Ratlam Choupal: मालिकाना हक की 46 सालों से बांट जोह रहे 59 दुकानदार

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Ratlam Choupal: मालिकाना हक की 46 सालों से बांट जोह रहे 59 दुकानदार

रतलाम शहर का हृदय स्थल चांदनी चौक जहां स्थित सराफा बाजार की दुकानें और इसी चांदनी चौक में स्थित ऐतिहासिक स्मारक आजाद चौक जिसकी बाउन्ड्री पर निर्मित दुकानों के संचालकाें को आज भी इस बात को लेकर मलाल है कि सरकार ने उनके मालिकाना हक की दुकानों की रजिस्ट्री आखिर क्यों नहीं करवाई ?,क्यों यहां के दुकानदार अपने आप को ठगाया हुआ महसूस कर रहे हैं ? क्यों आखिर आज तक इन दुकानदारों को रजिस्ट्री करवाने का हक नहीं मिला ? क्या चाहते हैं नगर निगम के अधिकारी ?, क्यों मोन रहते हैं जनप्रतिनिधि ? यह सब,वो अनसुलझे सवाल है जिसका जवाब रतलाम के मातहतों के पास नहीं है।

आखिर क्यों नगर निगम ने 13 दुकानदारों को रजिस्ट्री करवा कर बाकी दुकानदारों का हक छीन रखा है ?क्यों इन दुकानदारों को अपनी दुकानों के उपर निर्माण कार्य नहीं करने दिया जा रहा है?

एक और जहां वांकड में बनी दुकानों के स्वामित्व को लेकर अड़चनें पंहुची उनकी छतों को छीन लीं गई।आज वह परेशान होकर अपनी दुकानों की रजिस्ट्री के लिए भटकते फिर रहे हैं।कोई कहता है कि बस चलने वाला है आजाद चौक पर बुलडोजर,कोई कहता है कि बस जमींदोज हो जाएगी गोल चक्कर की दुकानें ।

तो आखिर क्या है माजरा जानने के लिए आपको लें चलते हैं आपातकाल के दौर में जहां से इस आजाद चौक के पैरों में हथकड़ियां लगी जो आज तक अपनी सुरक्षा यानी रजिस्ट्री करवाने को लेकर परेशान हैं।

स्वर्ण नगरी के नाम से विख्यात मध्यप्रदेश के रतलाम का हृदय स्थल चांदनी चौक के आजाद चौक में स्थित दुकानों के स्वामित्व को लेकर फंसा पेंच कब सुलझेगा।पिछले 45 वर्षों से आजाद चौक के बाहर बनी 70 दुकानों में से 13 दुकानों को मालिकाना हक देते हुए उनका पंजीकरण कराया गया वहीं बाकी दुकानदारों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों?

आज बचें हुए दुकानों के मालिक परेशान हैं वह भी इस बात को लेकर की उनके मालिकाना हक की दुकानों को तोड़कर नई दुकानें बनाकर नगरनिगम ने कब्जा तो दें दिया।लेकिन रजिस्ट्री नहीं करवाई गई।

बता दें कि कुछ वर्ष पहले नगर निगम ने आजाद चौक में 64 दुकान संचालकों को नोटिस जारी कर स्वामित्व के दस्तावेज मांगे थे।यहां बनी दुकानें आपातकाल के समय रातों रात जमींदोज कर दी थी।बाद में सराफा व्यवसायियों ने रतलाम से भोपाल दिल्ली की दौड़ लगाई थी।मामले में राज्यपाल के निर्देश और आश्वासन पर दुकानों के बदले दुकान बनाकर देने की बात पर व्यवसायियों और नगरनिगम के बिच समझौता हुआ था।जहां बनीं हुई दुकानों को तोड़कर नई दुकानें नगर निगम ने व्यवसायीयों से निर्माण खर्च लेकर बनवाई गई थी।आज दुकानों को बनकर 45 वर्ष बित जाने के उपरान्त भी मालिकाना हक की रजिस्ट्री नहीं करवाई गई है।जबकि यहां पर स्थित दुकानें नगरनिगम और व्यवसायियों की रजामंदी से नगरनिगम की देखरेख में ही व्यापारियों के खर्च पर वापस बनाई गई।वहीं नगरनिगम को रजिस्ट्री कराना थी लेकिन अभी तक रजिस्ट्री नहीं कराई गई।

