राहुल गाँधी को भारत की जनता से अधिक  विदेशी हस्तक्षेप की चाह खतरनाक

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राहुल गाँधी को भारत की जनता से अधिक  विदेशी हस्तक्षेप की चाह खतरनाक

आज़ादी के बाद यह पहला अवसर है जबकि कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और चार बार लोक सभा के सदस्य बने राहुल गाँधी ने ब्रिटेन जाकर भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिए अमेरिका और यूरोप को खुलकर सामने आने का आव्हान किया है | ऐसा तो 1975 में इमरजेंसी लगने पर किसी तरह ब्रिटेन पहुँच गए प्रतिपक्ष के किसी नेता ने भी नहीं किया | यही नहीं स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए गाँधी नेहरु जैसे बड़े नेताओं ने विदेश से भारत आकर लड़ाई लड़ी | राहुल गाँधी को  अपनी दादी और प्रधान मंत्री  इंदिरा गाँधी को अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उसके सहयोगी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर द्वारा बार बार किये गए अपमान , सी आई ए द्वारा किए गए षड्यंत्रों की कोई जानकारी किसी अपने ‘ महा ज्ञानी ‘ सलाहकार , सहयोगी या परिजन ने नहीं दी | इंदिरा कांग्रेस के पुराने नेता तो इमरजेंसी से पहले अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा भारत में राजनैतिक अस्थिरता लाने के आरोप लगते थे | तो क्या राहुल गाँधी अब उसी तरह के प्रायोजित विरोध से देश में असंतोष का वातावरण चाहते हैं ?

 राहुल गांधी जब एक घंटे तक लोक सभा में भाषण देकर केवल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के विरुद्ध गंभीरतम आरोप लगा चुके , चार हजार किलोमीटर की ‘ भारत जोड़ो यात्रा ‘ किसी सरकारी या राजनैतिक बाधा के पूरी कर आए , हिमाचल के चुनाव ने कुछ हफ्ते पहले कांग्रेस जीती , पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनावों में भाजपा सहित विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों को विजय मिली , ब्रिटेन , इटली सहित यूरोप ,  अमेरिका ,रुस, लातिनी अमेरिकी , जापान और खाड़ी के कट्टर इस्लामिक देशों तक के नेता प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  और भारत के लोकतंत्र की सराहना कर रहे हों , तब लोकतंत्र पर हमले और खतरे का विलाप सुनकर कौन प्रभावित होगा ? हाँ यह संभव है कि आने वाले महीनों में किसी क़ानूनी कार्रवाई से उन्हें या परिजन या किसी साथी को कष्ट हो तो मानवीय आधार पर राहुल गाँधी के विदेश में बैठे कुछ पारिवारिक मित्र हर संभव सहायता दिला सकें | आखिरकार राहुल गाँधी के विदेशी कार्यक्रमों के आयोजन अथवा समर्थन के लिए सभाओं की अगली पंक्ति में उन्हें देखा जा सकता है | लेकिन यदि उन्हें पक्का विश्वास है कि उन्होंने या उनके किसी साथी ने कोई गलत काम सत्ता में रहते हुए नहीं किया तो उन्हें कोई भी अदालत जेल क्यों भेजेगी ?

 राहुल गांधी ने विदेशी मंचों पर यह आरोप भी लगाया कि देश में न्याय पालिका सहित सभी संवैधानिक संस्थाओं पर सरकार ,  संघ और  भाजपा ने कब्ज़ा कर लिया है | न्याय पालिका पर यह आशंका कितनी गलत है , यह हाल के महीनों में अदालतों द्वारा दिए गए कुछ निर्णयों से साबित हो सकती है | इन निर्णयों से वर्तमान सरकार को तकलीफ ही हुई है | इसी तरह विरोधी दलों के नेताओं और उनके संदिग्ध साथियों पर सी बी आई , प्रवर्तन निदेशालय , आय कर विभाग आदि जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर भी राहुल गाँधी को आपत्ति है | लेकिन वे यह कैसे भूल जाते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व वाली उनकी सरकार के दौरान ही इन्ही पार्टियों के नेताओं पर इसी तरह की जांच एजेंसियों की कार्रवाई से मुकदमे चले और लालू यादव जैसे जेल भी गए | लालू यादव का जनता दल और राष्ट्रीय जनता दल तो बिहार में कांग्रेस का सफाया करके ही सत्ता में रहा | अब बिहार में राहुल की कांग्रेस ही नीतीश तेजस्वी यादव की सत्ता की पालकी को कंधा दे रही है | इसी तरह झारखण्ड में कांग्रेस से लड़ती जुड़ती रही पार्टी झारखण्ड मुक्ति मोर्चे के नेता तो सांसद रिश्वत कांड में जेल में रहे और अब भी भ्रष्टाचार के आरोपों से उलझी हुई है | कांग्रेस उसका दामन थामे हुए है | तेलंगाना के मुख्यमंत्री के सी आर ( चंद्रशेखर ) तो जीवन भर कांग्रेस से संघर्ष कर सत्ता में आए | फिर उनके या उनके परिजनों पर क़ानूनी कार्रवाई से राहुल क्यों व्यथित हैं ?

