राज- काज: नहीं चूके दिग्विजय, बैकफुट पर ज्योतिरादित्य.…
– कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह अपने बयानों के कारण भले लोगों के बीच अपनी विश्वसनीयता घटा चुके हों लेकिन वे ऐसे नेता हैं जिन्हें मालूम है कि कब क्या बोलना है और कैसे मीडिया के बीच खुद को बनाए रखना है। परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा के यहां पड़े छापे और बरामद खजाने के मसले पर भी दिग्विजय नहीं चूके। उन्होंने अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि जब कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी, तब सिंधिया ने दबाव बनाकर अपने समर्थक गोविंद राजपूत को परिवहन और राजस्व विभाग दिलाया था। इसके बाद जब कांग्रेस से उनकी बगावत के बाद भाजपा की सरकार बनी तब भी उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दबाव बना कर गोविंद को परिवहन विभाग दिलाया। दिग्विजय ने कहा कि अब सिंधिया ही बता सकते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। दिग्विजय के बयान से ज्योतिरादित्य बैकफुट पर हैं लेकिन दिग्विजय को जवाब गोविंद ने दिया। उन्होंने कहा कि ‘जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फेंका करते।’ उमंग सिंघार ने दिग्विजय पर कैसे आराेप लगाए थे, हर कोई जानता है। गोविंद का काम देखने वाले संजय श्रीवास्तव ने दिग्विजय के खिलाफ 10 करोड़ की मानहानि का दावा भी ठोंका है।
0 भाजपा ने नहीं की होगी भूपेंद्र से ऐसी उम्मीद….
– स्वभाव से शांत और गंभीर दिखने वाले पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ऐसे तेवर भी दिखा सकते हैं, इसकी उम्मीद न भाजपा नेतृत्व को रही होगी न अन्य किसी को। उन्होंने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को तो आइना दिखाया ही, दो मुख्यमंत्रियों मप्र के डॉ मोहन यादव और उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी के सामने भरे मंच में भी दमदारी का परिचय दिया। यहां भूपेंद्र मंच पर थे, लेकिन विरोध स्वरूप उन्होंने न तो अपना स्वागत कराया और मौका मिलने पर मंच से कड़े शब्दों में इस बात की शिकायत कर डाली कि बैनर-पोस्टर में उनका नाम और फोटो नहीं है। उन्होंने कहा कि बैनर में फोटो से ज्यादा जरूरी है कि मैं बुंदेलखंड के लोगों के दिल में रहूं। उन्होंने बताया कि मंत्री रहते उन्होंने सागर के लिए क्या किया है? भूपेंद्र के बोल सुनकर मंच पर सन्नाटा खिंच गया। दोनों मुख्यमंत्री और अन्य नेता भूपेंद्र को देखते रह गए। दरअसल, भूपेंद्र और गोविंद सिंह राजपूत के बीच तलवारें खिंची हैं। सागर के कार्यक्रम को लेकर लगे बैनर में न भूपेंद्र का नाम था, न ही दूसरे दिग्गज नेता गोपाल भार्गव का। भार्गव भी इस पर विरोध दर्ज करा चुके थे लेकिन उनकी प्रतिक्रिया सधी हुई थी। बाद में गलती सुधार भी ली गई थी। इससे पहले भूपेंद्र का एक इंटरव्यू तहलका मचाने वाला था, इसमें उन्होंने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा की भी एक बयान के लिए कड़ी आलोचना की थी।
0 जीतू पटवारी के ‘घुटने’ से बैकफुट पर कांग्रेस….!
– जब भी कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनता दिखता है, कुछ ऐसा हो जाता है कि पार्टी को बैकफुट में आना पड़ जाता है। इस बार कांग्रेस के बैकफुट में आने की वजह बना पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का ‘घुटना’। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए एक बयान के कारण कांग्रेस आंदोलित है। मप्र में भी आंदोलन चल रहा है। इसे लेकर भाजपा बचाव की मुद्रा में है। अचानक आंदोलन के दौरान जीतू पटवारी बाबा साहेब की फोटो वाला पोस्टर अपने घुटने में रखकर कुछ लिखने लगे। बस क्या था, भाजपा को मुद्दा मिल गया। उसने इसे बाबा साहेब के अपमान से जोड़ दिया। हालांकि किसी कांग्रेसी ने जीतू को इस गलती की ओर ध्यान दिलाया तो उन्होंने तत्काल पोस्टर उठाकर हाथ में ले लिया। अगली बार आंदोलन में वे बाबा साहेब के पोस्टर को सिर के ऊपर रखे नजर आए। इसे लेकर भी भाजपा ने तंज कसा और कहा कि कल अपमान किया और आज बाबा साहेब को सिर माथे लगा रहे हैं। पटवारी तेजतर्रार नेता हैं। प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने मेहनत भी कर रहे हैं लेकिन उन्हें ऐसी गलतियां करने से बचना चाहिए। इससे पहले विधानसभा के घेराव के दौरान अच्छी भीड़ जुटी थी लेकिन मंच से ही गिरफ्तारी देकर वे आलोचना के पात्र बन गए थे। आरोप लगा था कि पुलिस के डंडों के डर से उन्होंने ऐसा कर दिया।
0 भाजपा नेताओं में फिर जागी उम्मीद की किरण….
– मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की भाजपा सरकार अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी है, लेकिन राजनीतिक नियुक्तियों के मामले में वह पूर्ववर्ती शिवराज सिंह सरकार के नक्शेकदम पर है। शिवराज जल्दी राजनीतिक नियुक्तियां नहीं करते थे। यही स्थिति मोहन सरकार की है। एक साल पूरा हो गया लेकिन नेता निगम-मंडलों सहित अन्य संस्थाओं में नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। फर्क यह है कि मोहन सरकार में इसे लेकर उम्मीद कायम है। उम्मीद खुद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की घोषणाओं ने जगा रखी है। पहले सदस्यता अभियान के दौरान उन्होंने कहा था कि इसमें जो नेता-कार्यकर्ता अच्छा काम करेंगे, उन्हें राजनीतिक नियुक्तयों में प्राथमिकता दी जाएगी। सदस्यता अभियान पूरा हो चुका लेकिन नियुक्तियों का सिलसिला शुरू नहीं हुआ। अब मुख्यमंत्री ने कहा है कि संगठन चुनाव समाप्त होने के बाद राजनीतिक नियुक्तियां की जाएंगी। ऐसा कह कर उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक, इसकी वजह से संगठन चुनाव के बाद पार्टी के अंदर असंतोष नहीं भड़केगा और दूसरा, नेताओं के अंदर नियुक्तियों को लेकर उम्मीद बरकरार रहेगी। मुख्यमंत्री ने यह घोषणा भी की है कि मार्च के बाद सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के तबादलों से प्रतिबंध हटाया जाएगा। इसकी मांग भी मंत्रीगण और पार्टी नेता करते आ रहे थे।
0 भाजपा नेतृत्व के पाले में गेंद डालने के मायने….
– भाजपा में इस समय संगठन चुनाव चल रहे हैं। मंडल अध्यक्षों के चुनाव हो चुके हैं, अब जिलाध्यक्षों के निर्वाचन की प्रक्रिया चल रही है। हैरान करने वाला निर्णय यह है कि जिलाध्यक्षों के 3-3 नामों के पैनल भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के पास भेजे जाएंगे और वहां से ही जिलाध्यक्षों के नामों का ऐलान होगा। बड़ा सवाल यह है कि आखिर जिलाध्यक्षों के नामों का फैसला करने की गेंद केंद्रीय नेतृत्व के पाले में क्यों डाली गई? मंडल अध्यक्षों की तरह जिलाध्यक्षों के निर्वाचन के लिए भी गाइडलाइन तय की जा चुकी है। भाजपा को अनुशासित पार्टी माना जाता है। अपवाद छोड़कर यहां विरोध के स्वर कम उठते हैं। उठते भी हैं तो नेतृत्व उन्हें दबाने में सक्षम है, फिर भी जिलाध्यक्षों का चयन केंद्रीय नेतृत्व करेगा, आखिर क्यों? पार्टी को जिलाध्यक्षों की घोषणा के बाद असंतोष का लावा फूटने का डर तो नहीं है? मंडल अध्यक्षों के चुनाव के बाद यह बानगी देखने को मिल चुकी है। विरोध के स्वर देखते हुए पार्टी को 50 मंडल अध्यक्षों का चुनाव रद्द करना पड़ा है क्योंकि इसमें गाइडलाइन का पालन नहीं हो सका। वैसे भी प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की घोषणा केंद्रीय नेतृत्व करे तो समझ आता है, यदि जिलाध्यक्ष भी नेतृत्व तय करने लगा तो प्रदेश इकाई का क्या औचित्य? भाजपा विपक्ष में थी तब ऐसा नहीं होता था। लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होते थे।
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