बता दें कि निगम की संपत्तिकर शाखा में आजाद चौक की 11 दुकानें ही दर्ज हैं जबकि मौके पर दुकानों की संख्या अधिक है। यहां स्वामित्व को लेकर विवाद है वहीं इन दुकानों की कीमत करोड़ों में है।यहां एक बात और सामने आई है कि आजाद चौक की दुकानों के स्वामित्व व संपत्ति कर भरने का रिकार्ड नगर निगम के पास था जो कि गायब कर दिया गया।आपातकाल के समय तोड़ फोड़ की गई तो व्यापारी खौफ के मारे कुछ बोल नहीं पाए।

कलेक्टर के फरमान से अवाम में उपजा असंतोष

अब कलेक्टर से मिलना हुआ मुश्किल पहले करना होगा सूचित

जिले,शहर और गांव की समस्याओं के निराकरण को लेकर राजनेतिक दल,सामाजिक संस्थाओं द्वारा कलेक्टर को ज्ञापन दिया जाता है।जिसे लेने के लिए कलेक्टर स्वयं को ज्ञापन लेने अपने कार्यालय से बाहर आना पड़ता है।अब ज्ञापन देने वालों के लिए कलेक्टर कुमार पुरषोत्तम ने अनोखा फरमान जारी किया है इस फरमान से राजनीतिक दलों,सामाजिक संस्थाओं और आमजनों में आक्रोश व्याप्त है।

कलेक्टर ने बकायदा आदेश जारी किया है उसमें उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल या संगठन, संस्था द्वारा ज्ञापन देने के पहले सूचना देना होगी और अनुमति मिलने पर ही ज्ञापन दिया जा सकता है।

बता दें कि एक और जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री को देश का सबसे सहज और मिलनसार नेता कहा जाता है.जिनसे कोई भी बड़ी आसानी से मुलाकात कर सकता है.और तो और कई बार सीएम खुद भी सभाओं के मंच से आम लोगों के बीच पहुंच जाते हैं.ऐसे में प्रदेश के रतलाम जिले के कलेक्टर ने अनोखा आदेश जिले भर में चर्चा का विषय है।
कलेक्टर के आदेश की बकायदा जिला प्रशासन के अधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर भी पोस्ट शेयर की है.आदेश के अनुसार अब जिले में किसी भी संस्था और संगठन को किसी भी प्रकार की समस्या संबंधित ज्ञापन देने के लिए कलेक्टर से मिलना है तो उन्हें इसी पूर्व सूचना देनी होगी। इधर कलेक्टर का कहना है कि बगैर सूचना दिए प्रदर्शनकारियों के पंहुचने से कार्यालय में व्यवस्था भंग होती है और शासकीय कार्य में व्यवधान उत्पन्न होता है।

इसके लिए कलेक्टर ने दो अधिकारियों को निर्देशित किया है किअब वह ज्ञापन देने वालों से ज्ञापन लेंगे।
प्रशासन की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि पहले से सूचना मिल जाने पर समय निकाल पाना संभव होगा.वहीं कानून व्यवस्था को भी दुरुस्त किया जा सकेगा.जबकि जिले भर में कलेक्टर के इस आदेश की आलोचना भी हो रही है.लोगों का कहना है कि सरकारी नुमाइंदे जनता की समस्या का समाधान करने के लिए होते हैं.इस तरह के आदेश देकर वो खुद को समस्याओं से दूर कर रहे हैं।

इस विरोध को देखते हुए आखिरकार कलेक्टर ने फिर एक नया फरमान अपने विडियो के साथ जारी किया जिसमें ग्रामीणों और दूर दराज क्षेत्र से आने वालों को ज्ञापन लेने की सुविधा देने का दर्शाया है।

कलेक्टर की कार्रवाई से सरकारी स्कूलों की अव्यवस्थाओं और संचालकों की मनमानी पर लग सकती है लगाम ?

शिक्षा विभाग सजगता से समय समय पर आदेश जारी कर सरकारी स्कूलों के प्रबंधकों को चेतावनी देता हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि सरकारी स्कूलों के प्रबंधकों की लापरवाही और लूट के मामलों में कहीं कोई कमी आती है क्या? तो जवाब है नहीं। आखिर ऐसा क्यों, क्या कारण है कि माता पिता बच्चों को निजी स्कूलों में मोटी फीस देकर पढ़ाने को मजबूर हैं.ऐसे मामलों की शिकायतों को लेकर कलेक्टर कुमार पुरषोत्तम ने कमर कस ली है।पिछले दिनों कलेक्टर कुमार पुरषोत्तम ने सरकारी स्कूलों का औचक निरीक्षण कर सबको चौंका दिया था.कलेक्टर के आकस्मिक निरीक्षण में कुछ स्कूल के शिक्षक बिना सूचना के अनुपस्थित पाए गए.ऐसे में कलेक्टर ने सभी को नोटिस जारी किए थे.इसके अलावा जो शिक्षक पहले से अनुपस्थित रहें उन्हें निलंबित करने की कार्रवाई भी की.ऐसे में बच्चों के मातहतों में असंतोष उपजना वाजिब है।

