पर्यटन
Raneh Waterfall-Grand Canyon of Madhya Pradesh – रंगबिरंगी चट्टानों का तिलस्म
इंसान को यात्राएं करते रहना चाहिए।यात्राएं हमें नए अलौकिक अनुभव कराती है। जिंदगी का कुछ गणित हमें यात्राओं में आसानी से हल होता मिल जाएगा। प्रकृति का निर्देश भाव तो हमें आनंदित करता ही है। रास्तों में मिले अनगिनत अनजान लोग उस जमीन की खुशबू से सराबोर कर देते है। वे जब निस्वार्थ सहायक बनते है तो प्रेम के अनोखे भाव से मन भर देते है। इसलिए यात्राएं करनी चाहिए।
अबकी यात्रा में वह एक ऐसा वैभवशाली नज़ारा था जो मुझे स्तब्ध कर रहा था। हम जैसे ही वहाँ पहुंचे स्तब्ध, चुपचाप खड़े रह गए। मेरे हाथ के मोबाइल पर मैं कैमरा नहीं चल पा रहा था। उस आश्चर्यजनक नजारे को कैद करना चाहता था। पर उसे कोई कैद कर सकता है क्या, वह तो निर्झर, लगातार, अविरत बह रहा था।
उसने मुझे निःशब्द कर दिया। उसके पास पहुँचते ही हम स्तब्ध होकर चुपचाप खड़े रह गए। वहाँ शब्दों की जरूरत नहीं थी केवल अंदर तक महसूस करना था। जलप्रपात की गर्जना मेरे अंदर के तूफान को शांत कर रही थी। यह दृश्य मंत्रमुग्ध करने वाला था।
रानेह झरना पृथ्वी पर सबसे पुरानी चट्टानों पर बना है। विश्व प्रसिद्ध खजुराहो मंदिरों से बीस कि.मी. दूरी पर यह अद्भुत जलप्रपात पन्ना टाइगर रिजर्व का हिस्सा है। विंध्य बेसाल्ट पर बहने वाली केन नदी द्वारा निर्मित यह भारत का एक उत्कृष्ट झरना है। यह गहराई लिए एक मृत वालकेनो है जिसमें बहुत ऊंचाई से पानी गिरता है।
मै आश्चर्यचकित था की प्रकृति का इतना अलौकिक आर्किटेक्ट हमारे मध्यप्रदेश में है जो हर किसी के मन को अंदर तक छू जाए। यहाँ करीब 300 फुट गहराई में अलग अलग जगहों से पानी के सोते फुटते है। हम थोड़ी देर बाद, मानसून की विदाई में यहां पहुंचे थे। यदि भरी बरसात में यहाँ होते तो इस जन्नत के अद्भुत नज़ारे मिलते। पानी जब ऊंचाई से चट्टानों पर गिरता है तो खनिजों के कारण खूबसूरत हरी रंगत लिए बहता है।
बरसात में केन नदी का यह भाग उभरी हुई बेसाल्ट चट्टानों के बीच शीशे सा चमकता है। सहस्त्रधारा वहाँ पिघली चांदी की तरह चट्टानों से गिरती है। केन नदी कटनी जिले में विंध्याचल पर्वतमाला से निकली है जो आगे जाकर यमुना में मिलती है। कैन का प्राचीन नाम कर्णावती है। कार्बन डेटिंग के अनुसार इस मृत ज्वालामुखी की उम्र 450 मिलियन वर्ष है। यहाँ आसपास का जंगल प्राकृतिक है। इसमें कई दुर्लभ जड़ी-बूटियों के पेड़ पौधे शामिल है। सलाई, गोंद का पेड़, सागौन, तेंदू आदि है।
- हमारे गाईड गयासी जब हमें तीसरे व्यू पाईंट पर लेकर गए तो वहां अलग अलग रंगों की चट्टानों का तिलिस्म सामने था। ज्वालामुखी का सेंटर करीब 300 फीट गहरा है।
