भारत में कभी भी कुछ भी हो सकता है. कोरोना की तीसरी लहर के बावजूद माघ पूर्णिमा पर संगम में दस करोड़ लोगों ने डुबकी लगाईं तो भारत का शेयर बाजार भी डुबकी लगाने के लिए मचल उठा और शेयर बाजार ने माघ माह समाप्त होने से पहले ही ऐसी डुबकी लगाईं की देशवासियों के एक साथ बारह-तरह लाख करोड़ रूपये डूब गए ,लेकिन गनीमत ये है कि इसके लिए न नेहरू जिम्मेदार हैं और न मोदी जी .इसलिए जिनके डूबे उन्हें उबारने की जिम्मेदारी भी कोई नहीं लेना चाहता .
शेयर बाजार में देश की एक बड़ी आबादी अपनी कमाई को दोगुना,तीन गुना करने के फेर में पैसा लगाती है .इसमें वो 80 करोड़ की आबादी शामिल नहीं है जो सरकार से मुफ्त का राशन पाती है,इसमें वो आबादी शामिल है जिसके बच्चों को सरकारें मुफ्त में स्कूटी,लेपटाप और मोबाइल फोन बांटती है ,यानि मध्यम वर्ग .शेयर बाजार में देश-विदेश का पैसा लगा होता है. सरकारी कम अ-सरकारी ज्यादा .इसीलिए जब शेयर बाजार डुबकी लगाता है तो सरकार तो मौन रहती है लेकिन आम आदमी की कमर टूट जाती है .आम आदमी की कमर होती ही टूटने के लिए है.उसे कभी मंहगाई तोड़ती है तो कभी कराधान .
ताजा खबर ये है कि देश के शेयर बाजार में पिछले दो सत्र में बिकवाली की वजह से निवेशकों के 12.43 लाख करोड़ रुपये डूब गए हैं. बीएसई का कम्बाइंड मार्केट केप गुरुवार को 267.81 लाख करोड़ रुपये पर रहा था जो सोमवार को गिरकर 255.38 लाख करोड़ रुपये पर रह गया.कहते हैं कि घरेलू शेयर बाजारों में करीब एक साल भर में यह सबसे गिरावट रही. इससे पहले 26 फरवरी, 2021 को सेंसेक्स में 1,940 अंक और निफ्टी में 568 अंक की गिरावट आई थी.
दुनिया में शेयर बाजार इसी तरह डुबकियां लगाकर आम आदमी का पैसा डूबा देते हैं. शेयर बाजार उछलते भी हैं और यही उछाल निवेशक का सबसे बड़ा लालच होती है .इस बार शेयर बाजार में लगी डुबकी के लिए देश के भीतर प्रकाश में आये एबीजी शिपयार्ड घोटाले के साथ ही यूक्रेन संकट को भी कारण माना जा रहा है .तीसरा बड़ा कारण विदेशी निवेशकों का शेयर बाजार से पैसा निकालना है .शिपयार्ड घोटाला सरकार ने पकड़ा है सो सरकार अपनी पीठ थपथपाने में लगी है .सरकार का कहना है कि ये घोटाला यूपीए सरकार के समय हुआ .गनीमत है कि वजीरे खजाना सीता रमन जी ने इसे नेहरू कल का घोटाला नहीं बताया .
यूक्रेन के संकट से हमारा कोई लेना-देना है नहीं इसलिए सरकार अपने आप बरी हो गयी .विदेशी निवेशकों में भगदड़ के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता था लेकिन यहां भी सरकार के पास अनेक बहाने हैं .सरकार की वजह से विदेशी निवेशक अपना पैसा नहीं निकाल रहे,इसकी वजह दुनिया के ताजा हालात बताये जा रहे हैं .खबर है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने फरवरी के पहले 11 दिन में 14,935 करोड़ रुपये की निकासी की है. इस तरह देखा जाए तो लगातार चौथे महीने में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक बिकवाल बने हुए हैं. इसका असर भी घरेलू शेयर बाजार पर देखने को मिल रहा है.एफपीआई निवेश से मोटे तौर पर बाजार में सेंटिमेंट का पता चलता है.
