आस्थाओं की जड़ें बहुत गहरी हैं। आस्थाओं से छेड़छाड़ को बर्दाश्त भी नहीं किया जाना चाहिए ,लेकिन आस्थाओं के नाम पर आस्थावानों को बर्बर भी नहीं हो जाना चाहिये । आस्थाओं से छेड़छाड़ करने वाले लोग या तो किसी साजिश का हिस्सा होते हैं या मनोरोगी। इसके साथ अपराधियों जैसा सुलूक होना चाहिए लेकिन किसी को भी कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए। आस्थाओं के नाम पर ही पूरी दुनिया में नृशंसता बढ़ रही है। यही मनुष्यता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
सिखों के मक्का-मदीना कहे जाने वाले अमृतसर में एक युवक द्वारा पवित्र गुरु ग्रन्थ साहब से छेड़छाड़ की कोशिश करने पर सुरक्षा कर्मियों ने पीट-पीटकर मार डाला। निसंदेह गुरुग्रंथ साहब सर्वाधिक पवित्र ग्रन्थ है लेकिन एक सिरफ़िर के छू लेने भर से उसकी पवित्रता पर कोई आंच आ सकती है ये माना ठीक नहीं है ।
जो पवित्र है और जो दूसरों को पवित्र करता है वो किसी के छूने या किसी अन्य अपकृत्य की वजह से अपवित्र कैसे हो सकता है ? बेहतर होता कि आरोपी युवक को पकड़कर सुरक्षाकर्मी पुलिस के हवाले करते और पवित्र गुरुग्रंथ साहब की मान-प्रतिष्ठा के अनुरूप कोई दूसरा रास्ता अपनाते।एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि यह घटना सोची-समझी साजिश के तहत हुई है। इसका मकसद सिखों की भावनाओं को भड़काकर माहौल खराब करना है। पूर्व प्रधान बीबी जागीर कौर ने भी कहा कि यह बड़ी साजिश है। पता लगाने की जरूरत है कि इस साजिश के पीछे कौन हैं। दरबार साहिब हर धर्म के लोगों के लिए खुला है।
अब सवाल ये है कि जब सब मानते हैं कि इस वारदात के पीछे किसी की साजिश हो सकती है तो फिर साजिश का पता लगाने के लिए आरोपी को जीवित रखना जरूरी था या मार देना ? वारदात से उत्तेजना का पैदा होना स्वाभाविक है किन्तु इस उत्तेजना को क्रूरता में बदल देना चिंता जनक है। कट्टरता और क्रूरता दो सगे रोग हैं ,जहर हैं जो पूरी दुनिया में तेजी से फ़ैल रहे हैं। मानवता से ओतप्रोत सिख धर्म को इस कट्टरता और क्रूरता से अपने आपको बचाकर रखना होगा । आपको याद होगा कि इससे पहले किसान आंदोलन के दौरान भी ऐसी ही एक अप्रिय वारदात में एक युवक का सर कलम कर दिया गया था।
मनुष्यता के दुश्मन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी अमानवीय हरकतें करते रहते है। कभी किसी पवित्र ग्रन्थ के बारे में कोई कुछ लिख देता है, कह देता हैं,उसका अपमान कर देते है। पूजाघरों को अपवित्र करने की कोशिश करते हैं और तो और अब उन प्रतिमाओं के साथ छेड़छाड़ करने लगे हैं जो लोगों कि आस्थाओं का प्रतीक बन चुकी हैं। जरूरत इस बात की है कि हम सब इन सब कोशिशों के प्रति सजग रहें। भड़काने पर भी न भड़कें। यदि हम भड़क गए तो फिर सामने वाले का मकसद तो पूरा हो ही गया न ? बीते 15 दिसंबर को ही स्वर्णमन्दिर में ही एक युवक ने गुटका साहिब पवित्र सरोवर में फेंक दिया था। सेवादारों ने युवक को मौके पर ही पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया था उसे जान से मारा नहीं था।
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है कि इस वारदात के बाद राज्य में राजनीति होने लग। आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने इस वारदात को साजिश बताकर जांच की मांग कर डाली । मुख्यमंत्री जी ने घटना की जांच के आदेश भी दे दिए ,लेकिन इससे क्रूरता और कट्टरता का इलाज तो नहीं हु।
