
Raja Murder Case: सोनम-प्रवृत्ति पवित्र रिश्तों का नासूर बन रही है
रमण रावल
मैं नहीं जानता कि मेरी बात जिन भी लोगों तक पहुंचेगी, वे अपने भीतर की सोनम प्रवृत्ति को निकाल फेंकेंगे या नहीं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि वह युवक है या युवती, क्योंकि निकृष्ट व्यवहार,हिंसक क्रियाकलाप,अपनी सनक, जिद, हठधर्मिता के कारण अपने ही जीवन साथी की नृशंस हत्या जैसा जघन्य कृत्य कर डालना-यह एक व्यक्ति का कृत्य नहीं बल्कि प्रवृत्ति है। आज किसी सोनम ने किया, कल कोई राजा वैसा कर दे तो वह भी सही नहीं है। इसलिये, समाज में और विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी में पनप रही नकारात्कता,स्वेच्छाचारिता और अपने मन के संतोष के लिये किसी भी हद से गुजर जाने वाले कृत्य की प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही तेजी से बढ़ रही है। इस पर समग्र रूप से संपूर्ण समाज को अविरत,गंभीर,परिणाममूलक विचार करना होगा। इन आसुरी प्रवृत्तियों में बढ़ोतरी समाज की पारंपरिक मान्यताओं,मूल्यों,जीवन पद्धति को ही बदलती जा रही है।

यदि सोनम-राजा मसले की अभी तक सामने आई कहानी पर चिंतन करें तो बेहद साधारण से समाधान समाने आ जाते हैं, बशर्ते संबंधित पक्ष समय रहते,उस पर विचार कर लें। जैसे सोनम को अपने परिवार के संस्थान में काम करने वाले राज से प्यार था। मुझे तो इस रिश्ते पर ही संदेह है, क्योंकि जो किसी से बेतरह प्यार करता है,वह किसी दूसरे की हत्या कैसे कर सकता है? याने ऐसे व्यक्ति के भीतर प्यार का झरना तो बह ही नहीं सकता। प्यार करने वाले इस जमाने ने असंख्य देखें हैं, जिन्होंने जीवन भर अपने प्यार से दूर रहना तो स्वीकार किया, लेकिन प्रतिशोध में कोई हिंसक,अनुचित,अमान्य तौर-तरीके नहीं अपनाये।

अब मान भी लें कि उसका दिल राज के लिये धड़कता भी था तो कितने सारे विकल्प खुले थे। वह परिवारजन से कह देती। जिद पकड़ लेती कि शादी करेगी तो राज से या कुआरी रहेगी। फेरों के समय हट जाती। यदि तब परिवार की बदनामी का डर था तो जो अब हुआ,उससे क्या परिवार और स्वयं की वाहवाही हो रही है ? ऐसा भी अनंत बार हुआ है। वह अपना घर छोड़कर राज के साथ चली जाती। भले ही इंदौर में न रहकर कहीं और जा बसती। कुछ प्रेमी जोड़े जीवन भर लापता रहते हैं। परिजन भी उन्हें भुला देते हैं। राज भी अगर सोनम से प्यार करता था तो सोनम को समझाता कि राजा की हत्या का सोचे भी नहीं । यदि सोनम ऐसी कोई बात करेगी तो वह उसे नहीं अपनायेगा। जब शादी की बात चल रही थी या सगाई हो गई थी, तब राजा से एकांत में, फोन पर कह देती कि वह स्वयं इस रिश्ते के लिये मना कर दे, क्योंकि वह राज से प्यार करती है। बेहद आसानी से राजा मान जाता और इसमें ही खैर मनाता कि शादी के बाद का जीवन बरबाद होने से बच गया।

