजल्ट आएगा।
हार कर घर बैठने के लिए तैयार नहीं दिखते शिवराज….
– पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान न घर बैठने के लिए तैयार हैं, न ही यह संकेत देने में पीछे कि विधानसभा चुनावों की जीत में उनकी भूमिका कम नहीं है। दौरे के दौरान उनके गले लगकर रोती महिलाएं, शिवराज का भावुक होकर उनके सिर पर हाथ फेरना, अपने नए आवास में जनता दरबार लगाना, बंगले के सामने मामा का घर लिखना और एक्स में इसकी जानकारी सार्वजनिक करना उनके हार मान कर घर न बैठने के ही उदाहरण हैं।
उनका यह बयान सबसे ज्यादा चर्चा में है कि ‘कभी-कभी राजतिलक होते-होते वनवास भी हो जाता है।’ इसके कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। एक तो ये कि शिवराज ने प्रदेश में ‘खड़ाऊ राज’ का संकेत दे दिया। अर्थात्ा, जिसे राजगद्दी मिली है, वह अपनी मर्जी से नहीं, किसी और के निर्देश पर सरकार चलाएगा। दूसरा, सवाल यह भी कि यदि राजतिलक होते-होते उन्हें वनवास मिल गया है तो इसमें कैकेई और मंथरा की भूमिका किसने निभाई। शिवराज द्वारा जारी एक वीडियो भी चर्चा में है। इसमें वे कह रहे हैं कि विधानसभा चुनाव मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से इंकार नहीं है लेकिन भाजपा को इतना भारी बहुमत मिला है तो इसकी मुख्य वजह सरकार के काम और योजनाएं हैं। शिवराज ने लाड़ली बहना योजना का जिक्र करते हुए कहा कि इसकी वजह से ही भाजपा को इतना वोट मिला, जितना इससे पहले कभी नहीं मिला था।
मुख्यमंत्री की यह शैली ‘ एक तीर से दो शिकार’ वाली….
– डॉ मोहन यादव हैं नए मुख्यमंत्री, लेकिन काम की उनकी शैली एक मंजे हुए राजनेता जैसी दिखाई पड़ती है। अफसरों के तबादले में वे एक ‘तीर से दो शिकार’ वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं। वे चाहते तो मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालते ही बड़ी तादाद में अफसरों के तबादले कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे प्रदेश भर का दौरा कर रहे हैं। इस दौरान उन्हें कलेक्टर, एसपी सहित अफसरों की शिकायत मिलती है तो वे कार्रवाई करने में देर नहीं करते।
शिकायत पर कलेक्टर, एसपी को हटा दिया तो शिकायत करने वाले पार्टी नेता, कार्यकर्ता खुश और उसके स्थान पर अपने पसंद के अफसर की पोस्टिंग कर दी तो दूसरा उद्देश्य भी पूरा। हो गए न ‘एक तीर से दो शिकार।’ खास बात यह है कि ऐसा करने में वे खासी सोहरत भी हासिल कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले वे अपनी लकीर लंबी करने की कोशिश में हैं। गुना कांड पर उनकी कार्रवाई और एक ड्राइवर से अपमानित करने वाली भाषा पर कलेक्टर की रवानगी, उनके ऐसे ही कदम हैं। मजेदार बात यह है कि वे दौरे में जहां भी जाते हैं, तत्काल बाद वहां का एक बड़ा अफसर बदल जाता है। वे रीवा पहुंचे और वहां तो संभागीय समीक्षा बैठक से पहले ही संभागायुक्त बदल गए। अब उनके दौरे की खबर से अफसर भयभीत होने लगे हैं।
गुनाह तो नहीं विरोधी दल के नेता का रिश्तेदार होना….!
– नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का सरकार की तारीफ में दिया गया एक बयान और उसी दौरान उनके रिश्तेदार आइपीएस अखिल पटेल की डिंडोरी पुलिस अधीक्षक के पद पर पदस्थापना चर्चा में है। उमंग ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की तारीफ की थी। खासकर शाजापुर कलेक्टर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि जनता से अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने वाले अफसरों को हटाने की कार्रवाई उचित है। संयोग से इसी दौरान सरकार ने एक आदेश जारी कर आईपीएस अखिल पटेल को डिंडोरी का एसपी बना दिया। पटेल नेता प्रतिपक्ष सिंघार के रिश्तेदार हैं। आरोप लगते देर नहीं लगी कि उमंग ने सरकार की तारीफ की और बदले में उनके रिश्तेदार एसपी बना दिए गए। अर्थात अखिल नेता प्रतिपक्ष के रिश्तेदार हैं तो यह उनका गुनाह हो गया। हालांकि भाजपा की पिछली सरकार के कार्यकाल में भी अखिल एक जिले के एसपी रह चुके थे। आरोप से आहत नेता प्रतिपक्ष उमंग ने मुख्यमंत्री डॉ यादव से आग्रह कर डाला कि अखिल को एसपी के दायित्व से मुक्त कर पुलिस मुख्यालय में कोई लूप लाइन पोस्टिंग दी जाए। वर्ना आगे भी इस तरह के आरोप लगते रहेंगे। हालांकि उमंग को यह लिखने का अधिकार नहीं है क्योंकि अखिल को आईपीएस की डिग्री रिश्तेदारी के कारण नहीं, उनके अथक परिश्रम की बदौलत मिली है।
‘सिर मुड़ाते ही ओले पड़े’ वाली कहावत चरितार्थ….
– पहली बार विधायक बनने के बाद राज्य मंत्री बने दिलीप अहिरवार पर ‘सिर मुड़ाते ही ओले पड़े’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई। वे पूर्व मुख्यमंत्री को लेकर दिए एक बयान पर घिर गए। प्रदेश भाजपा ने भी उनसे स्पष्टीकरण मांग लिया। हिदायत भी मिल गई कि भविष्य में बयान सोच समझ कर दिया करें। लिहाजा, उन्हें तत्काल सफाई देना पड़ गई। इसीलिए पहली बार के विधायकों को मंत्री बनाने के फायदे हैं तो नुकसान भी। दिलीप छतरपुर जिले की चंदला विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने हैं। किस्मत एेसी कि तत्काल राज्य मंत्री भी बन गए। वे बक्स्वाहा पहुंचे तो एक पत्रकार ने पूछ लिया कि पूर्व मुख्यमंत्री ने बड़ा मलेहरा क्षेत्र को गोद लिया था, यहां के लिए क्या करेंगे? दिलीप ने कहा- उन्हें छोड़िए, आप वर्तमान मुख्यमंत्री को देखिए। वे तो चाहें जहां जाकर गोद लेने की घोषणा कर आते थे लेकिन करते कुछ नहीं थे। इसीलिए तो उनका यह परिणाम हुआ। जवाब गलत नहीं था लेकिन सच कह कर वे फंस गए। वायरल वीडियाे को लेकर कांग्रेस के मीडिया सलाहकार पियूष बबेले ने भाजपा को कटघरे में खड़ा कर दिया। बाद में दिलीप ने कहा कि मेरे बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया। मैंने यह बात पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के लिए कही थी, शिवराज सिंह के लिए नहीं। भाजपा ने भी उनकी सफाई दोहरा कर पल्ला झाड़ा।