पंजाब की ही तरह कर्नाटक में भी ऐसी ही घ्रणित कोशिश हुई। यहां बेंगलूरु में छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति पर स्याही डालने की घटना के बाद से कर्नाटक और महाराष्ट्र की सीमावर्ती इलाकों में तनाव का माहौल है। इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शनिवार को कर्नाटक सरकार की ओर से तत्काल कार्रवाई की मांग की। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मामले में हस्तक्षेप की मांग की। उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज न केवल महाराष्ट्र के बल्कि पूरे देश के लिए देवतातुल्य हैं। शिवसेना प्रमुख ने कहा कि मराठा साम्राज्य के संस्थापक का अनादर और अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
समाज में वैमनष्य फैलाने के लिए जब आये दिन ऐसी कोशिशें कि जाने लगीं हों तब समाज को पहले के मुकाबले ज्यादा सतर्क और संयमित रहने की जरूरत है । हमारे मूर्तिपूजक देश में आस्थाओं से जुड़ी मूर्तियां हमेशा विघ्नसंतोषियों का निशाने पर रहीं हैं। देवी-देवता तो उनके निशानेपर रहते ही हैं लेकिन गांधी और आंबेडकर जैसे जन नेता भी नहीं बचते। हम आस्था के तमाम प्रतीकों का सियासी इस्तेमाल धड़ल्ले से करते हैं लेकिन तब कोई कुछ नहीं बोलता।
तब भी बोलना चाहिये । चुनावी रैलियों में आस्था के प्रतीक रामलीला के पात्रों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। एक साथ योजना बनाकर शिवलिंग नहीं पूजे जाने चाहिए। धर्म और धर्म के प्रतीक मानवीय स्वास्थ्य और चरित्र को उन्नत करने के लिए हैं। ये इतनी नाजुक चीजें नहीं हैं जो कि किसी सिरफिरे के छूने,या छेड़छाड़ करने से अपवित्र हो जाएँ।
हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे पास तो अपवित्र को भी पवित्र करने वाली नदियाँ है। जो युगों से यही काम कर रहीं हैं। आज भी उन्होंने अपना काम बंद नहीं किया है । बड़ा से बड़ा पापी इन पवित्र नदियों में अपने पाप धोने के लिए स्वतंत्र हैं ।
नदियों जैसी उदारता हम सभी धर्मालम्बियों में भी हो तो कहीं ,कोई खूनखराबा हो ही नहीं। साजिशें भले की जाएँ लेकिन उनका कोई असर हो ही न। सिख धर्म के अनुयायियों ने तो हाल ही में हरियाणा में विधर्मियों को नमाज पढ़ने की सुविधा देने के लिए गुरुद्वारों के द्वार खोल दिए थे,वे कैसे क्रूर हो सकते हैं ? जो उदारता हरियाणा में दिखाई गयी वैसी ही उदारता स्वर्ण मंदिर में भी दिखाई जाना चाहिए थी।
मुझे याद आता है कि आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान पवित्र गुरुग्रंथ साहिब ही नहीं बल्कि पूरे स्वर्णदिर की पवित्रता को बचाये रखने में कितने सैन्य अफसरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थीं । वे नंगे पैर, बिना बैल्ट लगाए आतंकियों से जूझने के लिए मंदिर परिसर में घुसे थे । हालांकि इसके बाद भी तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपनी जान देकर इस कोशिश की कीमत अदा करना पड़ी थी।
यही हमारा अतीत है और यही सत्य है कि धर्म ने हमें हमेशा उदार रहना सिखाया है,कट्टर होना नहीं। कट्टरता तालिबानियों को मुबारक। नए साल में देश में पांच राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव आने वाले हैं ,इसलिए इस तरह की भड़काने वाली कोशिशें और भी की जाएंगी। हम सबको सतर्कता के साथ इन कोशिशों को नाकाम करना चाहि।