Rajasthan Vidhansabha Election 2023:राजस्थान के उत्तर में “आप” और दक्षिण में “बाप “
गोपेंद्र नाथ भट्ट की खास रिपोर्ट
नई दिल्ली। भौगोलिक दृष्टि से देश के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान के उत्तर में इस बार “आप” पार्टी और दक्षिण अँचल में “बाप“ पार्टी मज़बूती से अपना भाग्य आज़माने के प्रयास में है।दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पंजाब से सटे प्रदेश के उतरी भाग श्रीगंगा नगर और हनुमानगढ़ जिलों में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के सहयोग से डेरा जमाने की जुगत में है।इसी तरह प्रदेश के दक्षिणी आदिवासी अँचल में बीटीपी के टूटने के बाद बनी “बाप “ पार्टी इस बार मज़बूती के साथ विधान सभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। इन अंचलों में त्रिकोणीय मुक़ाबला होना तय दिखने से कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों की नींद उड़ी हुई है।
एक जमाने में दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाक़ों में एक मात्र कांग्रेस पार्टी का दबदबा था और सत्रह वर्षों तक एक छत्र मुख्यमंत्री रहें मोहनलाल सुखाडिया और उसके बाद हरिदेव जोशी और हीरालाल देवपुरा के अलावा भोगी लाल पण्ड्या और भीखा भाई भील जैसे कई बड़े नेताओं के कारण अन्य कोई दल मुक़ाबले में ही नही टिकते थे।एक मात्र डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मण सिंह ऐसे नेता थे जोकि अपनी स्वतन्त्र पार्टी के सितारे को बुलन्द करने का प्रयास कर कांग्रेस से टक्कर लेते थे।साथ ही वे भारतीय जनसंघ के दीये को जलायें रखने तथा बाँसवाड़ा में समाजवादियों को भी हर प्रकार से मदद करते थे। कालान्तर में उनके पर कतरने के लिए डूंगरपुर जिले की चारों सीटों को जनजाति उम्मीदवारों के लिए आरक्षित कर दिया गया। उन्हें अपना राजनीतिक वजूद बनाए रखने के लिए अपने पूर्वजों के ठिकाने चितौड़गढ़ में जाकर चुनाव लड़ना पड़ा था । इधर बाँसवाड़ा जिले में समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल की पार्टी का मध्य प्रदेश से सटी विधान सभा सीटों पर ज़ोरदार वर्चस्व था।
वागड़ अंचल में कांग्रेस के दबदबे का अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1977 की कांग्रेस विरोधी ज़बर्दस्त लहर में भी डूंगरपुर की आसपुर विधान सभा सीट से कांग्रेस के भीमजी भाई चुनाव जीत गए। पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के अलावा इस अंचल से इस दौरान चुनाव जीतने वाले वे दूसरे कांग्रेसी थे।आसपुर का कटारा इलाक़ा प्रारम्भ से ही कांग्रेस का अभेद्य गढ़ माना जाता है।पहलें बाँसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों की नौ विधानसभा सीटों में तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हरिदेव जोशी की बाँसवाड़ा विधान सभा सीट ही एक मात्र सामान्य सीट थी जोकि उनके निधन के बाद हुए एक चुनाव के बाद हुए परिसीमन में जनजाति के लिए आरक्षित हो गई। पूरे राजस्थान में आज बाँसवाड़ा और डूंगरपुर ही ऐसे जिले है जहां सरपंच से विधायक और सांसद तक सभी सीटें आदिवासियों के लिए ही रीजर्व हैं।सरकारी सेवाओं में भी इन्ही का आधिपत्य है।हालाँकि एसटी आरक्षण मुद्दे पर अपने हक़ों के लिए उन्होंने काफ़ी लम्बी लड़ाई भी लड़ी है।
