ग्रामीणों की सहभागिता से संभव हुआ भव्य श्रीराम मंदिर का जीर्णोधार

कृषक आधारित गांव में खेती के रकबे के हिसाब से 7 वर्ष तक एकत्र हुआ चंदा

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कुं. पुष्पराज सिंह की रिपोर्ट

बागली। अनुभाग मुख्यालय से 3 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम नयापुरा में श्रीराम मंदिर के जीर्णोधार की कहानी ग्रामीणों की भगवान श्रीराम के प्रति अगाध श्रद्धा और आस्था को प्रकट करती है। यहां पर ग्राम के मध्य स्थित 300 वर्ष पुराने छोटे से मंदिर को भव्य श्वेत संगमरमर के मंदिर में तब्दील करना ग्रामीणों की अथक मेहनत और परमार्थ के कार्यों में रुचि लेकर उसे अपने घर के कार्य की तरह करने की है। जिसमें गांव के 180 परिवारों ने 10 वर्ष तक चंदा एकत्र किया और लगभग 1 करोड़ से अधिक की राशि एकत्र हुई।

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चंदा कृषकों के पास स्थित कृषि भूमि के रकबे के मान से निश्चित किया गया था। जानकारी के अनुसार वर्ष 2003 में गांव में श्रीराम मंदिर निर्माण समिति का गठन हुआ और छोटे स्वरूप के मंदिर को भव्यता में निर्मित करने का संकल्प हुआ। जिसमें प्रत्येक परिवार को उनकी कृषि भूमि के रकबे के अनुसार 100 रुपए प्रति बीघा की दर से चंदे की राशि वर्ष में दो बार देना निर्धारित किया गया। इस तरह ग्राम के सभी सूचीबद्ध परिवारों ने लगातार 7 वर्ष तक 15 से अधिक बार चंदे में भाग लिया। प्रत्येक बार की एकत्र राशि में 3.50 लाख रूप की राशि एकत्र होती थी।

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चंदे में कुछ परिवारों का वार्षिक योगदान 10 हजार रुपए तक था। धनराशि एकत्र करने के साथ-साथ निर्माण भी चलता रहा। राजस्थान के नागौर जिले के ग्राम मकराना के कारीगरों ने श्वेत प्रस्तर संगमरमर से मंदिर निर्माण किया। मंदिर निर्माण वर्ष 2013 में पूर्ण हुआ। इसके पूर्व वर्ष 2009 में एक भव्य समारोह में मंदिर में भगवान श्रीराम, लक्ष्मणजी, माता सीता, हनुमानजी, अंबे माता और गौरी-महादेव की नवीन और प्राचीन मूर्तियां स्थापित की गई। मंदिर के पुजारी भगवानदास वैष्णव ने बताया कि गांव की बसाहट के साथ ही मंदिर का निर्माण हुआ था। गांववासियों ने एकमत होकर जीर्णोधार का फैसला किया। अब यहां पर रामनवमी पर महाआरती और समय-समय पर श्रीमद भागवत कथा, श्रीराम कथा और अन्य धार्मिक आयोजन होते रहते है।

किसी समाज विशेष की आवश्यकता नहीं
जटाशंकर तीर्थ के महंत बद्रीदासजी महाराज ने कहा कि 7 वर्ष तक चंदा एकत्र करना और मंदिर निर्माण कर लेना अपने आप में अद्भुत है। यह इस बात को प्रदर्शित करता है कि यदि गांववासी चाहें तो एकमत होकर कोई भी कार्य कर सकते है। इसमें उन्हें किसी समाज विशेष या संस्था की आवश्यकता नहीं होती।