Jhuth Bole Kaua Kaate: नेमचेंजर योगी, क्या बनेंगे गेमचेंजर

क्या अब आजमगढ़ की बारी है? चुनाव की दहलीज पर बैठे उत्तर प्रदेश में कई शहरों-स्थानों का नाम बदलने की तैयारी है! मध्य प्रदेश में भोपाल की अंतिम गोंड आदिवासी और हिंदू रानी कमलापति के नाम पर हबीबगंज स्टेशन का नाम धूम-धड़ाके से बदले जाने के बाद इन चर्चाओं को बल मिला है।

बात में दम है क्योंकि उप्र में योगी और केंद्र में मोदी का राज है। योगी आदित्यनाथ ने कभी सांसद रहते गोरखपुर के कई मोहल्लों के नाम भी बदलवा दिए थे। उन्होंने प्राचीन गौरवशाली इतिहास फिर से वापस लाने के अपने अभियान को आगे बढ़ाते हुए फैजाबाद का नाम बदल कर अयोध्या और इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने में देरी नहीं की। हांलाकि, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो ये नाम दोबारा बदल दिए जाएंगे। अब, सवाल यही है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में नेमचेंजर योगी, क्या बनेंगे गेमचेंजर?

पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ आजमगढ़ में एक राज्य विश्वविद्यालय की आधारशिला रखते हुए कहा कि ‘शिक्षण संस्थान सही मायने में जिले को आर्यमगढ़ में बदल देगा।’ सीएम ने एक पोस्ट शेयर की और कैप्शन में लिखा, “विश्वविद्यालय जिसकी आधारशिला मैंने आज रखी, आजमगढ़ को आर्यमगढ़ में बदल देगा और इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।

” पोस्ट में सीएम योगी ने समारोह के दौरान दिए गए भाषण का एक वीडियो भी शेयर किया, जिसमें उन्होंने नाम बदलने का संकेत दिया। आर्यमगढ़, अर्थात् आर्यों का गढ़। आर्य भारत के प्राचीन इतिहास में एक सम्मान सूचक संबोधन माना जाता है। आजमगढ़ का नाम आर्यमगढ़ होने की अटकलों के बीच अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर बड़ा हमला बोला और कहा कि योगी की सरकार सिर्फ नाम और रंग बदलने वाली सरकार है।

योगी सरकार ने राज्य के कई शहरों और गांवों-कस्बों का नाम बदलने का प्रस्ताव केंद्र के पास भेज रखा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिन स्थानों के नाम परिवर्तन के प्रस्ताव पर राज्य सरकार विचार कर रही है, उनमें चूड़ियों के लिए मशहूर फिरोजाबाद जिले को चंद्रनगर, सम्भल को पृथ्वीराज नगर या कल्कि नगर, देववंद को देवव्रंद तथा सुल्तानपुर को कुशभवनपुर किया जाना शामिल है।

बीते दिनों जहां अलीगढ़ की जिला पंचायत ने अलीगढ़ का नाम हरिनगर करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था; वहीं अब, अलीगढ़ एयरपोर्ट का नाम पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नाम पर रखने का भी प्रस्ताव सरकार को भेज दिया है। गौरतलब है कि कल्याण सिंह का जन्म अलीगढ़ में हुआ था। उन्नाव के डीएम ने मियागंज ब्लॉक का नाम मायागंज करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है।

मिर्जापुर जिले का नाम बदलकर विंध्यधाम करने और मैनपुरी का नाम मयन नगर करने का प्रस्ताव भी विचाराधीन है। वहीं, उप्र सरकार ने उन्नाव के पास साधा परगना हसनगंज का नाम बदलकर दामोदर नगर और मुरादाबाद के गांव सरकड़ा खास को सराका विश्नोई किए जाने का प्रस्ताव भी केंद्र को भेजा हुआ है। आगरा को अग्रवन और गाजीपुर को गाधिपुरी करने की भी चर्चा है।

