

Reading Habit: जाओ रानी! याद रखेंगे’ झांसी की रानी काव्य, इतिहास और लोक!
पिछले दिनों डॉक्टर सत्येंद्र शर्मा सर द्वारा लिखित एक पुस्तक पढ़ने में आई-
‘जाओ रानी! याद रखेंगे’
झांसी की रानी
काव्य, इतिहास और लोक
सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने कालजयी कविता “झांसी की रानी” लिखी है ।डॉ सत्येंद्र शर्मा जी ने इस इतिहास रचने वाली कविता को जानने, समझने और परखने का बहुत अच्छा प्रयास किया है। विश्व इतिहास की अप्रतिम नायिका के जीवन और संघर्ष के अनेक प्रश्नों से रूबरू कराती तथा काव्य,इतिहास और लोक की त्रिवेणी में गोते लगवाती खूब लड़ी मर्दानी की प्रामाणिक गाथा है यह पुस्तक।
उनके अनुसार लक्ष्मीबाई और सुभद्रा जी के जीवन में अद्भुत साम्य है। दोनों में अपराजेय संकल्प और संघर्ष बोध है। दोनों ने विचलित होना जैसे सीखा ही नहीं है। दोनों ने ही अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपनी सांस – सांस न्योछावर की है। इस तथ्य को सत्येंद्र जी ने बहुत गहरे अपनेपन की छुवन के साथ चिन्हित और रेखांकित किया है।
झांसी की रानी अपनी मातृभूमि और स्वराज के लिए लड़ीं। रानी लक्ष्मी बाई और सुभद्रा जी दो काल खंडों की दो नायिकाएं हैं। काल का अंतराल अवश्य है किंतु अपनी मातृभूमि और स्वराज के लिए दोनों के संकल्प ,संघर्ष ,समर्पण ,त्याग और बलिदान तथा उसकी प्रतिष्ठा के लिए दोनों की साधना का लय और सुर एक जैसा ही है।
पुस्तक अनुक्रम, रचना का मूल पाठ और उसके अवयव में हमें झांसी की रानी कविता का मूल और उसका साहित्यिक विश्लेषण मिलता है।
अगले अनुक्रम,कविता की रचना प्रक्रिया में ,हमें सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन की बहुत सारी जानकारी मिलती है कि कैसे 16-17 वर्ष की अल्हड़ उम्र में ही सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने आभूषण स्वतंत्रता के संदेश वाहक बापू जी को सौंप दिए थे।।सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति दोनों ही जब जेल जाते हैं तो उनके चार बच्चे कैसे अकेले रह पाते हैं ,यह भी हमें पुस्तक में मिलता है।
वही शब्द समूह साहित्य के रूप में अमरता प्राप्त करते हैं जिनमें आचरण की ऊष्मा होती है। उनके अनुसार यही वजह है कि झांसी की रानी कविता कालजई हुई।
अगले अनुक्रम में इतिहास में झांसी की रानी की पृष्ठभूमि और परिचय ,क्रांति की चिंगारियां और रानी की भूमिका ,साम्राज्य संचालन में रानी का कौशल, ग्वालियर में अंग्रेजों से रानी का युद्ध ,रानी का बलिदान सभी कुछ हमें इस पुस्तक में पढ़ने को मिलता है और लेखक अपने सहज सरल चेतना से पाठक को कन्विंस करते चलते हैं।परिशिष्ट में बुंदेले हरबोले,नाना धुंधूपंत, तात्या टोपे , अजीमुल्ला खान, मौलवी अहमद शाह, ठाकुर कुंवर सिंह के बारे में भी पढ़ने को मिलता है।
उस काल व परिस्थिति में वीरांगना के शौर्य की गाथा को इस पुस्तक के माध्यम से पढ़कर वर्तमान पीढ़ी भी प्रेरणा ले सकती है। आज के परिपेक्ष्य में भी यह कविता पहले जैसी ही प्रासंगिक है और इसलिए यह पुस्तक पढ़ना भी।
पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है। मैंने भी उसी से मंगवाई थी।
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