तिहाड़ जेल पहुंचे मप्र के पूर्व मंत्री!

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मप्र में कुछ दिन पहले तक मंत्री पद का दर्जा प्राप्त ग्वालियर के जानेमाने ईएनटी चिकित्सक व भाजपा नेता डॉ. अमरजीत सिंह भल्ला को दिल्ली की एक अदालत ने तिहाड़ जेल भेज दिया है। आपको याद होगा लगभग दो साल पहले मप्र की कमलनाथ सरकार ने ग्वालियर में इस डॉक्टर के अस्पताल को बुलडोजर से जमींदोज करा दिया था। दरअसल डॉक्टर भल्ला ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की राजनीतिक सलाहकार अर्चना डालमिया से पंगा मोल ले लिया है। भल्ला ने अर्चना के साथ ग्वालियर में दिल्ली पब्लिक स्कूल खोला था। भल्ला पर इस स्कूल में आर्थिक अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगे हैं। भल्ला एक केन्द्रीय मंत्री के खास रहे हैं। इन मंत्री ने ही इन्हें शिवराज सिंह चौहान से कहकर मप्र अल्पसंख्यक आयोग का सदस्य बनवाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिलवाया था। चर्चा है कि फिलहाल केन्द्रीय मंत्री ने भल्ला को अपने हाल पर छोड़ दिया है। खबर है कि अर्चना की शिकायत पर भल्ला जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं।

 

*कौन बनेगा सूचना आयुक्त!*

मप्र में आजकल सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की कवायद चल रही है। राज्य सरकार ने इसके लिए विज्ञापन जारी कर नाम मांगे हैं। कई रिटायर आईएएस व आईपीएस अधिकारी और संघ व भाजपा समर्थित पत्रकार इस पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं। खबर आ रही है कि राज्य सरकार फिलहाल केवल तीन सूचना आयुक्तों की नियुक्ति कर सकती है। इसमें दो रिटायर आईएएस और एक पत्रकार का नाम शामिल हो सकता है। खबर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कोटे से भोपाल के रिटायर संभागायुक्त कवीन्द्र कियावत और नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ कोटे से रिटायर आईएएस केके सिंह का नाम चर्चा में है। ग्वालियर के एक समाचार पत्र से जुड़े पत्रकार का नाम भी सूचना आयुक्त बनने की दौड़ में बताया जा रहा है। मजेदार बात यह है कि कभी शिवराज सिंह के खास रहे एक आईएएस अधिकारी ने भी सूचना आयुक्त के लिए आवेदन किया है। लेकिन मुख्य सचिव से मतभेद के चलते इनके नाम पर शायद ही विचार हो।

 

*भोपाल सांसद की पेशी और बीमारी*

भोपाल से भाजपा की सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह की जैसे ही मुंबई एनआईए कोर्ट में पेशी की तारीख नजदीक आती है ठीक उसी समय उनका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है और उन्हें तत्काल अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। अभी कुछ दिन पहले तक भोपाल के आयोजनों में कबड्डी और फुटबाल खेलने वाली साध्वी प्रज्ञा सिंह इस सप्ताह मुंबई की एनआईए कोर्ट में पेश हुईं तो उन्होंने उनके वकील ने तत्काल उनके अस्वस्थ होने की जानकारी कोर्ट को दी। वे कोर्ट से सीधे मुंबई के अस्पताल में भर्ती भी हो गईं। अब खबर आ रही है कि संसद सत्र में शामिल होने साध्वी प्रज्ञा सिंह मुंबई से सीधे दिल्ली पहुंचेंगीं। बेशक प्रज्ञा सिंह अपनी बीमारी को लेकर सच बोल रही हों लेकिन देशभर का मीडिया उनकी पेशी और बीमारी को लेकर चटकारे जरूर ले रहा है।

 

*चर्चा में राजेश राजौरा*

मप्र के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश राजौरा आजकल कई कारणों से चर्चा का विषय बने हुए हैं। उनकी छवि आईपीएस अधिकारियों के हितैषी अफसर के रूप में भी बन गई है। राजौरा फिलहाल गृह विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं। वे इस विभाग के पहले ऐसे मुखिया हैं जिन्होंने आईपीएस अधिकारियों के लिए अपनेे दरवाजे खोल दिए हैं। वे सरलता और सहजता से न केवल मिलते हैं बल्कि उनकी समस्याओं का समाधान भी कर रहे हैं। ऐसे समय जबकि प्रदेश की आईएएस लॉबी पुलिस कमिश्नर प्रणाली के खिलाफ है। मुख्यमंत्री की घोषणा होते ही मप्र में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की फाइल राजौरा के कार्यालय में पंख लगाकर उड़ रही है। पिछले दिनों प्रदेश के कथित भ्रष्ट व नकारा आईपीएस अफसरों को बर्खास्त करने या जबरिया रिटायर करने के संबंध में बैठक हुई तो इसमें भी राजौरा का रूख प्रो आईपीएस दिखाई दिया। बैठक के बाद उन्होंने स्वयं मीडिया को बताया कि प्रदेश में ऐसा एक भी आईपीएस नहीं है, जिसे बर्खास्त या जबरिया रिटायर किया जाए।