शेयर बाजार और भारत की खेती-किसानी का चरित्र एक जैसा है .ये दोनों कभी भी डुबकी लगा सकते हैं और कभी भी उम्मीद से ज्यादा दे सकते हैं. इन दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि आपदा के समय पीड़ित किसानों को कभी बीमा से तो कभी प्रधानमंत्री की कृपा से कुछ राहत मिल सकती है किन्तु निवेशक के लिए कोई विकल्प नहीं है. न बीमा न प्रधानमंत्री जी कि कृपा.यहां सब कुछ भगवान भरोसे चलता है बिलकुल हमारी सरकारों की तरह .
एबीजी शिपयार्ड घोटाले की वजह से शेयर बाजार में और अधिक गिरावट देखने को मिली. इस घोटाले की वजह से प्राइवेट सेक्टर और पीएसयू बैंक दोनों के शेयरों पर असर देखने को मिला. इस घोटाले के दंश की वजह से सोमवार को निफ्टी बैंक 4.18 फीसदी लुढ़क गया. अब किसी घोटाले का शेयर बाजार से क्या अंतर्संबंध होता है ये आम आदमी क्या समझे ,ये तो कोई अर्थशास्त्री ही समझा सकता है ? दुर्भाग्य से भारत में ऐसे अर्थशास्त्री या तो हैं ही नहीं या फिर बहुत कम हैं जो आम आदमी के निवेश की चिंता में पीले होते हों .
देश के डूबते-उतराते शेयर बाजार से सरकार एकदम बेफिक्र है. सरकार इसी अनिश्चय के माहौल में नेहरू युग में तमाम बीमा कंपनियों के राष्ट्रीयकरण से बनी भारतीय जीवन बीमा निगम का आईपीओ ला रही है .आपको याद दिला दूँ कि भारतीय जीवन बीमा निगम जिसे आम आदमी एलआईसी के नाम से जानता है की स्थापना नेहरू युग में 1 सितंबर, 1956 को हुई थी। इसकी शुरुआती पूंजी 5 करोड़ रुपये थी। 245 बीमा कंपनियों को मिलाने और उनके राष्ट्रीयकरण के बाद एलआईसी वजूद में आई थी। साल 2000 तक एलआईसी इंडिया में अकेली जीवन बीमा कंपनी थी।
नेहरू युग की इसी एलआईसी की एम्बेडेड वैल्यू आज 5,39,686 लाख करोड़ रुपये है। कंपनी ने सेबी को भेजे ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में यह जानकारी दी है। किसी जीवन बीमा कंपनी की एम्बेडेड वैल्यू में उसके फ्यूचर प्रॉफिट की वर्तमान वैल्यू और एडजस्टेड नेट एसेट वैल्यू शामिल होती है।देश में इस कमपनी के 13 लाख से ज्यादा अभिकर्ता हैं .सितंबर, 2021 में खत्म छमाही में कंपनी ने अपने अभिकर्ताओं को ही 9,815.2 करोड़ कमीशन दिया है। अभिकर्ताओं का कमीशन 2 से 40 फीसदी के बीच है।.नेहरू युग की इसी कम्पनी ने वर्ष 2019 में एलआईसी ने सरकार को 2,663 करोड़ डिविडेंड का भुगतान किया है
बहरहाल उम्मीदों पर आसमान टिका है. भारतीय निवेशकों को उम्मीद है कि माघ माह में डुबकी लगाने वाला देश का शेयर बाजार फागुन में खुशगवार होगा,यहां भी रंग चटखेंगे ,बहार आएगी ,टेसू खिलेंगे .लाखों-करोड़ों डूबा चुके निवेशकों के लिए हमारी शुभकामनाएं ,कि फागुन उनके लिए शुभ हो.