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और वह निजी स्कूलों में बड़ी फीस देकर बच्चों को पढ़ाने को मजबूर हैं।शासकीय प्राथमिक माध्यमिक स्कूलों में होस्टल में जाकर देखा जाए तो सरकार के दावों से अलग इन स्कूलों में शिक्षा के हालात बहुत उदासीन हैं. जहां गणवेश राशि इस साल अब तक नहीं मिली है.साथ ही होस्टल में बच्चों के लिए न पलंग है न लॉकर की व्यवस्था है.बच्चों की संख्या ज्यादा और होस्टल में जगह कम है,क्लासरूम व शिक्षकों की कमी है.ग्रामीण इलाकों में तो हालात बद से बदतर है.खाना मेनू के हिसाब से नहीं मिलता है.कई जगह तो बच्चे खुद बर्तन साफ करते पाए गए.स्कूल की किताबें,बच्चों के बैग में नहीं बल्कि रद्दी की तरह एक थैले में हैं.किसी स्कूल के पास बिल भरने का पैसा नहीं है जिसके चलते बिजली काट दी गई है.तो कहीं बिना कनेक्शन के ही स्कूलों में बिल भेज देने के आरोप लगाए जा रहे हैं.अधिकारी कई बार स्कूलों में निरक्षण करते हैं.निरीक्षण के दौरान समस्याएं तो सामने आती हैं,लेकिन निरीक्षण की जानकारी संचालकों को पहले से ही मिल जाने के कारण अनियमितता और लापरवाहियां दबा दी जाती हैं.इसी कारण कलेक्टर कुमार पुरषोत्तम ने आकस्मिक निरीक्षण को जारी रखने की बात कही है.
कलेक्टर ने बिजली व्यवस्था को शासकीय स्कूल में जल्द शुरू करवाने के निर्देश देने की बात कही है.स्कूलों में अनियमितता की जानकारी पर कुमार पुरषोत्तम ने यह भी कहा कि वे अब लगातार इस तरह आकस्मिक निरीक्षण करेंगे, जिससे स्कूलों की वास्तविक स्थिति की जानकारी मिल सके.

सायकल पर चलने वाला 10 सालों में खेलने लगा करोड़ों में

सामान्य मनुष्य परिश्रम कर अपने परिवार का पेट भरने के अलावा कुछ हासिल नहीं कर सकता।अवैध और अनेतिक कार्य कर सड़क पर तंगहाली की जिंदगी गुजर बसर करने वाले कुछ दिनों में हवाई जहाज में सवार होकर ऐशो आराम का जीवन यापन करने लग जाते हैं।नीमच के डोडा चूरा तस्कर बाबू सिंधी की कहानी भी ऐसी ही है।

डोडा चूरा की तस्करी ने तंगहाल बाबू को जमीं से फलक पर बिठा जरुर दिया लेकिन उसकी बची हुई जिंदगी अब पुलिस,सलाखों और न्यायालय के चक्कर लगाने में गुजर रही हैं।बाबू अभी उज्जैन की भैरवगढ़ जेल में बंद हैं।
तो पुलिस और एनसीबी उसकी और उसके साथियों की कुण्डली खंगालने में जुटी है।पिछले सप्ताह केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो ने तस्कर बाबू सिंधी के करीबी रहे सौरभ कोचट्टा के घर पर दबिश दी।सीबीएन टीम ने सौरभ कोचट्टा के घर बाबू सिंधी संबंधित कई जमीनों के दस्तावेजों को खंगाले।

बता दें कि सौरभ कोचट्टा की आर्थिक स्थिति पूर्व में बड़ी ही दयनीय थी,लेकिन बाबू सिंधी के संपर्क में आने के बाद अवैध कार्यों को अंजाम देकर बाबू के साथ मिलकर सौरभ ने करोडों में खेलने लगा और प्रापर्टी भी खरीदी। सूत्र बताते हैं कि इन्हीं कारणों से एनबीसी की टीम ने उसके साथियों के यहां छापामार कार्यवाही की।बता दें कि सौरभ बाबू सिंधी गिरोह का हिस्सा होकर लंबे समय से मादक पदार्थों की तस्करी में लिप्त रहा है।