 

*विधानसभा का घटता महत्व*

मप्र विधानसभा का महत्व लगातार घटता जा रहा है। पहले 5 साल में विधानसभा लगभग 300 बैठकें होती जो अब घटकर 100-125 तक आ गई हैं। पिछले लंबे समय से मप्र विधानसभा में किसी गंभीर मुद्दे पर कोई सार्थक चर्चा नहीं हुई है। बीते दो साल में जितने कानून विधानसभा में पारित हुए हैं, किसी पर भी दो मिनट चर्चा नहीं कराई गई है। ध्वनिमत से कानून बनाने की नई परिपाटी बनती जा रही है। मप्र में दिग्विजय सिंह के पहले कार्यकाल (1993-1998) में 282 बैठकें हुईं, उनके दूसरे कार्यकाल (1998-2003) में 288 बैठकें हुईं। इसके बाद भाजपा के पहले कार्यकाल (2003-2008) में 159 बैठकें, दूसरे कार्यकाल (2008-2013) में 170 बैठकें और तीसरे कार्यकाल (2013-18) में मात्र 135 बैठकें हुई। मौजूदा सत्र में कांग्रेस व भाजपा की सरकारों ने बीते तीन साल में अभी तक मात्र 43 बैठकें हुई हैं। यह गंभीर चिन्ता का विषय है।

 

*सत्ता केंद्रों से परेशान कलेक्टर*

विंध्य के एक जिले के कलेक्टर इन दिनों बड़े असमंजस में हैं। इनके जिले में पहले पूर्व मंत्री के रूप में एक ही सत्ता केंद्र हुआ करता था, लेकिन कुछ महीनों पहले एक और सत्ता केंद्र बन गया है। पहला सत्ता केंद्र राजनैतिक रूप से मजबूत है लेकिन दूसरा सत्ता केंद्र संवैधानिक ताकत भी लिए हुए है। दिक्कत यही हो रही है कि वे किसे ज्यादा साधकर चलें, क्योंकि दूसरा सत्ता केंद्र तेजतर्रार और मुखर हैं और पहला वाला भले ही शालीन हो, लेकिन शालीनता के साथ सत्ता चलाना और निभाने में वह भी माहिर हैं। सत्ता केंद्रों में टकराहट होना शुरू हो गई है। वैसे भी कलेक्टर साहब ईमानदार और काम करने वाले हैं इसीलिए ज्यादा समय तक कहीं भी कलेक्टर नहीं रह पाए। और फिर यहां तो दो तोपों के बीच में रहना है। देखना यह है कि इस टकराहट में कहीं कलेक्टर साहब की कलेक्टरी पर कहीं आंच न आ जाए?

 

*और अंत में….*

मप्र में अब यह बात खुलकर सामने आने लगी है कि भाजपा विधायक जन समस्याओं से ज्यादा ट्रांसफर पोस्टिंग और धंधे के खेल में लगे हैं। पिछले दिनों दो उदाहरण से यह बात साफ हो रही है। प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंच से कहा कि विधायकों के ट्रांसफर संबंधित सभी सुझावों को स्वीकार कर लिया जाए तो प्रदेश के सभी स्कूलों में शिक्षक और सभी अस्पतालों में डॉक्टर नजर नहीं आएंगे। दूसरा उदाहरण छतरपुर के भाजपा विधायक राजेश प्रजापति का है। छतरपुर कलेक्टर ने इस विधायक से मिलना बंद कर दिया है। चर्चा है कि विधायक अपने अवैध डम्पर और खदानों को लेकर कलेक्टर पर दबाव बनाते थे। विधायक ने कलेक्टर के बंगले पर धरना दिया। कलेक्टर पर जान से मरवाने तक के आरोप लगाए, इसके बाद भी शिवराज सरकार ने कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह को छतरपुर से नहीं हटाया है। चर्चा है सरकार कलेक्टर को सही और भाजपा विधायक को गलत मान रही है।