लोक निर्माण विभाग का पर्यावरण संरक्षण प्रयास…सोच अच्छी है…

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लोक निर्माण विभाग का पर्यावरण संरक्षण प्रयास…सोच अच्छी है…

कौशल किशोर चतुर्वेदी
सड़कों की गुणवत्ता और भ्रष्टाचार के मामले में अक्सर सवालों में घिरे रहने वाला लोक निर्माण विभाग अगर पर्यावरण की चिंता करता है तो इसे विभाग के मंत्री राकेश सिंह की व्यक्तिगत सोच का परिणाम ही माना जा सकता है। क्योंकि विभाग के कर्ताधर्ताओं ने अभी तक सड़कों को लेकर भी लोकहित की अपनी छवि जन के मन में निर्मित नहीं कर पाई है, फिर पर्यावरण से समन्वय की बात तो कोसों दूर ही है। हालांकि पर्यावरण को लेकर जिस तरह देश और दुनिया में चिंता का माहौल है, उसे देखते हुए यदि लोक निर्माण विभाग अपने कार्यों के साथ पर्यावरण संरक्षण का प्रयास कर रहा है तो उसकी यह सोच अच्छी है और बहुत ही अच्छी है। चिंता बस इतनी ही है कि यह सोच लोक लुभावन भर बनकर न रह जाए। ‘पर्यावरण से समन्वय’ विषय पर लोक निर्माण विभाग द्वारा आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी-सह प्रशिक्षण कार्यशाला से अगर इंजीनियर सीख लेते हैं और उसका क्रियान्वयन भी करते हैं तो यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी।
लोक निर्माण विभाग को लेकर इस लोक दृष्टिकोण को बदलने की सर्वाधिक जरूरत है कि सड़कें कमीशनखोरी की भेंट चढ़ रही हैं और गुणवत्ता नदारद है। जैसा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सचेत किया कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिए योजनाबद्ध तरीके से सामंजस्य स्थापित हो, जिससे विकास के साथ प्रकृति भी संरक्षित रहे। वर्तमान समय में निर्माण सामग्री की मात्रा, डिजाइन की गुणवत्ता और लागत-प्रभावशीलता पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है। निर्माण में मात्रा से ज्यादा महत्व गुणवत्ता का है। मुख्यमंत्री ने कहा कि लोक निर्माण विभाग के ध्येय वाक्य “लोक निर्माण से लोक कल्याण” को साकार करने की दिशा में ‘पर्यावरण से समन्वय’ संग ऐसे निर्माण करने चाहिए, जिन पर हमें स्वयं गर्व हो और जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी हों। विभागीय दायरे और नियमों के भीतर रहते हुए भी अभियंताओं को रचनात्मक सोच से समाधान खोजने होंगे, जिससे परियोजनाएं गुणवत्ता, लागत और पर्यावरण – तीनों मानकों पर श्रेष्ठ साबित हों। तो विश्वास जताया कि इस तरह की कार्यशालाएं न केवल तकनीकी ज्ञान बढ़ाने में सहायक होंगी, बल्कि विभाग की कार्यप्रणाली में भी सकारात्मक बदलाव लाएंगी। उन्होंने कहा कि यह संकल्प सिर्फ तकनीकी प्रशिक्षण का नहीं, बल्कि हमारे मन की स्वच्छता, धैर्य और निष्ठा का प्रतीक है, जो सुनिश्चित करेगा कि हम विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी भी पूरी निष्ठा से निभाएं।
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लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह की सोच है कि संभवतः यह पहली बार है जब मध्यप्रदेश के सभी अभियंता प्रत्यक्ष और वर्चुअल माध्यम से एक साथ जुड़े हैं। उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि प्रदेश में विकास की गाड़ी कभी भी पर्यावरण की पटरी से नहीं उतरेगी। विकास का वास्तविक अर्थ तभी है जब संरचनात्मक प्रगति के साथ पर्यावरण का संरक्षण भी सुनिश्चित हो। पर्यावरण संरक्षण के लिए विभाग ने कई ठोस और प्रभावी कदम उठाए हैं। निर्माण कार्य के लिए निकाली जाने वाली मिट्टी के स्थान पर लोककल्याण सरोवर का निर्माण किया जा रहा है। प्रत्येक किलोमीटर पर ग्राउंड वाटर रीचार्ज बोर बनाने का कार्य किया जा रहा है। इसी के साथ आज यह संकल्प लिया गया है कि विभाग के सभी भवनों में वर्षा जल संचयन की व्यवस्था की जाएगी, प्रत्येक परिसर को हरियाली से आच्छादित किया जाएगा, विभाग में प्लास्टिक बोतलों के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाएगा और सभी कार्यालय भवनों पर सौर ऊर्जा पैनल स्थापित किए जाएंगे। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अभियंताओं के समर्पण, विभागीय नवाचारों और मुख्यमंत्री डॉ. यादव के मार्गदर्शन से मध्यप्रदेश का लोक निर्माण विभाग आने वाले समय में नवाचार, गुणवत्ता और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में देश में एक अलग और सर्वोच्च पहचान बनाएगा।
तो उम्मीद यही है कि लोक निर्माण विभाग नवाचार, गुणवत्ता और पर्यावरण संरक्षण तीनों पहलुओं पर मंत्री राकेश सिंह के कार्यकाल में सर्वोत्तम परिणाम लोक के सामने रखेगा। तभी विभाग की छवि बदलेगी। और तभी विभाग का ‘लोक निर्माण से लोक कल्याण’ ध्येय वाक्य वास्तव में चरितार्थ होगा। और लोक निर्माण विभाग मंत्री राकेश सिंह की सोच को सफलता हासिल होगी। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि लोक निर्माण विभाग का पर्यावरण संरक्षण प्रयास…सोच अच्छी है…।