उप्र में पहले भी बदले हैं कई नाम

केंद्रीय गृह मंत्रालय इससे पहले उप्र में कई अन्य स्थानों के नाम बदलने को मंजूरी दे चुका है। इनमें ब्रिटिशकाल के रेलवे स्टेशन रॉबर्ट्सगंज का नाम बदलकर सोनभद्र, मथुरा के निकट स्थित फराह टाउन रेलवे स्टेशन को डीडीयू स्टेशन, इलाहाबाद शहर को प्रयागराज, फैजाबाद जिले को अयोध्या, फैजाबाद जंक्शन को अयोध्या कैंट और मुगलसराय जंक्शन को भारतीय जनसंघ के संस्थापक पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर किया जाना शामिल है।

एक टीवी चैनल के बिहार मंच पर त्तत्कालीन गवर्नर लालजी टंडन ने बताया था कि जब अंग्रेजों ने लखनऊ पर कब्जा कर लिया तो नाचते हुए कहा था कि ‘Luck Now’ यानी आज हमारा भाग्य जग गया, और ‘लक नाउ’ ही बाद में लखनऊ बन गया। उन्होंने कहा कि लखनऊ का नाम बदलकर लक्ष्मणपुर कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि लखनऊ को लक्ष्मण ने बसाया था। बहुत से लोगों को तो यह भी मालूम नहीं होगा कि कानपुर शहर को अंग्रेजों के युग में कन्नपुर के रूप में जाना जाता था। यह पहली ऐसी जगह थी जिसका नाम परिवर्तन, स्वतंत्रता के बाद (एक वर्ष के भीतर) किया गया था।

प्रसंगवश जिक्र जरूरी है कि पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर बांग्ला करने की पश्चिम बंगाल सरकार की बहुप्रतीक्षित मांग अभी लंबित है, क्योंकि इसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होगी। विदेश मंत्रालय ने नए नाम पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा था कि इससे पड़ोसी बांग्लादेश जैसा आभास होता है।

झूठ बोले कौआ काटे

जब भारत वर्ष 1947 में उपनिवेशवाद के चंगुल से बच निकला, तो अंग्रेज और मुगल भारतीय संस्कृति, संस्कारों, साहित्य और मूल्यों पर जिन अपसंस्कारों, हमारी गुलामी के प्रतीकों की छाप छोड़ गए थे, उन्हें हटाने का प्रयास भी शुरू किया गया। हांलाकि, अधिकतर मामलों में यह स्थानों-प्रतीकों के पुनर्नामकरण तक ही सीमित रहा।

शैक्षिक प्रणाली और ढांचे को पहुंचाए गए नुकसान को भारतीय मूल्य-मान्यताओं की पटरी पर लौटाने की बजाय विदेशी आक्रांताओं को महिमामंडित करने का ही काम होता रहा। सरकारें आती-जाती रहीं, शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में छिपे एजेंडे की तरह वामपंथी और तथाकथित सेक्युलर इतिहासविद् एक नैरेटिव सेट करते रहे।

झूठ बोले कौआ काटे, विश्व की आठ बेमिसाल लड़ाइयों में शामिल सारागढ़ी की लड़ाई के बारे में क्या अक्षय कुमार की फिल्म ‘केसरी’ के प्रदर्शन से पहले हम-आप जानते थे? सारागढ़ी की लड़ाई भारतीय सेना के कारनामों का अब तक का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। इसमें 21 सिख जवानों ने 10,000 अफगान सेना के आगे झुकने से इनकार कर दिया था और 600 कबाइलियों को मौत के घाट उतार कर शहीद हुए थे। ऐसी कितनी गौरव गाथाओं को संजोए हमारे इतिहास को चुपके से नजरअंदाज किया जाता रहा।

खैर, कई पुनर्नामकरणों में राजनैतिक विवाद भी हुए। सभी प्रस्ताव लागू भी नहीं हुए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पुनर्नामांकित हुए, मुख्य शहरों में हैं− तिरुवनंतपुरम (पूर्व त्रिवेंद्रम), मुंबई (पूर्व बंबई, या बॉम्बे), चेन्नई (पूर्व मद्रास), कोलकाता (पूर्व कलकत्ता), पुणे (पूर्व पूना) एवं बेंगलुरु (पूर्व बंगलौर)।

