रईस खान की सितार कर गई गीतों को गुलजार!
इंदौर मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी ही नहीं, सांस्कृतिक राजधानी भी है। इस शहर के पानी में ऐसा कुछ तो है, जो यहां की माटी में एक से बढ़कर एक कलाकार पल्लवित हुए। लता मंगेशकर की तरह ऐसे ही एक अनूठे कलाकार थे विश्वविख्यात सितार वादक उस्ताद रईस खान जिनकी अंगुलियों ने हिन्दी सिनेमा के अनगिनत लोकप्रिय गीतों को अपने जादू से सराबोर किया। उन्होंने जिन सुमधुर गीतों में सितार बजाया वे गीत बेजोड़ रहे।
सितार के इस अनूठे कलाकार का जन्म इंदौर में 25 नवम्बर 1939 को हुआ था। रईस खान की माता गायिका थी और पिता वीणा वादक। वे इंदौर से भोपाल फिर वहां से मुंबई पहुंचकर उस्ताद रईस खान नाम से दुनियाभर में अपने सितार के मधुर स्वर छेड़कर सभी को चमत्कृत कर दिया था। शास्त्रीय संगीत के मेवात घराने के विख्यात सितार वादक उस्ताद रईस खान, गग्घे नज़ीर खान के भाई उस्ताद वाहिद खान के परिवार से थे। पिता उस्ताद मोहम्मद खान उनके गुरु रहे। जो स्वयं सितार वादक, बीनकार, रुद्रवीणा और सुरबहार के उस्ताद थे। उनका प्रशिक्षण बहुत कम उम्र में नारियल के एक छोटे से सितार पर शुरू हो गया था। लता मंगेशकर के साथ उस्ताद रईस खान का जुड़ाव तो सर्वविदित है। लेकिन, मदनमोहन के गीतों में रईस खान साहब का योगदान उनके गीतों को सजाने, संवारने और ऊंचाई पर ले जाने में कम नहीं रहा। इटावा घराने के इमदाद खान, सितार वादक उस्ताद विलायत खान मदन-मोहन के मित्रों में थे। यही कारण रहा कि उनके भानजे रईस खान उनसे जुड़े और एक लंबे समय तक जुड़ाव रहा।
उस्ताद रईस खान और संगीतकार मदन-मोहन का साथ पहली फ़िल्म ‘पूजा के फूल’ के गीत ‘मेरी आँखों से कोई नींद लिए जाता है’ से। फ़िल्म ‘ग़ज़ल’ की खूबसूरत गजल ‘नगमा ओ शेर की सौगात किसे पेश करूँ’ फ़िल्म ‘दुल्हन एक रात की’ का मधुर गीत ‘मैंने रंग ली आज चुनरिया’ और ‘सपनों में अगर मेरे तुम आओ तो सो जाऊं’ के साथ फ़िल्म ‘नौनिहाल’ में रफी साहब के गाये गीत ‘तुम्हारी जुल्फ के साये में शाम कर लूंगा’ में रईस खान साहब का सितार दूसरे वाद्ययंत्रों से अलग ही सुनाई देता है।
मदन-मोहन और रईस खान का यही जादू फिल्म ‘चिराग’ में लता मंगेशकर के गीत ‘छाई बरखा बहार पड़े अंगना फुहार’ के अंतरे मे भी सुनाई देता है। यही नहीं ‘हीर राँझा’ के गीत दो दिल टूटे दो दिल हारे ‘दस्तक’ की मशहूर गजल हम हैं मता ए कूचा बाजार की तरह और’ बैयाँ ना धरो बलमा, ‘हंसते जख्म’ के गीत आज सोचा तो आंसू भर आए और ‘दिल की राहें’ के गीत ‘रस्म ए उल्फत को निभाएं तो निभाएं कैसे’ में भी उस्ताद रईस खान के सितार का जादू सिर चढकर बोला। एक समय ऐसा भी समय आया कि छोटी गलतफहमी की वजह से दोनों का साथ टूट गया जिससे सितार का प्रयोग मदन मोहन की फिल्मों में बंद हो गया। उनकी बाद की फिल्मों मौसम, हिंदुस्तान की कसम, लैला मजनू, साहिब बहादुर के गीतों में सितार का कहीं प्रयोग नहीं किया हुआ।
मदन-मोहन के अलावा ओपी नैयर दूसरे संगीतकार थे जिनके गीतों में सितार का मधुरतम उपयोग किया गया। इस मधुरता को चार चांद लगाने में भी उस्ताद रईस खान के सितार का जादू काम आया। उनके ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ के गीत आप यूँ ही अगर हमसे मिलते रहे ‘कश्मीर की कली’ के गीत इशारों इशारों में दिल लेने वाले ‘मेरे सनम’ के गीत जाइये आप कहाँ जाएंगे ‘ये रात फिर ना आयेगी’ के गीत फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो में उस्ताद रईस खान के सितार की चमक बिजली सी कौंधती है।
