राहुल प्रियंका बेरोजगारी पर मोदी सरकार के साथ दादी इंदिराजी की बातें भी याद करें

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राहुल प्रियंका बेरोजगारी पर मोदी सरकार के साथ दादी इंदिराजी की बातें भी याद करें

रायबरेली अमेठी में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल और प्रियंका गाँधी इन दिनों अपनी दादी इंदिरा गाँधी के नाम , काम और संबंधों को लेकर बहुत भावुक भाषण दे रहे हैं | वहीं देश के युवाओं की बेरोजगारी की समस्याओं के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं | राहुल गाँधी ने तो चुनाव में 4 जून को विजयी होने का दावा करते हुए सभाओं में यह तक कह दिया कि ” उसी दिन सरकार 30 लाख लोगों को नौकरी देने का निर्णय करेगी और अगस्त से नौकरी दी जाने लगेगी | ” यह वायदा एक हद तक हड़बड़ी में अव्यवहारिक और हास्यास्पद समझा जा रहा है , क्योंकि सरकारी नौकरियों की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होती और सरकारी भर्ती में घोटालों में देश के कई नेता जेल जा चुके और राहुल के नए साथी  तेजस्वी लालू यादव परिवार पर रेलवे में भर्ती घोटाले की जांच चल रही है | यही नहीं राहुल गाँधी युवाओं , महिलाओं को एक एक लाख रूपये देने का वायदा भी कर रहे हैं |

राहुल प्रियंका बेरोजगारी पर मोदी सरकार के साथ दादी इंदिराजी की बातें भी याद करें

इस तरह के भावुक , उत्तेजक और वायदों के भाषणों पर मुझे भी श्रीमती इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में दिए गए भाषणों और पत्रकारों से कही गई बातें ध्यान में आई | उस समय मैं संपादक नहीं राजनैतिक विशेष संवाददाता हुआ करता था | इसलिए अपने पास उपलब्ध रिकॉर्ड टटोला , ताकि राहुल प्रियंका गाँधी या उनके काबिल सलाहकार उन बातों पर ध्यान दें या न दें , हमें गलत साबित नहीं कर सके | श्रीमती गांधी से    25 अप्रेल 1980 को एक  इंटरव्यू के दौरान सवाल किया गया कि ” हर कोई बेरोजगारी की समस्या की चर्चा करता है | क्या यह इस देश की बुनियादी समस्या है ? ” इंदिराजी ने संक्षिप्त उत्तर दिया – ” दुनिया के प्रत्येक देश में बेरोजगारी पाई जाती है | ” तब सवाल हुआ – ” जब तक लोगों को रोजगार नहीं मिलता , क्या बेरोजगार युवकों को नगद सहायता नहीं दी जा सकती ? ” श्रीमती इंदिरा गाँधी ने उत्तर दिया – ” हमारे पास इतने साधन नहीं हैं कि हम इस तरह की सहायता दे सकें | जहाँ कहीं इस तरह की सहायता दी जाती है , उसका असर अच्छा नहीं होता | “

इसी तरह 27 सितम्बर 1980 को कोलकता के स्कॉटिश कॉलेज के स्थापना दिवस के एक कार्यक्रम में प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने भाषण में युवाओं को समझाया – ” छात्रों को पहली चिंता यह सताती है कि उन्हें पढाई के बाद कोई काम मिलेगा या नहीं | यह स्वाभाविक है | लेकिन रोजी – रोजगार शिक्षा के अनेक लक्ष्यों में से एक है | केवल उन्हीं देशों में बेरोजकगरी की अधिक परेशानी नहीं है जिनकी जनसँख्या काफी कम है | हम साधन सम्पन्न देशों के हजारों ऐसे युवाओं को देखते हैं जो मन में सूनापन लिए अपना देश त्याग कर अन्यत्र भटकते रहते हैं | उनके चेहरे पर परेशानी की रेखाएं बताती हैं कि जिस सम्पन्नता के लिए हमारे यहाँ के लोग प्रायः लालायित रहते हैं  वह   आध्यात्मिक दृष्टि से कितनी खोखली है | “

