राजनीति सेवा नहीं, मेवा है

राज्यसभा के चुनावों में राज्यों के विधायक ही मतदाता होते हैं। आम चुनावों में मतदाताओं को अपनी तरफ फिसलाने के लिए सभी दल तरह-तरह की फिसलपट्टियां लगाते हैं लेकिन विधायकों के साथ उल्टा होता है। उनका अपना राजनीतिक दल उनको फिसलने से रोकने के लिए एक-से-एक अजीब तरीके अपनाता है।

इस समय कांग्रेस, शिवसेना, भाजपा और पंवार-कांग्रेस ने अपने-अपने विधायकों का अपहरण कर लिया है और उन्हें दुल्हनों की तरह छिपाकर रख दिया है। सभी पार्टियां अपने विधायकों से डरी रहती हैं। उन्हें डर लगा रहता है कि अगर उनके थोड़े-से विधायक भी विपक्ष के उम्मीदवार की तरफ खिसक गए तो उनका उम्मीदवार हार जाएगा।

कई उम्मीदवार तो सिर्फ दो-चार वोटों के अंतर से ही हारते और जीतते हैं। विधायकों को फिसलाने के लिए नोटों के बंडल, मंत्रिपद का लालच, प्रतिद्वंदी पार्टी में ऊंचा पद आदि की चूसनियां लटका दी जाती हैं। यदि राज्यसभा की सदस्यता का यह मतदान पूरी तरह दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत हो जाए तो ऐसे सांसदों के होश-हवास गुम कर देगा।

पराए दल के उम्मीदवार को वोट देनेवाले सांसद की सदस्यता तो छिनेगी ही, उसकी बदनामी भी होगी। ऐसा कोई प्रावधान अभी तक नहीं बना है, इसीलिए सभी दल अपने विधायकों को अपने राज्यों के बाहर किसी होटल या रिसोर्ट में एकांतवास करवाते हैं। उन विधायकों के चारों तरफ कड़ी सुरक्षा रहती है।

उनका इधर-उधर आना-जाना और बाहरी लोगों से मिलना-जुलना मना होता है। उनके मोबाइल फोन भी रखवा लिये जाते हैं। उनके खाने-पीने, खेलने-कूदने और मौज-मजे का पूरा इंतजाम रहता हैं। उन पर लाखों रु. रोज़ खर्च होता है।

कोई इन पार्टियों से पूछे कि जितने दिन ये विधायक आपकी कैद में रहते हैं, ये विधायक होने के कौनसे कर्तव्य का निर्वाह करते हैं? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि लगभग सभी पार्टियां, आजकल यही ‘सावधानी’ क्यों बरतती हैं? इसका मूल अभिप्राय क्या है? इसका एक ही अभिप्राय है। वह यह कि आज की राजनीति सेवा के लिए नहीं है। वह मेवा के लिए है। जिधर मेवा मिले, हमारे नेता उधर ही फिसलने को तैयार बैठे रहते हैं।

वर्तमान राजनीति में न किसी सिद्धांत का महत्व है, न नीति का, न विचारधारा का! राजनीति में झूठ-सच, निंदा-स्तुति, अपार आमदनी-बेहिसाब खर्च, चापलूसी और कटु निंदा यह सब इस प्रकार चलता है, जैसे कि वह कोई वेश्या हो। लगभग डेढ़ हजार साल पहले राजा भतृहरि ने ‘नीतिशतक’ में यह जो श्लोक लिखा था, वह आज भी सच मालूम पड़ता है।

राजनीति में सक्रिय कई लोग आज भी इसके अपवाद हैं लेकिन ज़रा मालूम कीजिए कि क्या वे कभी शीर्ष तक पहुंच सके हैं? जो लोग अपनी तिकड़मों में सफल हो जाते हैं, वे दावा करते हैं कि सेवा ही उनका धर्म है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि हम बैठकर नहाते हैं या खड़े होकर नहाते हैं? भाजपा में रहें या कांग्रेस में जाएं, एक ही बात है। हमें तो जनता की सेवा करनी है। ऐसे लोग मेवा को चबाए बिना ही निगल लेते हैं।

Author profile
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

वृत्तिः संपादकीय निदेशक, ‘नेटजाल.काॅम’ (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन.