इस मसले को देखकर लगता है कि सोनम और राज दोनों के ही भीतर प्यार का नर्म-नाजुक अहसास तो था ही नहीं । यदि एक कण मात्र भी होता तो कोई तो पहल करता,अपने साथी को समझाता-मनाता कि शादी न करे और परिवार वालों को बताये-मनाये। याने महिला-पुरुष के रिश्ते में अब प्यार की तो कोई जगह ही नहीं बची ? अमृता प्रीतम जीवन भर साहिर लुधियानवी से खुल्लम-खुल्ला प्यार करती रही। राधा ने,मीरा ने कृष्ण से वो प्यार किया, जिसकी मिसाल इस ब्रह्मांड के कायम रहने तक दी जायेगी। मीरा ने तो इस प्यार के लिये जहर पीकर जान दे दी, बनिस्बत किसी की जान लेने के। प्यार उन 16 हजार महिलाओं ने वासुदेव से किया,जिन्हें एक असुर की कैद से श्रीकृष्ण ने छुडा तो लिया, लेकिन उनके घर-परिवार-समाज ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। उन्हें सम्मान कृष्ण ने अपनाया और द्वारिका ले जाकर बसाया। वे नारियां कृष्ण की पत्नियां नहीं थी, प्यारी थी। वहां शरीर नहीं मन का मिलन प्रमुख था।

इसलिये मेरा दृढ़ मत है कि न सोनम न राज एक-दूसरे के प्यार में थे। ऐसा कोई भी व्यक्ति किसी से प्यार कर ही नहीं सकता, जो अपने कथित प्यार को पाने के लिये किसी दूसरे के प्यारे की निर्ममता से जान ले ले। यह भौतिकतावाद भी नहीं है कि राज कोई नव धनाड्य या रईस घराने का तो था नहीं। शक्ल,अक्ल और हैसियत से वह निरा फटीचर था। जो युवक अपने परिवार के संस्थान में 10-20 हजार के वेतन पर नौकरी करता हो, जिसकी शक्ल-सूरत साधारण से भी कमतर हो, जिसकी कद-काठी औसत से भी कम हो, जिसकी कोई सामाजिक छवि चमकीली न हो, जो पारिवारिक दृष्टि से कमतर हो, वह भी प्यार करने लायक तो हो सकता है, लेकिन कुछ वैसा तो हो, जो उसे विशेष,आकर्षक,असाधारण बनाता हो। राज तो कतई नहीं हो सकता,जिसकी बदौलत सोनम ने एक घर का चिराग बुझा दिया,अपना ही सुहाग उजाड़ दिया। इस पावन रिश्ते को कलंकित कर दिया।

सोनम-राज का यह कोई पहला और आखिरी भी प्रसंग नहीं है। चूंकि हमारे जीवन मूल्य बोथरे हो गये हैं। आचरण में घोर दोगलापन आ गया है। महत्वाकांक्षा बेहतर पाने की ओर न ले जाकर निकृष्टता के दलदल में गिराती जा रही है । सुख,वैभव,ऐशो-आरामपूर्ण जीवन की लालसा का अतिरेक हिलोरे लेने वाले इस दौर में नैतिक,संयमी,संतुलित,दोषमुक्त जीवन जीने वाले को हेय दृष्टि से देखा जाता हो, वहां सोनम-राज की युति बलवती होती रहेगी और कोई न कोई राजा रघुवंशी बलि चढ़ता रहेगा।
इसलिये सोचने और दृढ़तापूर्वक क्रियान्वयन की पहल अभिभावकों को करना होगी। समाज को चिंतन करना होगा कि पुरातन भारतीय सामाजिक व्यवस्थायें परिष्कृत तरीके से, वर्तमानि संदर्भों के साथ कैसे व्यवहार में लाई जाये। संयुक्त परिवार,छोटों की बातों को मन की बात कहने की स्वतंत्रता,अनावश्य डांट-फटकार से बचना,जीवन के महत्वपूर्ण मामलों में संबंधित की राय को सुनना-समझना। शिक्षा,आजीविका,शादी जैसी बातों में बाध्यतापूर्ण दबाव को दरकिनार करना आदि ऐसी बातें हैं, जो वर्तमान समय की मांग है। यदि अबोला,जबरदस्ती,समाज के कहने-सुनने को प्राथमिकता देकर अपने बच्चों की भावनाओं की उपेक्षा करना जारी रखेंगे तो सोनम-राजा जैसे कांड रोके नहीं जा सकेंगे।