सबसे दिलचस्प स्थिति तमिलनाडु के द्रमुक नेताओं से राहुल गाँधी और उनकी पार्टी की मोहमाया की है | अति चतुर और कांग्रेसजनों द्वारा प्रधान मंत्री पद के दावेदार राहुल गाँधी अपनी पार्टी की फाइलें देख लें | 1975 में श्रीमती इंदिरा गाँधी की सरकार की जांच एजेंसियों सी बी आई  और सरकारिया आयोग ने द्रमुक मुख्यमंत्री करूणानिधि पर भ्रष्टाचार के आरोप की पुष्टि के बाद क़ानूनी कार्रवाई की थी | कांग्रेस के दिग्गज नेता कई बार द्रमुक से संघर्ष करते रहे | सबसे गंभीर मामला राजीव गाँधी की हत्या में आतंकवादी संगठन लिट्टे को द्रमुक नेताओं के सहयोग के प्रमाण कांग्रेस के राव राज के दौरान सी बी आई ने लेकर दिए थे | यही नहीं सोनिया गाँधी भी उस समय अपनी सरकार की ढिलाई से बहुत दुखी और नाराज थीं | कांग्रेस के नेताओं ने खुलकर आरोप लगाए थे | इसके बाद टू जी घोटाले में मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार की सी बी आई की जांच से द्रमुक मंत्री नेता जेल गए थे | अब राहुल को उनसे सहानुभूति हो रही है | शरद पवार तो राजीव सोनिया गाँधी के विरोध के कारण ही अलग हुए और अपनी पार्टी बनाई | लेकिन सत्ता के लिए अब हर समझौते के लिए दोनों तैयार हैं | ममता बनर्जी भी कांग्रेस से अलग हुई हैं | राहुल को भाजपा से लड़ने के लिए  उनसे समर्थन की अपेक्षा रहती है , लेकिन लोक सभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और अन्य कांग्रेसी ममता के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं | भाजपा सरकार द्वारा जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए नौ राजनीतिक  दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा , लेकिन कांग्रेस के किसी नेता ने उस पर दस्तखत नहीं किए | यही नहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेताओं पर सी बी आई की कार्रवाई पर कांग्रेसी नेता सार्वजनिक रुप से सराहना करते हुए इसे उचित बता रहे हैं | तो फिर पूर्वाग्रह कैसे हुआ ? सुविधा की राजनीति अब जनता भी समझने लगी है | इसीलिए कांग्रेस पर भरोसा टूटता गया है |

  इसमें कोई शक नहीं कि महंगाई , बेरोजगारी , प्रदेशों में गड़बड़ियों या पुलिस की ज्यादतियों पर कांग्रेस और अन्य पार्टियों को आंदोलन का अधिकार है | राहुल गाँधी केम्ब्रिज के बजाय राजस्थान , छत्तीसगढ़ , हिमाचल के सरकारी विश्वविद्यालय या भारत के प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय में निरंतर भाषण देकर अपनी बातें कह सकते  थे | उन्हें वहां कौन रोक सकता है ? हाँ एक बात और उन तक नहीं पहुंची होगी कि रायपुर के कांग्रेस अधिवेशन में पुराने कांग्रेसी नेता जो कभी मंच पर ही बैठते थे , वे राहुल से मिलना तो बड़ी बात मंच के अंतिम किनारे खड़े थे | वे लोग कभी राजीव गाँधी की विश्वस्त टीम के सदस्य थे | जब आप उनसे ही नहीं मिलते तो फोटो दिखाने के लिए सड़क पर किसी को गले लगाने से महान नेता नहीं हो सकते | कभी कांग्रेस के प्रचारक पुराने निष्ठावान लोग होते थे , अब सत्ता और संपत्ति से जुड़े लोग कमान संभालेंगे तो कांग्रेस में ही लोकतंत्र कैसे आएगा ?

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।