डाॅ. वेदप्रताप वैदिक

डाॅ. वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डाॅ. राममनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ानेवाले योद्धाओं में वैदिकजी का नाम अग्रणी है।

पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तृत्व, संगठन-कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्षित करने वाले अद्वितीय व्यक्त्तिव के धनी डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। वे रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार हैं। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया युनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल आॅफ ओरिंयटल एंड एफ्रीकन स्टडीज़’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया।

वैदिकजी नेे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा। उनका निष्कासन हुआ। वह राष्ट्रीय मुद्दा बना। 1965-67 में संसद हिल गई।

डाॅ. राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपालानी, इंदिरा गांधी, गुरू गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, हिरेन मुखर्जी, हेम बरूआ, भागवत झा आजाद, प्रकाशवीर शास्त्री, किशन पटनायक, डाॅ. जाकिर हुसैन, रामधारी सिंह दिनकर, डाॅ. धर्मवीर भारती, डाॅ. हरिवंशराय बच्चन, प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद जैसे लोगों ने वैदिकजी का डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से वैदिकजी ने विजय प्राप्त की, नया इतिहास रचा। पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले।

वैदिकजी ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ 13 वर्ष की आयु में की थी। हिंदी सत्याग्रही के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। बाद में छात्र नेता और भाषाई आंदोलनकारी के तौर पर कई जेल यात्राएं ! भारत में चलनेवाले अनेक प्रचंड जन-आंदोलनों के सूत्रधार!

अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन! राष्ट्रीय राजनीति और भारतीय विदेष नीति के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका ! कई भारतीय और विदेषी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार। लगभग 80 देषोें की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं। 1999 में संयुक्तराष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व! इसी वर्ष विस्कोन्सिन युनिवर्सिटी द्वारा आयोजित दक्षिण एशियाई विश्व-सम्मेलन का उद्घाटन!

पिछले 60 वर्षों में हजारों लेख और भाषण! वे लगभग 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा (हिन्दी समाचार समिति) के संस्थापक-संपादक और उसके पहले नवभारत टाइम्स के संपादक (विचारक) रहे हैं। फिलहाल दिल्ली के राष्ट्रीय समाचार पत्रों तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग 200 समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर डाॅ. वैदिक के लेख हर सप्ताह प्रकाशित होते हैं।

छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार। भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान। अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व। आकाशवाणी और विभिन्न टीवी चैनलों पर 1962 से अब तक अगणित कार्यक्रम। पुस्तकें: ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ: क्यों और कैसे?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’, ‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’, ‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका: इंडियाज आॅप्शन्स’, ‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो?’, ‘वर्तमान भारत’, ‘अफगानिस्तान: कल, आज और कल’, ‘महाशक्ति भारत’, ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’, ‘कुछ मित्र और कुछ महापुरुष,’ ‘मेरे सपनों का हिंदी विश्वविद्यालय’ ‘हिंदी कैसे बने विश्वभाषा’ ‘स्वभाषा लाओ:अंग्रेजी हटाओ’, आदि।

अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित! विश्व हिन्दी सम्मान (2003), महात्मा गांधी सम्मान (2008), दिनकर शिखर सम्मान, पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण-पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, हिन्दी अकादमी सम्मान, लोहिया सम्मान, काबुल विश्वविद्यालय पुरस्कार, मीडिया इंडिया सम्मान, लाला लाजपतराय सम्मान आदि। अनेक न्यासों, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय। अध्यक्ष, भारतीय भाषा सम्मेलन एव भारतीय विदेश नीति परिषद!

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DR. VED PRATAPVAIDIK

(Chairman, Council for Indian Foreign Policy)

Dr. Vaidik is a well-known Scholar, Political Analyst, Orator and a Columnist on national and international affairs.  Dr. Vaidik worked with Press Trust of India for a decade as the Founder-Editor of its Hindi News Agency “BHASHA”. Earlier he held the position of Editor (views), Nav Bharat Times – (the then largest circulated National Hindi daily). Currently, he is the Chairman, Council for Indian Foreign Policy and Bhartiya Bhasha Sammelan. More than  two hundred newspapers carry his column regularly.