उस्ताद रईस खान ने मदन-मोहन और ओपी नैयर के अलावा शंकर जयकिशन, कल्याणजी-आनंदजी, जयदेव, नौशाद और यहां तक कि 70 से 80 के दशक के सबसे व्यस्त और लोकप्रिय संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की धुनों को भी अपने सितार से मालामाल किया। उनके इन गीतों में फिल्म ‘गंगा जमुना’ के गीत ढूंढो ढूंढो रे साजना के अंतरे के बीच सितार की झालर, ‘संगम’ के गीत ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम की शुरूआत में सितार की लय ‘आम्रपाली’ के गीत तुम्हें याद करते करते के बीच में सितार की लड़ी ‘सरस्वती चंद्र’ के गीत चंदन सा बदन के शुरूआत में ‘तीसरी कसम’ के सजनवां बैरी हो गए हमार के बीच में ‘महबूब की मेहंदी’ के गीत इतना तो याद है के अंतरे में ‘बदलते रिश्ते’ के मेरे सांसों को जो महका रही है के बीच में और ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के सभी गीतो मेें उस्ताद रईस खान का सितार ही सबसे ज्यादा खनका।
शंकर जयकिशन के नवोन्मेषी जैज़ संगीत एल्बम रागा- जैज़ स्टाइल में भी इनका योगदान रहा । भारतीय रागों पर आधारित इस ग्यारह गीतों के इस एल्बम में सैक्सोफोन ,ट्रम्पेट और ,तबले साथ उस्ताद रईसखान के सितार की कर्णप्रिय जुगलबंदी श्रवणीय है। पाकीज़ा में रेल की सिटी बजने के साथ ही सितार वादन जो मुख्य अभिनेत्री मीना कुमारी की मनोदशा को दर्शाता है बरबस श्रोताओं व दर्शकों का ध्यान आकर्षित करता है । पाकीज़ा में पार्श्व संगीत में जहां भी सितार का प्रयोग है वो सभी उस्ताद रईस खान साहब का ही है ।
वह एक गायक भी थे और 1978 में बीबीसी लंदन के लिए सुपर-हिट गीत घुंघरू टूट गए को सितार के साथ एक वाद्य गीत के रूप में रिकॉर्ड करने वाले पहले सितार वादक थे। रईस और शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान एक जोड़ी के रूप में लाइव कॉन्सर्ट में एक साथ सहयोग और प्रदर्शन करते थे। कुछ समय के लिए रईस खान ने प्रदर्शन करना बंद कर दिया, लेकिन 1980 के दशक में वापस आ गए और अली अकबर खान ने उन्हें कैलिफोर्निया में प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया।
मृत्युपर्यन्त कला को समर्पित उस्ताद रईस खान अपनी चौथी पत्नी बिल्कीस खानम नामक एक पाकिस्तानी गायक से शादी करने के सात साल बाद 1986 में पाकिस्तान चले गए। पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 2005 में प्राइड ऑफ परफॉरमेंस एवं पाकिस्तान के तीसरे सर्वाेच्च नागरिक अवार्ड सितारा-ए-इम्तियाज़ से वर्ष 2017 में नवाज़ा गया। ये ऐसे पहले पाकिस्तानी कलाकार रहे, जिन्होंने 2012 में भारतीय संसद में कला का प्रदर्शन किया। वे गर्व से कहते हैं कि उनके दशकों पुराने एक दिन में 115 सिगरेट पीने की आदत, जो उनके गिरते स्वास्थ्य का कारण है। पांच साल पहले अचानक सिगरेट पीना बंद हो गई, जब डॉक्टर ने उन्हें बंद करने का आदेश दिया। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। नतीजा ये हुआ कि 6 मई 2017 को 77 साल की आयु में पाकिस्तान के कराची में इस महान साधक की सितार के सुर टूट गए। उन्ही की जन्मस्थली में जन्मी स्वर कोकिला लता मंगेशकर सितार का जादूगर कह कर संबोधित करती थी।