राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी : शिवराज … अब तो विरोधी भी थक गए हैं अटकले लगाते लगाते
– मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के भविष्य को लेकर अटकलें लगाने वाले भी अब थक से गए हैं। 25 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव से शुरू हुआ यह सिलसिला अब भी जारी है। अब यह कहा जाने लगा है कि कुछ। भी 2023 के चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में नहीं होंगे। अब बात उठती है कि शिवराज नहीं तो कौन?
अटकलबाज एक-एक करके सारे नाम गिनाते हैं, लेकिन आखिर में यही कहते हैं कि इनमें से कोई भी शिवराज का मुकाबला तो नहीं कर सकता। अब इस कड़ी में जो नाम वे गिनाते हैं, उन पर एक नजर डालें वीडी शर्मा, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया।
जिनकी मदद से ये जीते थे चुनाव वे ही अब आंखें तरेरने लगे हैं
– कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद भी मंत्री पद बचाने में कामयाब रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के ज्यादातर मंत्रियों की राह अब आसान नहीं दिख रही है। जिस अंदाज में ये लोग उपचुनाव जीते थे, वह अंदाज अब बरकरार रहा नहीं है। जिन लोगों की मदद से ये चुनाव जीते थे, वे अभी से आंखें तरेरने लगे हैं, जबकि चुनाव में अभी 14 महीने बाकी हैं।
इन मंत्रियों के विभागों के जो किस्से छनकर सामने आ रहे हैं, वे सरकार के स्तर पर इनकी दुर्दशा को भी बयां कर रहे हैं। देखना यह है कि भाजपा की तगड़ी स्क्रीनिंग के बीच इनमें से कितने अपने को सुरक्षित रख पाते हैं। यह भी भाजपा बनाम सिंधिया की भाजपा का ही एक एपीसोड है।
आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा कैलाश विजयवर्गीय को
– जे.पी. नड्डा ने बड़ा उलटफेर करते हुए ज्यादातर राज्यों को नए प्रभारी दे दिए। पर कैलाश विजयवर्गीय की नई भूमिका अभी तक तय नहीं हो पाई है। उन्हें क्या जिम्मेदारी मिलेगी, इस पर सबसे ज्यादा नजर मध्यप्रदेश के साथ ही इंदौर के नेताओं की है।
पहले कहा जा रहा था कि उन्हें किसी चुनाव वाले राज्य का प्रभारी बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। इधर विजयवर्गीय विरोधियों के स्वर मुखर होते जा रहे हैं, वे कहते हैं कि बंगाल के चुनाव के बाद यदि विजयवर्गीय के साथ ऐसा हो रहा है तो इसका कारण आप खुद समझ लीजिए।
सिंधिया का यह अंदाज और मध्य प्रदेश की क्रिकेट पॉलिटिक्स
– मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के कार्यक्रम में जिस अंदाज में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कैलाश विजयवर्गीय का हाथ थामा और मंच पर ले गए, वह मध्यप्रदेश की क्रिकेट पॉलिटिक्स में कई समीकरण बदल सकता है।
एमपीसीए के दो चुनाव में विजयवर्गीय के खिलाफ मजबूती से सिंधिया का साथ देने वालों को तो यह अंदाज बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने इस पर उंगली उठाने से भी परहेज नहीं किया। चूंकि मामला सिंधिया का है, इसलिए कोई खुलकर बोलना नहीं चाहता है। इससे इतर वे तमाम लोग बड़े खुश हैं, जो विजयवर्गीय के साथ खड़ा होने के कारण क्रिकेट में परेशानी में थे।
सकलेचा जी, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
– कहते हैं न कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, ऐसा ही मध्यप्रदेश के एमएसएमई मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा के साथ हुआ। सखलेचा पिछले 10 साल से अपने विधानसभा क्षेत्र जावद के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों का शिक्षा का स्तर सुधारने में लगे हुए थे।
शुरुआत उन्होंने सरकारी स्कूलों का बुनियादी ढांचा व्यवस्थित करने से की और फिर सारा ध्यान बच्चों के प्रशिक्षण और काउंसलिंग पर दिया। नतीजा पिछले साल से मिलना शुरू हुआ और इस साल यहां के सरकारी स्कूलों के 12 बच्चे नीट और पांच जेईर्ई एडवांस में सिलेक्ट हुए।