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 इस दृष्टि से राहुल गाँधी और प्रियंका अथवा उनकी कांग्रेस पार्टी के सलाहकारों को भारत में रोजगार के मुद्दे पर भड़काने के बजाय सकारात्मक समाधान के रास्ते बताने चाहिए | केवल निराशा पैदा करने वाले आंकड़ों और  ब्रिटिश राज की तरह  सरकारी नौकरियों के प्रलोभन के बजाय कौशल विकास और स्व रोजगार के नए रास्ते दिखाने की नई राष्ट्रीय नीतियों का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए | सत्ता  या प्रतिपक्ष में कोई भी हो , समाज में सही दिशा नहीं होने पर अराजकता का खतरा बढ़ेगा | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की नई शिक्षा नीति में डिग्री के साथ कौशल विकास पर जोर है , जिसका क्रियान्वयन हर राजनीतिक व्यवस्था और राज्य के लिए लाभकर होगा | राजनैतिक पूर्वाग्रह से हटकर दुनिया के विभिन्न देशों की आर्थिक एवं बेरोजगारी की स्थितियों पर ध्यान दिया जाए , तो भारत अपने सीमित संसाधनों के बावजूद सही दिशा में प्रगति कर रहा है |  ताजे अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार ब्रिटेन में बेरोजगारी की दर 4 .2 प्रतिशत , अमेरिका में 4 . 47  प्रतिशत और भारत में 5 . 4 प्रतिशत है | बेरोजगारी का हल दुनिया में केवल सरकारी नौकरियों को बढ़ाने से नहीं निकला है |  शिखा का विस्तार हुआ है , लेकिन केवल उच्च शिक्षा को सुगम बनाकर सामान्य बी ए एम्  ए की लाखों डिग्रीधारी खड़े करने से नौकरियां देना कठिन होता गया है | कुछ राजनेताओं ने अपने स्कूल कॉलेज आदि खोलकर या सत्ता में रहने पर फर्जी कॉलेज यूनिवर्सिटी को मान्यता देकर पूरी शिक्षा व्यवस्था को भ्रष्ट भी किया है | कांग्रेस के कुछ नेताओं या उनके करीबियों ने बिहार , उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश में भर्ती के नाम पर करोड़ों कमाए | सबसे भ्र्ष्ट उदाहरण कांग्रेस के मुख्यमंत्री अजित जोगी के कार्यकाल का रहा है , जब उन्होंने छत्तीसगढ़ में करीब चालीस युनिवेर्सिटी को मान्यता दे दी , जिनमें कुछ किसी बेसमेंट वाले पते से चल रही थी | हमने जब खोजी रिपोर्ट छापी , तब बाद में उन संस्थाओं की मान्यता अगली रमन सिंह सरकार ने रद्द की | दिग्विजय सिंह के राज में निजी सहायकों ने कॉलेज खोलकर सरकारी जमीन सहायता तो ली ही , छात्रों के प्रवेश में करोड़ों कमा लिए | ी

 दूसरी तरफ हाल के वर्षों में कौशल विकास केंद्रों से निकल रहे हजारों युवाओं को स्व रोजगार या छोटे बड़े उद्योगों में तत्काल काम के अवसर मिल रहे हैं | गाँव से लेकर शहरों और महानगरों में संचार क्रांति से कमाई वाले व्यापार बढ़ने से टेक्निकल ज्ञान वाले युवा फ्री लांसिंग से हर महीने 50 हजार रूपये तक कमा रहे हैं | केवल आंकड़ों की बाजीगरी के बजाय असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार से नया विश्वास कायम हो रहा है | खादी ग्रामोद्योग में पिछले दस वर्षों के दौरान करोड़ों की बढ़ोतरी महात्मा गाँधी के सपनों को साकार करने का प्रमाण है | कभी युवा गांधी परिवार गांवों कस्बों में आत्म निर्भर हो रही सामान्य महिलाओं से मिलकर भी असलियत समझने का प्रयास करें | केवल झूठे प्रलोभन और जाति धर्म के आधार पर नौकरियों का भ्रमजाल फ़ैलाने से कांग्रेस या सहयोगी दलों द्वारा शासित राज्यों में भी अशांति तथा अराजकता फैलेगी | मानव अधिकारों के नाम पर छत्तीसगढ़ या पूर्वोत्तर प्रदेशों में माओवादी और उग्रपंथियों को कांग्रेस के समर्थन का बहुत नुकसान लाखों आदिवासियों और देश ने भुगता है |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।