Return of the Tiger: युवा बाघ की राजसी पालकी में भोपाल वापसी!
राजीव शर्मा
मध्य प्रदेश में है बाघों का घर .राजधानी भोपाल में बाघों और मनुष्यों का रहवास इतना मिला जुला है कि सुबह टहलते हुए या शाम के धुँधलके में कभी भी बाघ आपको शुभ प्रभात या शुभ रात्रि कह सकता है .राजधानी के इन्ही बाघों में से एक बाघ 2016 की गर्मियों में टहलते टहलते सीहोर पार कर शाजापुर ज़िले आ पंहुचा.तब शाजापुर एक वन विहीन ज़िला था ,जहाँ संतरा प्याज़ आलू सोयाबीन चना आदि होता था पर साल सागौन का जंगल नहीं था .हिरणों के झुँड़ ज़रूर किसानों को त्रस्त किये हुए थे पर क़ानूनन हम कुछ कर नहीं पा रहे थे .
बाघ के आने की खबर आई तो भरोसा नहीं हुआ . मण्डला, बालाघाट, उमरिया, नरसिंहपुर, दमोह, पन्ना, छिन्दवाड़ा जैसे प्रचुर वन संपदा वाले ज़िलों में जीवन बिताने के बाद मैं पहली बार एक वन विहीन ज़िले में वनराज के सत्कार और उनकी सुरक्षित वापसी की तैयारी करने में लगा .
बाघ की पुष्टि होते ही मैंने उसकी और ग्रामीणों की सुरक्षा के उपाय किये.उसके बाद तत्कालीन ACS वन श्री दीपक खाण्डेकर से रेस्क्यू टीम भेजने का आग्रह किया .टीम आई और 48 घंटे के सतत प्रयास के बाद उस युवा बाघ को राजसी पालकी में भोपाल वापस ले गई .शाजापुर के जन मानस ने राहत की साँस ली .
कलेक्टर बँगले में बैठा मैं इसी खबर की प्रतीक्षा कर रहा था और उन बाघों को याद कर रहा था जिनकी दस हज़ार से ज़्यादा तस्वीरें मैंने खींची थीं.
बान्धवगढ़ ,कान्हा ,पन्ना ,सतपुड़ा ,पेंच में दहाड़ते इन शानदार बाघों के साम्राज्य में मैंने जीवन बिताया था .मैंने राहत और संतुष्टि की साँस ली कि शाजापुर की मालवी मिठास का मज़ा लेकर बाघ सुरक्षित लौट गया था .