जिनका नाम चलता है वे रह जाते हैं और तीसरा आगे निकल जाता है
– मध्यप्रदेश में ऐसा कई बार हुआ है कि मुख्य सचिव के लिए नाम किसी का चला और बन कौन गया। जब इंद्रनील दाणी सबसे मजबूत दावेदार थे, तब मुख्यमंत्री के इर्दगिर्द सक्रिय रहने वाली चौकड़ी ने एंटोनी डिसा को मौका दिलवा दिया और इसका खूब फायदा भी उठाया। अब नाम अनुराग जैन और मोहम्मद सुलेमान के चल रहे हैं, लेकिन बदली हुई चौकड़ी का पूरा प्रयास है कि किसी ऐसे चेहरे को मौका मिल जाए, जो ‘सरकार’ के साथ ही उनके लिए भी फायदे का सौदा हो जाए। ऐसे में कभी लूप लाइन का मुंह न देखने वाले अपर मुख्य सचिव एस.एन. मिश्रा का नाम जुबां पर आना स्वाभाविक है।
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कृष्णा गौर जैसी ताकत नहीं दिखा पाई इंदौर में मालिनी गौड़
– भोपाल में गोविंदपुरा की विधायक कृष्णा गौड़ के समर्थकों को महापौर परिषद में जब ‘अच्छे’ विभाग नहीं मिले तो उन्होंने सार्वजनिक ऐलान करके विभाग छोड़ दिए। इंदौर में चार नंबर की विधायक मालिनी गौड़ अपने विधानसभा क्षेत्र में तो जिसे चाहा उसे टिकट दिलवा लाईं और इनमें से ज्यादातर जीत भी गए, लेकिन उन्हें विभाग ऐसे दे दिए गए, जहां कुछ खास काम नहीं। लेकिन मालिनी कृष्णा गौर जैसा साहस नहीं दिखा पाई। समर्थक वहीं बरकरार हैं, हां इतना जरूर हुई है कि इसके बाद से वे नगर निगम से थोड़ी दूरी बनाकर चल रही हैं। लेकिन इससे किसी को फर्क पडऩा नहीं।
चलते चलते
कमलनाथ घर आने में प्रवीण कक्कड़ का बढ़ता रुतबा
– कमलनाथ घराने में प्रवीण कक्कड़ इन दिनों बेहद सक्रिय हैं। उनकी सुनी भी खूब जा रही है। इस स्थिति का पूरा फायदा उन लोगों को मिल रहा है, जिन्हें इस घराने के बिग बॉस आर.के. मिगलानी पसंद नहीं करते थे। समझने वालों के लिए इशारा ही काफी है।
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हीरालाल अलावा का नया दांव और आनंद राय का पलटवार
– कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा इन दिनों जिस तरह से मुखर हैं उसका सही कारण दो डॉक्टर आनंद राय ही बता सकते हैं। वैसे इस मुखरता को जयस के एक दिग्गज रविराज बघेल की मुख्यमंत्री के उप सचिव लक्ष्मण सिंह मरकाम से लगातार हो रही मुलाकात से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
पुछल्ला
एसपी यह है पर जिले इनके ससुर चला रहे हैं
– जरा पता करिए ऐसे कौन दो एसपी हैं, जिनके जिलों की कमान उनके ससुर ने संभाल रखी है। यहां लाइन ऑफ एक्शन और उसका फालो दोनों ससुर साहिबान ही तय करते हैं। आखिर क्यों न करें, दामाद को एसपी बनवाने में यही ससुर तो अहम भूमिका निभाते हैं। इनमें से एक मालवा-निमाड़ में पदस्थ हैं तो दूसरे बुंदेलखंड में।
बात मीडिया की
– दैनिक भास्कर में बड़ा बदलाव हुआ है, बिहार स्टेट एडिटर सतीश सिंह का तबादला डीबी डिजिटल में करते हुए उन्हें न्यूज सेक्शन का प्रभारी बनाया गया है। आने वाले समय में इन्हें और बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।
– साप्ताहिक मातरम इंडिया अब सांध्य दैनिक के रूप में प्रकाशित होने लगा है। इसके संपादक वरिष्ठ पत्रकार ललित उपमन्यु हैं, जो दैनिक भास्कर में अहम भूमिका में रहने के साथ ही दबंग दुनिया के संपादक भी रहे हैं।
– भास्कर डिजिटल भारी उठापटक के संकेत मिल रहे हैं। यह जल्दी ही संभावित है और इसके पीछे मुख्य कारण यहां फैलोशिप पर काम करने वाले कुमार ऋत्विक द्वारा उठाया गया कदम बताया जा रहा है। उन्होंने अपने ही डिजिटल प्लेटफार्म पर जिस अंदाज में बात कही, उसी ने इस उठापटक की भूमिका बनाई है।
– न्यूज 18 का लोकल चैनल भी आ रहा है, जिसके लिए युवा चेहरों की तलाश है, इसका काम डिजिटल पर न्यूज 18 को बढ़ाने का होगा।
– युवा पत्रकार निकिता रघुवंशी अब टीम गुड इवनिंग का हिस्सा हो गई हैं।