चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की अग्नि परीक्षा का समय अब आ ही गया है। कांग्रेस की सत्ता में वापसी का दारोमदार अब जो उन्होंने अपने कंधों पर उठा लिया है। जिस तरह कहा जा रहा है कि सोनिया गांधी से कमलनाथ की एक घंटे की लंबी मुलाकात हुई है। इसमें प्रशांत किशोर द्वारा 2023 में जिन राज्यों में चुनाव होना है, वहां के लिए दी गई रिपोर्ट पर चर्चा हुई है। इस रिपोर्ट में क्या होगा?
कयास लगाएं तो क्या यह माना जा सकता है कि जिस राज्य में चुनाव होना है, उसके लिए पीके ने सिफारिश की हो कि ऐसे राज्य में प्रदेश पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष जैसे दो महत्वपूर्ण पदों पर अलग-अलग नेताओं की पदस्थापना की जाए? चुनाव जीतने के लिए या जीतने की चाह रखने के लिए, एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत का कड़ाई से पालन किया जाए। यदि रिपोर्ट में ऐसा हुआ और निश्चित तौर पर होगा ही, तब मध्यप्रदेश में नाथ किस पद को छोड़ने पर राजी होंगे? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ेंगे या फिर नेता प्रतिपक्ष का?
नाथ कौन सा पद छोड़ेंगे, यह भी ठीक है…यह तो नाथ ही तय करेंगे, लेकिन पीके की अग्नि परीक्षा तो शुरू हो ही चुकी है। उन्होंने जिस अग्नि परीक्षा से गुजरकर खुद को सफलतम रणनीतिकार के रूप में स्थापित करने की जो चुनौती स्वीकार की है, वह इस दफा उन्हें आइना भी दिखा सकती है। मामला चाहे नाथ के एक पद छोड़ने का हो या फिर 2023 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस को चुनाव जिताकर सत्ता में लाने का।
नाथ पद छोड़ देंगे, यहां तक भी सब ठीक है। क्योंकि नाथ को न सत्ता से मोह है, न कुर्सी का लालच है और न ही पद छोड़ने में कोई तकलीफ है। नाथ की साफगोई से सभी वाकिफ हैं। इसके लिए न तो वह पार्टी नेताओं को आइना दिखाने में देरी करते हैं और न ही विपक्षी दल के नेताओं को खरी-खोटी सुनाने में हिचकते हैं। और खुद नाथ भी कई दफा कह चुके हैं कि पद छोड़ने में उन्हें कोई परहेज नहीं है।
Also Read: YouTube Channel Block : सरकार के खिलाफ भ्रम फैलाने वाले 16 यूट्यूब चैनलों पर रोक
पर समस्या यह भी है कि वह जो पद छोड़ेंगे, उस पद पर किसकी ताजपोशी होगी? सामान्य वर्ग के नेता की, ओबीसी के नेता की या फिर एससी-एसटी वर्ग से किसी की। और उसके बाद पार्टी के अंदर क्या सब कुछ ठीक चल पाएगा…यह भी देर-सबेर ही पता लग पाएगा? जिस तरह उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में पार्टी चुनावों में पार्टी के चेहरों ने जवाब सा ही दे दिया है, उससे पीके की कांग्रेस को सत्ता में लाने की चुनौती बड़ी है…यह तो साफ ही है।
खैर धीरे-धीरे सारी तस्वीर साफ हो जाएगी। और कांग्रेस को इस चुनाव में सिंधिया के बगैर सत्ता में लौटने की बड़ी खाई को पार कर पाने में कितना सफल हो पाती है, यह भी पता चल जाएगा। ऐसे में जब भाजपा का संगठन भी मजबूत है और सरकार भी सभी वर्गों को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। तब प्रशांत किशोर और कांग्रेस दोनों नाथ की नैया पार लगाने का कितना दम भर पाते हैं, वह बीस महीने बाद साफ हुए बिना नहीं रहेगा…। तब तक प्रशांत किशोर अग्नि परीक्षा की आंच को सहन करने को मजबूर हैं और नाथ के सामने भी समझौतों से सामंजस्य करने का कड़ा इम्तिहान है।