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सौरभ,प्रकाश मोटवानी उर्फ गोलू,पंकज कुमावत यह ऐसे नाम हैं जो पुलिस की हिट लिस्ट में शामिल हैं।केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो ने इनके घरों पर भी खानातलाशी लेते दस्तावेज खंगाले।जहां आरक्षक पंकज कुमावत के घर पर ताला लगा मिला।तस्करी के इस खेला ने कैसा खेल दिखाया की सड़कों पर रहने वाले आसमां को छुने लगें वहीं सरकारी पुलिस की नौकरी कर अपना जीवन व्यतीत करने वाला आरक्षक पंकज कुमावत को इन काले कारोबार में हाथ डालने का अंजाम भागते फिरते बिताना पड़ रहा है।

बाबू सिंधी के साथ हिस्सेदारी के कई पुख्ता प्रमाण मिलने के बाद एक साथ बाबू के साथियों के घर दबिश दी गई है।
गौरतलब है कि 26 अगस्त को औद्योगिक क्षेत्र पर केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो ने 255 क्विंटल डोडाचूरा, धोलापाली, कालादाना जब्त करते हुए बाबू को मौके से पकडा था,तभी से आरक्षक पंकज कुमावत देवास से गायब है।अभी तक देवास पुलिस विभाग में आमद दर्ज नहीं करवाई है।आरक्षक पंकज कुमावत और अन्य पुलिसकर्मियों ने तस्कर के बर्थडे पर 12 बोर बंदूक से केक काटा था।बाबू सिंधी के साथ हिस्सेदारी के कई पुख्ता प्रमाण मिलने के बाद एक साथ बाबू के साथियों के घर दबिश दी गई है।पंकज ने अभी तक देवास पुलिस विभाग में आमद दर्ज नहीं करवाई है। आरक्षक और अन्य पुलिसकर्मियों ने तस्कर के बर्थडे पर 12 बोर बंदूक से केक काटा था।

भाजयुमो की नियुक्तियों को लेकर आखिर क्यों असंतोष उपजा

सियासत की अंगड़ाइयां कब कहां और किसे कहा पंहुचा देती है।इसका कोई जवाब नहीं। अपने परिवार के वजूद से विप्लव युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष की सीट पर काबिज जरुर हों गए पर उन्हें अब परेशानियां से दो हाथ करना पड़ रहा है।

प्रदेश युवा मोर्चा अध्यक्ष वैभव पंवार ने युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष के रुप में विप्लव जैन को नियुक्त किया था।हांलांकि विप्लव जैन युवाओं में काफी लोकप्रिय है व उनके पास काम करने और सहयोग करने वाले युवाओं की बड़ी टीम भी है। इसके विपरित इस पद पर एक अन्य दावेदार युवा जुबिन जैन भी थे। जिनके पास भी जिले के युवामोर्चा के युवाओं की बड़ी टीम है लेकिन जिलाध्यक्ष की दौड़ में जुबिन को निराशा ही हाथ लगी।

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इधर अब विप्लव की नियुक्ति के बाद से ही उनकी राह आसान दिखाई नहीं दे रही है।यह दर्शाता हे सोशल मीडिया,जहां कई बार विप्लव के विरोध की पोस्ट शेयर होती रहती हैं।

पिछले दिनों भाजयुमो में हुई नियुक्तियों के बाद युवाओं में भारी असंतोष और विरोध देखा गया। घरना और त्यागपत्र देने की बात सामने आई तो पार्टी के शीर्ष नेताओं ने नियुक्तियों में बदलाव करने की बात कहीं तो मामला शांत हुआ।

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बता दें कि विप्लव ने धराड़ में जिसको जिम्मेदारी दी,उसका भारी विरोध हो गया।विरोध करने वालों का कहना था कि जो अन्य दल से पार्टी में कुछ समय पूर्व आया उसको महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गई।यह काम करने वाले कार्यकर्ताओं का अपमान है।इधर एक अन्य मंडल में चौराना के महेंद्र पंवार ने भी पद से त्यागपत्र दे दिया है। सोशल मीडिया पर इसको लेकर पोस्ट शेयर की गई है।इसमे पंवार ने बताया है कि उनको आईटी सेल का जिला सहप्रभारी बनाया है,जबकि उनकी योग्यता इससे अधिक है।इतना ही नहीं जिले में युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष के एक अन्य दावेदार जावरा विधायक के बेटे को भी नजरअंदाज कर दिया गया है।ऐसे में पेराशुट तरीके से हुई नियुक्ति के बाद अब जमकर विरोध हो रहा है।
आगामी निकाय चुनावों में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भाई भतीजा वाद से परे रहकर सीटों का बंटवारा करना होगा।नहीं तो अंतर्कलह की संभावनाओं से नकारा नहीं जा सकता है।