एक समय आदिवासियों को अपना माई-बाप मानने वाली कांग्रेस की रुँह आज भारतीय ट्राइबल पार्टी (बी.टी.पी.) की टूट के बाद सभी आदिवासी समूहों को मिला कर बनाई गई नई भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप ) के कारण काँप रही हैं।राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में यह एक नई ताक़त के साथ सामने आ रही है।इस नव गठित पार्टी बाप ने कांग्रेस के साथ ही बीजेपी की नींद भी उड़ा रखी है।कांग्रेस ने विश्व आदिवासी दिवस नौ अगस्त को अपने नेता राहुल गाँधी की एक विशाल रैली आदिवासियों के जलियाँवाला बाग कहे जाने वाले राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमाओं से लगे मानगढ धाम पर कराई थी।इस रैली से कांग्रेस ने तीन प्रदेशों के आदिवासी वोटरों को साधने का प्रयास किया था।बताते है कि राहुल गाँधी जब मानगढ धाम पर बड़ी रैली कर रहे थे उसी दिन बाप पार्टी समर्थक आदिवासियों की एक बड़ी सभा उदयपुर जिले के झाड़ोल-फलासिया में कर रहें थे।कहते है इस सभा में यह निर्णय हुआ कि इस बार उदयपुर और बाँसवाड़ा संभाग की सत्रह जनजाति सीटों में से पूरी नही तों कम से कम आधी सीटों पर हर हाल में बाप पार्टी का कब्जा कराना है। पिछले विधानसभा चुनाव में डूंगरपुर जिले की सागवाडा और चौरासी सीटों पर बीटीपी के सिर्फ़ दो विधायक जीतें थे। साथ ही अन्य सीटों पर भी बीटीपी ने कांग्रेस-भाजपा के समीकरण बिगाड़ दिए थे। बाप पार्टी के लोग इस बार खेरवाड़ा के पास राष्ट्रीय राज मार्ग पर हुई हिंसक घटनाओं में आदिवासी युवकों पर अभी तक चल रहें मुक़दमों से बहुत नाराज़ है और हर माह डूंगरपुर जिला कलक्टर कार्यालय पर धरना प्रदर्शन आदि कर रहें है।
राजस्थान में इस साल के अंत में यानि कुछ ही महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।पूरे देश की नजरें इस चुनाव पर है क्योंकि यहाँ भाजपा की ओर से स्वयं प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मध्य दिलचस्प मुक़ाबला होना है वहीं, राजस्थान की मुख्य पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस की नजरें मेवाड़ और वागड़ अंचल के आदिवासियों पर हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछलें दिनों लगातार यहां के दौरे किए हैं। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी इस अँचल का दौरा कर चुके हैं लेकिन इसके बावजूद इनके लिए भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) एक बड़ी चुनौती बन कर उभर रही है।उदयपुर से वर्षों तक विधायक रहें बीजेपी के दिग्गज नेता गुलाब चंद कटारिया के असम का राज्यपाल बनने के बाद इस पूरे इलाक़े में भाजपा की ताकत प्रभावित हुई है। हालाँकि वनवासी कल्याण परिषद,भारत विकास परिषद और अखिल भारतीय विद्धयार्थी परिषद तथा आरएसएस के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने अपनी पूरी ताकत इन इलाक़ों में लगाई हुई है।
बाप पार्टी हालाँकि नई पार्टी है लेकिन इस संगठन की विचार धारा बहुत पुरानी है। कांग्रेस में मंत्री रहते हुए और अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा सांसद रहते हुए भी भीखा भाई भील ने राजस्थान, गुजरात,मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमावर्ती आदिवासी इलाक़ों को मिला कर एक अलग भील प्रदेश बनाने का सपना देखा था और मध्य प्रदेश तथा गुजरात के आदिवासी सांसदों और अन्य नेताओं ने उनकी इस माँग का पूरज़ोर समर्थन किया था। कमोबेश बीटीपी और बाप पार्टी का भी यहीं राजनीतिक मन्तव्य है। वे इस अभियान को कतिपय लोगों द्वारा नक्सलवाद के मार्ग पर चलने का आरोप लगायें जाने से भी काफ़ी खिन्न है।
दक्षिणी राजस्थान प्रदेश में सबसे बड़ा आदिवासी क्षेत्र है।यहां अन्य समाज़ों की तुलना में बड़ी संख्या में करीब 70 प्रतिशत से अधिक आदिवासी रहते हैं। इसी कारण एक विचार धारा को लेकर आदिवासी समाज बहुत अधिक संगठित है। पिछले चुनाव में यहाँ के मतदाताओं ने बीटीपी को अपना समर्थन दिया था जिससे बीटीपी के दो उम्मीदवार विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहें थे।इसके बाद बड़ी संख्या में आदिवासी बीटीपी से जुड़ते गए । खास कर युवा सबसे ज्यादा बीटीपी में शामिल हुए लेकिन आदिवासी समाज के लोग बीटीपी के दोनों विधायकों के प्रदर्शन, समय-समय पर कांग्रेस को अपना समर्थन देने और पार्टी के संगठन से बहुत अधिक खुश नही थे, इसलिए सभी समूहों ने मिल कर अब एक नई पार्टी बाप को जन्म दिया है।