Born on the 30th December 1944, Dr. Vaidik has been throughout a first class student.  He was awarded the degree of Ph.D.  in International  Affairs from Jawaharlal Nehru University in 1971. He knows Russian, Persian, English, Sanskrit, Hindi andseveral other Indian languages. He won several all India awards in debating and elocutionary contests.

While doing research on Afghan Foreign Policy, Vaidik studied at Columbia University, New York,  School of Oriental and African Studies, London; Institute of the Peoples of Asia, Moscow and did extensive field  work in Afghanistan.   As an expert on international affairs and an Editor, Dr. Vaidik has had an opportunity to rub shoulders with Prime Ministers, Foreign ministers, dissidents and guerilla leaders of several Asian and Western countries.  He has been a member of the Indian Delegation to the UN in 1999.  He also had the honor of inaugurating the Annual Conference on South Asia organized byWisconsin University in 1999.

As a Ph.D. Student at Indian School of International Studies, Vaidik, insisted on writing his thesis in his mothertongue , Hindi.  It led to his expulsion from the School.  The principled stand of Vaidik evoked nationwide response and the Indian Parliament went through unprecedented debates and uproarious scenes in 1966-67. Vaidik created history by winning the right for allIndian languages to be the medium of expression at the highest academic level.

He has been frequently appearing on Indian and Foreign television and broadcasting networks since 1962. Apart from the Indian Channels, Dr. Vaidik has been interviewed by BBC, CNN & CCTV. He is one of the most reputed mass orators inIndia.  He has also been invited by several  Indian and foreign universities to deliver special lectures on International Politics and Journalism.

Dr. Vaidik has taught Political Science at Motilal Nehru College, Delhi University. He has been a Senior Fellow at the Institutefor Defense Studies and Analyses and at SIS Jawaharlal Nehru University. He has several award winning researchpublications to his credit.  Books ; 1) Soviet-American Rivalry in Afghanistan; 2) Hindi Journalism : Various Dimensions ; 3) Indian Foreign Policy : New Pointers; 4) Bhartiya Bhashayen Lao : Kyon Aur Kaise; 5) Hindi ka Sampurna Samachar Patra Kaisa ho ?; 6)Vartmaan Bharat ; 7) Afghanistan : Kal, Aaj aur Kal ; 8) Mahshakti Bharat (All in Hindi) ; 9) Ethnic Crisis in Sri Lanka : India’s Options (In English); 10) BJP, Hindutva Aur Mushalman.

Dr. Vaidik is a widely travelled scholar-journalist.  He has visited more than 80 countries on various missions.  Dr. Vaidik has won more than a dozen National and International awards for academic and journalistic excellence.  He has been a member of several Advisory Committees of Government of India.

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जन्म: 30 दिसंबर, 1944, इंदौर

वृत्तिः संपादकीय निदेशक, ‘नेटजाल.काॅम’ (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन.

शिक्षा:

(1) पीएच.डी (अंतरराष्ट्रीय राजनीति), स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज, जवाहरलाल नेहरु वि.वि., 1971. विषय — अफगानिस्तान के साथ सोवियत संघ और अमेरिका के संबंधों का तुलनात्मक अध्ययन, 1946-1963 (पीएच.डी. शोध-कार्य के दौरान न्यूयार्क के कोलम्बिया विश्वविद्यालय, वाशिंगटन डी. सी. की लायब्रेरी आॅफ कांग्रेस, मास्को की विज्ञान अकादमी, लंदन के प्राच्य-विद्या संस्थान तथा काबुल विश्वविद्यालय में विशेष अध्ययन का अवसर)

2) एम.ए. (राजनीति शास्त्र), प्रथम श्रेणी इंदौर क्रिश्चियन काॅलेज, इंदौर विश्वविद्यालय, 1965

(3) बी.ए. (राजनीति शास्त्र, दर्शनशास्त्र, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी) प्रथम श्रेणी विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, 1963

(4) संस्कृत (सातवलेकर परीक्षाएं),1955  प्रथम श्रेणी

(5) रूसी भाषा (स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज),1967 प्रथम श्रेणी

(6) फारसी भाषा (स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज), 1968   प्रथम श्रेणी