जहां तक उप्र का सवाल है, विपक्ष का आरोप है कि शहरों का नाम बदलकर योगी सरकार हिन्दुओं के वोट हासिल करना चाहती है जबकि भाजपा का मानना है कि नाम बदल कर सिर्फ शहरों को उनकी पुरानी पहचान दिलाई जा रही है। इन शहरों के नाम तो विदेशी हमलावरों ने पहले से ही बदल रखे थे।

गौरतलब है कि जब इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हुआ तो पाकिस्तान की मीडिया ने भारत को खूब कोसा कितुं आजादी के बाद पाकिस्तान में भारतीय संस्कृति से जुड़े नामों को कैसे बदला उसे यह याद नहीं आया। जैसे, राज शाही को इस्लामाबाद, हिन्दू बाग को मुस्लिम बाग करना आदि।

Jhuth Bole Kaua Kaate: नेमचेंजर योगी, क्या बनेंगे गेमचेंजर

सीएम योगी आदित्यनाथ तो सांसद रहते ही गोरखपुर के कई मोहल्लों का नाम बदलवाने का अभियान चला चुके हैं। इसी कारण अलीनगर आर्यनगर, उर्दू बाजार हिन्दी बाजार, मियां बाजार माया बाजार और हुमायूंपुर हनुमानपुर हो गया। स्वयं गोरखपुर का वर्तमान नाम 217 साल पुराना है।

इसके पहले नौवीं शताब्दी में भी इसे गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर ‘गोरक्षपुर’ के नाम से जाना जाता था। बाद में शासकों की हुकूमत के साथ इस क्षेत्र का नाम भी बार-बार बदलता रहा। कभी सूब-ए-सर्किया के नाम से जाना गया, कभी अख्तनगर, कभी गोरखपुर सरकार तो कभी मोअज्जमाबाद के नाम से। अंतत: अंग्रेजों ने 1801 में इसका नाम ‘गोरखपुर’ कर दिया जो नौवीं शताब्दी के ‘गोरक्षपुर’ और गुरु गोरक्षनाथ से प्रेरित है।

बोले तो, जब कोई सभ्यता किसी दूसरी सभ्यता को गुलाम बनाती है तो सबसे पहले उसके प्रतीकों को तोड़ती है और नाम परिवर्तित कर देती है। क्योंकि, अगर आपको किसी पर लंबे समय तक राज करना है तो ताकत के बल पर ऐसा सम्भव नही होता है। यह सिर्फ मानसिक रूप से गुलाम बना कर ही सम्भव है। इसके लिए मुगल शासकों ने धार्मिक प्रतीकों को निशाना बनाया तो अंग्रेजों ने शिक्षा-संस्कृति को। इसी सोच के कारण अकबर ने प्रयाग को इलाहाबाद बना दिया ताकि कालांतर में लोग अपने अतीत को भूल जाएं।

इसी प्रकार, भारत शिक्षा के क्षेत्र में काफी अग्रणी था। प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा विश्व स्तर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय थे। यहां पर दूर-दराज से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। कहते हैं कि लॉर्ड मैकाले जब भारत आया तो कुछ वर्ष भारत में गुजारने के बाद इंग्लैड के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में ‘मिनट ऑफ एजुकेशन’ पर बोलते हुए उसने कहा,

“मैंने भारत के कोने-कोने का भ्रमण किया है और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा जो भिखारी हो, जो चोर हो। इतने उच्च नैतिक मूल्यों, इतनी क्षमता के लोग, कि मुझे नहीं लगता कि हम इस देश को कभी जीत पाएंगे, जब तक कि हम इस राष्ट्र की रीढ़ को नहीं तोड़ते,