इस पार्टी में अब ट्राइबल यूथ विंग के कार्यकर्ताओं का फैलाव ज्यादा हो गया है।जिससे आदिवासी समाज और अधिक संगठित हों गया है। आदिवासी युवाओं ने ब्लॉक से राष्ट्रीय स्तर तक सोशल मीडिया पर एक ग्रुप बना भी दिया है।इस ग्रुप में वे सिर्फ एक मैसेज डालते हैं और इस मैसेज से लाखों लोग गन्तव्य स्थान पर आ जाते हैं।युवाओं की ऐसी मजबूत कम्यूनिकेशन चैन बनी हुई है। इसका उदाहरण पिछलें शनिवार को मानगढ़ धाम में भी देखा गया जहां कांग्रेस समर्थित युवाओं ने इस तरीक़े से सन्देश भेजें थे और राहुल गाँधी की रैली में तीन से चार लाख लोग एकत्रित हुए थे। ना कोई पोस्टर लगा , ना कोई बैनर, ना मीडिया और सोशल मीडिया में इतना अधिक प्रचार लेकिन इतनी अधिक संख्या में लोगों का सिर्फ एक मैसेज से आना उनकी कम्यूनिकेशनस्किल को दर्शाता है। वैसे जब-जब भी चुनाव आते है राजनीतिक पार्टियां लाखों रुपए खर्च कर बड़ी-बड़ी सभाएं करती है और भीड़ जुटाने करने के लिए कार्यकर्ता कई-कई दिनों तक ग्रामीण क्षेत्रों में घूमते है।ऐसे कार्यक्रमों का भारी प्रचार-प्रसार किया जाता है, लेकिन आदिवासी समाज में लोगों को एकत्रित करने का वर्षों पुराना एक और अलग ही तरीका है जिसमें आदिवासियों की बड़ी-बड़ी पालों में रहने वाले लाखों लोग ढोल की एक डंकार और थाप पर ही मिनटों में इकट्ठे हो जाते है।इस तरीके का उपयोग आज भी किया जाता है।
नव गठित बाप पार्टी में कोई बड़ा लीडर नहीं है, नहीं कोई चर्चित नाम ही हैं।इनकी सभाओं में कितने भी लोग आए, मंच नहीं बनता है। सब एक ही जाजम पर एक समान रूप से बैठते हैं क्योंकि वे अन्य पार्टियों की चली आ रही परंपराओं को खत्म करना चाहते है।
बाप पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में दक्षिणी राजस्थान की सभी 17 आदिवासी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।इनके उम्मीदवार भी समाज के लोग ही चुनते हैं। जैसे डूंगरपुर जिले के चौरासी और सागवाडा विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण सबके सामने है। इसे और भी आसान तरीक़े से समझा जा सकता है। चौरासी विधान सभा में करीब 90 पंचायत है।सभी पंचायतों के लोग मिलकर उम्मीदवारों का नाम तय करती है।पंचायत में भी तय करने से पहले लोगों की बैठक लेकर उनकी राय पूछी जाती है।जैसे इन पंचायतों में यदि चार पाँच उम्मीदवारों के नाम सामने आए।ऐसे में जिसका सबसे ऊपर यानि लोगों ने जिसे सबसे अधिक पसंद किया है उसे टिकट मिल जाता है।सरपंच,प्रधान आदि के चुनाव में भी इसी तरीक़े से उम्मीदवार चुने जाते है। अब विधानसभा के उम्मीदवार तय करने के लिए बाप इसी तरह की तैयारी कर रही है।विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बाप पार्टी आने वाले दिनों में वागड़ और मेवाड़ अंचल में एक बड़ी सभा करने जा रही है।
इसी प्रकार श्री गंगा नगर और हनुमानगढ़ में प्रारम्भ में कांग्रेस का दबदबा रहा लेकिन बाद में भाजपा ने भी बाजी मारी । हालाँकि यहाँ एक बार मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत को भी हार का सामना करना पड़ा।इस अंचल में समाजवादी पार्टी के नेताओं और कम्युनिस्ट पार्टी भी अपना किस्मत आज़माती रही लेकिन कालान्तर में धन्नासेठ भी निर्दलीय रूप से चुने गए।
कुल मिला कर इस बार उत्तर राजस्थान में ”आप“ और
दक्षिणी राजस्थान में “बाप” पार्टी की नए अन्दाज़ में एंट्री ने कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों की नींद उड़ाई हुई है, हालाँकि दोनों दल ऐसा नही मानते और उनका कहना है कि बीटीपी के टूटने से आदिवासी मौर्चे की ताकत कमजोर हों गई है। इसी प्रकार राजस्थान में अभी आप पार्टी को कोई वजूद नहीं है, लेकिन इन अंचलों में त्रिकोणीय मुकाबला तय दिखाई देने से दोनों पार्टियाँ चिन्तित अवश्य दिखाई दे रहीं हैं।
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