- यहाँ काले रंग का पत्थर बैसाल्ट का है जिससे लौह अयस्क, पेंसिल का कार्बन बनता है। उसके बगल में रेड कलर की जैस्पर चट्टान है जिससे अंगुठियाँ बनती है। एक हल्का ब्लेक यलो है जो डोलोमाइट है इनमें से हिरे-पन्ने निकलते है। हल्का व्हाईट कलर का चमकदार पत्थर से घड़ी के डायल बनते है। इन पत्थरों को अग्नि चट्टान या इग्निस कहा जाता है। ग्रेनाइट पत्थरों की लम्बी और ऊँची सपाट परते भी नज़र आती है। वहीं व्यू पॉइंट के बिल्कुल नीचे की तरफ चौकोर परतदार ब्लैक चट्टानों का समूह मौजूद है जो ज्वालामुखी से निकला पिघला लावा है। लाखों सालों में यह लावा जम कर पत्थर बन गया है। एक ही जगह पर रंग बिरंगी चट्टानों का अद्भुत तिलिस्म है राहें फॉल। गाईड गियासी के अनुसार रानेह शब्द रैन का अपभ्रंश है जो किसी अंग्रेज ने दिया था।
- सफ़र के साथ सफ़र की कहानियाँ होंगी चट्टानों पर बना है। विश्व प्रसिद्ध खजुराहो मंदिरों से बीस कि.मी. दूरी पर यह अद्भुत जलप्रपात पन्ना टाइगर रिजर्व का हिस्सा है। विंध्य बेसाल्ट पर बहने वाली केन नदी द्वारा निर्मित यह भारत का एक उत्कृष्ट झरना है। यह गहराई लिए एक मृत वालकेनो है जिसमें बहुत ऊंचाई से पानी गिरता है।
- मै आश्चर्यचकित था की प्रकृति का इतना अलौकिक आर्किटेक्ट हमारे मध्यप्रदेश में है जो हर किसी के मन को अंदर तक छू जाए। यहां करीब 300 फुट गहराई में अलग अलग जगहों से पानी के सोते फुटते है। हम थोड़ी देर बाद, मानसून की विदाई में यहाँ पहुँचे थे। यदि भरी बरसात में यहाँ होते तो इस जन्नत के अद्भुत नज़ारे मिलते। पानी जब ऊंचाई से चट्टानों पर गिरता है तो खनिजों के कारण खूबसूरत हरी रंगत लिए बहता है।
बरसात में केन नदी का यह भाग उभरी हुई बेसाल्ट चट्टानों के बीच शीशे सा चमकता है। सहस्त्रधारा वहाँ पिघली चांदी की तरह चट्टानों से गिरती है। केन नदी कटनी जिले में विंध्याचल पर्वतमाला से निकली है जो आगे जाकर यमुना में मिलती है। कैन का प्राचीन नाम कर्णावती है। कार्बन डेटिंग के अनुसार इस मृत ज्वालामुखी की उम्र 450 मिलियन वर्ष है। यहाँ आसपास का जंगल प्राकृतिक है। इसमें कई दुर्लभ जड़ी-बूटियों के पेड़ पौधे शामिल है। सलाई, गोंद का पेड़, सागौन, तेंदू आदि है।
हमारे गाईड गयासी जब हमें तीसरे व्यू पाईंट पर लेकर गए तो वहां अलग अलग रंगों की चट्टानों का तिलिस्म सामने था। ज्वालामुखी का सेंटर करीब 300 फीट गहरा है।
यहाँ काले रंग का पत्थर बैसाल्ट का है जिससे लौह अयस्क, पेंसिल का कार्बन बनता है। उसके बगल में रेड़ कलर की जैस्पर चट्टान है जिससे अंगुठियाँ बनती है। एक हल्का ब्लेक यलो है जो डोलोमाइट है इनमें से हिरे-पन्ने निकलते है। हल्का व्हाईट कलर का चमकदार पत्थर से घड़ी के डायल बनते है। इन पत्थरों को अग्नि चट्टान या इग्निस कहा जाता है। ग्रेनाइट पत्थरों की लम्बी और ऊँची सपाट परते भी नज़र आती है। वहीं व्यू पॉइंट के बिल्कुल नीचे की तरफ चौकोर परतदार ब्लैक चट्टानों का समूह मौजूद है जो ज्वालामुखी से निकला पिघला लावा है। लाखों सालों में यह लावा जम कर पत्थर बन गया है। एक ही जगह पर रंग बिरंगी चट्टानों का अद्भुत तिलिस्म है राहेन फॉल। गाईड गियासी के अनुसार रानेह शब्द रैन का अपभ्रंश है जो किसी अंग्रेज ने दिया था।
सफ़र के साथ सफ़र की कहानियाँ होंगी
हर एक मोड़ पे जादू-बयानियाँ होंगी
– खलील तनवीर
तो सफर करिए, और अगली बरसात में जन्नती नजारे देखने रानेह जाना याद रखिए।
सुनील अवसरकर,भोपाल
Autobiography of Fake Shami: क्या आपने भी शमी समझ नकली शमी लगा रखा है?