जो कि उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए, मेरा प्रस्ताव है कि हम उसकी पुरानी और प्राचीन शिक्षा प्रणाली, उसकी संस्कृति, क्योंकि अगर भारतीयों को लगता है कि जो कुछ भी विदेशी है और अंग्रेजी अच्छी है और अपने स्वयं की तुलना में महान है, तो वे अपना आत्म-सम्मान, अपनी मूल संस्कृति को विस्मृत कर देंगे और वे वही बनेंगे जो हम चाहते हैं, वास्तव में हमारे प्रभुत्व वाला राष्ट्र।”

2 फरवरी 1835 को दिये लॉर्ड मैकाले के इस भाषण की सत्यता को लेकर कुछ विवाद भी खड़े किये गए। विरोध मे तर्क भी शशि थरूर या वामपंथी इतिहासकारों की पुस्तकों के हवाले से लिए गए। खैर, इस विवाद में न भी पड़ें तो एक बात तो तय है कि मैकाले की पाश्चात्य अवधारणा से भारत की शिक्षा प्रणाली और संस्कृति को गहरा आघात लगा। बोले तो, इसीलिए, आवश्यकता इस बात की भी है कि शहरों-स्थानों के पुनर्नामकरणों के साथ ही शिक्षा प्रणाली और पाठ्यक्रम में भी हमारे गौरवशाली इतिहास को समेटा जाए।

Jhuth Bole Kaua Kaate: नेमचेंजर योगी, क्या बनेंगे गेमचेंजर

शिक्षा भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में है। अर्थात्, केंद्र और राज्य दोनों का क्षेत्राधिकार। पुनर्नामकरण से गौरवशाली इतिहास को वापस लाने के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार भी योगी की प्राथमिकताओं में शुरू से रहा है। प्रसंगवश जिक्र जरूरी है कि योगी आदित्यनाथ पर पुस्तक कर्म योगी (महंत योगी आदित्यनाथ  के कितने रूप) लिखने के क्रम में कई बार स्तंभकार का गोरखपुर स्थित महाराणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जंगल धूसड़ जाना हुआ था।

प्रार्थना की घंटी बजने के पश्चात् एक के बाद एक राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत और विद्यालयगीत समवेत स्वरों में सुनने की अद्भुत-अभूतपूर्व अनुभूति हुई थी। यह विद्यालय गोरक्षपीठाधीश्वर सीएम योगी आदित्यनाथ का आदर्श और ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है।

झूठ बोले कौआ काटे, हमें जापानियों से स्वदेश भक्ति की भावना सीखनी चाहिए। जब, उनके देश की प्रतिष्ठा, इज्जत और भलाई का सवाल उठता है तो वे उसके लिए अपने प्राण तक न्योछावर करने के लिए रहते हैं। शायद वहां के निवासियों के इन्हीं गुणों ने जापान को वैभवशाली बनाया है।

अपनी आजादी के बाद जापान ने राष्ट्रीय जागृति के साथ-साथ पहाड़ों और नदियों तक के नाम बदल डाले। जापान में कोई सांप्रदायिक या मजहबी संस्था राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करती, यद्यपि वहां पर लगभग 500 संप्रदाय हैं। मजहबी बातें राजनीति से अलग रखी जाती हैं और सरकार से सहायता पाने वाले अथवा सरकार द्वारा संचालित शिक्षा संस्थानों से मजहब का कोई संबंध नहीं है।

अब देखना होगा कि क्या डबल इंजन की सरकार में सबका साथ-सबका विकास के साथ सीएम योगी भारत के गौरवशाली अतीत, संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को स्थापित करने की कोशिश करके उप्र में नेम चेंजर से गेमचेंजर बन पाएंगे? या, सपा सुप्रीमो और आजमगढ़ (शायद भविष्य का आर्यमगढ़) से सांसद पूर्व सीएम अखिलेश यादव उनके मंसूबों को ध्वस्त कर देंगे। कांग्रेस की लोकप्रिय नेता प्रियंका गांधी वाड़्रा, बसपा अध्यक्ष और पूर्व सीएम मायावती, आप नेता और सीएम अरविंद केजरीवाल तथा एआईएमएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी सहित लगभग समूचे विपक्ष के घात को प्रतिघात करना भी एक बड़ी चुनौती तो है ही।

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रामेन्द्र सिन्हा
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