“राम नाम” की महत्ता, समझ गई है सत्ता…

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सत्ता की समझ में यह बात साफतौर पर आ गई है कि बिना राम नाम के भारत में कुर्सी हासिल नहीं की जा सकती है। भाजपा तो शुरु से ही राम के इर्द-गिर्द केंद्रित राजनैतिक दल था। कांग्रेस अब तक सेकुलर होने पर ज्यादा जोर देती थी, पर अब उनकी समझ में भी आ गया है कि भारत देश में सत्ता की डगर राम नाम रटे बिना संभव नहीं है। रामनवमी के अवसर पर प्रदेश सरकार का संस्कृति विभाग राजा राम की नगरी ओरछा में रामलीला का भव्य आयोजन करने जा रहा है और दीप दान के जरिए राम नाम संग हिंदुत्व की धारा भी पूरे प्रदेश में प्रवाहित करने जा रहा है। तो अब कांग्रेस भी राम नाम संग सत्ता की नैया पार करने का मन बना चुकी है। क्योंकि अब तस्वीर साफ है कि राम नाम बिना काम नहीं चलेगा।
पहले सरकार के आयोजन के प्रचार-प्रसार की बात कर लें, जिसके लिए कई वीडियो जारी हुए हैं। काशी के गंगा मैया के तट से अभिनेता मुकेश तिवारी बुंदेलखंड की पावन नगरी ओरछा को प्रणाम कर जन-जन से आह्वान कर रहे हैं कि रामनवमी पर सभी एक-एक दीप जलाकर राम की नगरी ओरछा और भगवान राम के ऐतिहासिक महत्व को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने में शिवराज का साथ दें।
तो रामनवमी के दिन ही 10 अप्रैल को ओरछा में रंगरेज टीम उज्जैन के रामलीला महोत्सव में राम का किरदार निभा रहे अभिनेता सुनील शर्मा, लक्ष्मण का किरदार निभा रहे अभिनेता देवर्ष नागर, सीता का किरदार निभा रही परिधि शर्मा, अभिनेता विंदु दारा सिंह और अभिनेता गोविंद नामदेव ने रामलीला देखने और दीप जलाने के लिए सभी को आमंत्रित किया है। यह राम प्रेम भाजपा की राजनीति का और विचारधारा का पोषक शुरुआत से ही है। आडवाणी की रथ यात्रा, विवादित गुंबद का ढहना और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत रामजन्म भूमि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण भाजपा के राम प्रेम के ही उदाहरण हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में योगी-2 काल में विकास के साथ काशी विश्वनाथ और राम के नाम का बड़ा महत्व रहा है, यह साफ है। तो शिव भी अब मध्यप्रदेश में राम नाम जपकर विचारधारा का अनुसरण करने में कोई चूक नहीं कर रहे हैं।
वहीं कांग्रेस भी राम नाम संग सत्ता पर संधान करने का मन बना चुकी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने निर्देश जारी किया है कि 10 अप्रैल को रामनवमी पर रामकथा वाचन और रामलीला के आयोजन हों, तो 16 अप्रैल को हनुमान जयंती पर सुंदर कांड का पाठ का आयोजन कांग्रेस के धार्मिक एवं सामाजिक आयोजन के तहत किया जाए। खुद कमलनाथ रामनवमी पर संदेश प्रसारित करेंगे तो हनुमान जयंती पर छिंदवाड़ा में विशेष पूजा-अर्चना करेंगे।
मतलब साफ है कि राम नाम को कांग्रेस कार्यकर्ता भी सुमरेंगे। रामभक्त हनुमान का नाम भी रटकर सत्ता के भवसागर को पार करने का मन कांग्रेस का भी है। कमलनाथ ने राममंदिर की नींव के लिए चांदी की ईंटें भेजी थीं और सत्ता में आने पर सुंदरकांड पाठ का आयोजन भी किया था। तब भी उद्देश्य हिंदुत्व से खुद और पार्टी को जोड़कर यही संदेश देना था कि राम नाम हमारे दिल में था और अब मुख पर भी है। खैर राम जगत के आधार हैं और सब जानते हैं। चाहे दलों की बात हो या मानवों की।
रामचरित मानस के रचियता गोस्वामी तुलसीदास राम नाम की महिमा का बखूबी वर्णन कर चुके हैं। उत्तर कांड में उन्होंने लिखा है कि “कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक अधार राम गुन गाना॥ सब भरोस तजि जो भज रामहि। प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि॥ सोइ भव तर कछु संसय नाहीं। नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं॥ कलि कर एक पुनीत प्रतापा। मानस पुन्य होहिं नहिं पापा॥” यानि कि कलियुग में न तो योग और यज्ञ है और न ज्ञान ही है। श्री रामजी का गुणगान ही एकमात्र आधार है। अतएव सारे भरोसे त्यागकर जो श्री रामजी को भजता है और प्रेमसहित उनके गुणसमूहों को गाता है।
वही भवसागर से तर जाता है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं। नाम का प्रताप कलियुग में प्रत्यक्ष है। कलियुग का एक पवित्र प्रताप है कि मानसिक पुण्य तो होते हैं, पर मानसिक पाप नहीं होते॥ यह दोहा भी है कि “कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास। गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास॥ यानि कि यदि मनुष्य विश्वास करे, तो कलियुग के समान दूसरा युग नहीं है, इस युग में श्री रामजी के निर्मल गुणसमूहों को गा-गाकर मनुष्य बिना ही परिश्रम संसार से तर जाता है॥
यानि कलियुग में संसार से तरने के लिए भी राम नाम जरूरी है और संसार में तर रहने के लिए भी राम नाम जरूरी है। यह अब सबकी समझ में आ गया है। जो पहले से राम नाम जप रहे थे, उन पर इसका असर फलदायी हो गया है। जो अब राम नाम जपने का मन बना चुके हैं, उनकी चिंता भी राम करेंगे। राम नाम की महत्ता 21वीं सदी में सभी की समझ में आ गई है, यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।