बहुमुखी प्रतिभा के धनी – इंदौर के शरद कटारिया

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बहुमुखी प्रतिभा के धनी–इंदौर के शरद कटारिया

अनिल तंवर की ख़ास रिपोर्ट–अनजानी शख्सियत

जिनमें जोश और जज्बा होता है उनकी कोई सीमा रेखा नहीं होती है. इस तरह के व्यक्ति मानते है कि– “आकाश ही सीमा है” (Sky is the Limit)”. अब यह मिथक भी समय के साथ बदल गया है. आकाश की सीमा से परे भी उड़ान भरी जा सकती है.

ऐसे ही एक व्यक्ति है, इंदौर निवासी शरद कटारिया. यह सेन्ट्रल बैंक आफ़ इण्डिया के रिटायर्ड प्रबंधक है किन्तु विभिन्न क्षेत्रों में अपना झंडा फहरा चुके हैं. इनकी कुछ ख़ास उपलब्धियां इस तरह है.

साइकल और बाइक से अनेक दुर्गम और कठिन क्षेत्रों की सोलो (एकल) साहसिक यात्राएं की है. जिनमें बैंक में सेवारत रहते हुए सुबह 5 बजे घर से निकलकर 50 किलोमीटर के दायरे में सायकलिंग, ट्रैकिंग, घुमक्कड़ी कर 10 बजे ऑफिस भी पहुँचते थे.

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अक्टोबर 2019 में बैंक से सेवा निवृत्त होने के बाद पहली लंबी सायकल यात्रा की बनेड़िया तीर्थक्षेत्र की जो इंदौर से 50 किलोमीटर दूर है। इसके बाद उज्जैन (60 कि.मी.), पुष्पगिरि, सोनकच्छ (76 कि.मी.), सिध्दवरकूट (80 कि.मी.), जानापाव (50 कि.मी.), महेश्वर (90 कि.मी.), बावनगजा, बड़वानी (180 कि.मी.) आदि की सोलो साइकल यात्राएं की। दूरियां एक ओर की ही लिखी हैं, यानि कुल साइकलिंग लिखे हुए की दुगुनी। इसके अतिरिक्त तिंछा फाल्स, कजलीगढ़, मेंडल, कालाकुण्ड आदि वनों में कई सोलो सायकल यात्राएं की। जहां लम्बी दूरी पर ट्रेकिंग के लिए जाने का मन किया तो अपनी कार से स्वयं ने ड्राइविंग कर पहुंचे या यदि ज्यादा ही दूर जाना हुआ तो ट्रेन का सहारा भी लिया. बस एक ही सिद्धांत पर कायम रहे–“जहाँ चाह है, वहाँ राह है”.

देखिए वीडियो-

विगत वर्ष अक्टोबर में 1500 किलोमीटर सोलो बाईकिंग करते हुए शिवपुरी, ओरछा, सुरवाया गढ़ी, खजुराहो जैसे ऐतिहासिक स्थलों और माधव नेशनल पार्क, पन्ना टाइगर रिजर्व, पाण्डव फाल्स आदि वनों में घुमक्कड़ी की।

विगत वर्ष जून में हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी व तुंगनाथ की 48 किलोमीटर सोलो हिमालयन ट्रैकिंग की। इसके पूर्व वसुधारा (बद्रीनाथ से 8 किलोमीटर दूर) की ट्रैकिंग भी की है।

इसके अतिरिक्त लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, असम, अण्डमान आदि सहित देश के हर राज्य की की कठिन यात्राएं भी हैं। इन स्थानों के बहुत ही दुर्गम स्थानों, पहाड़ों पर एकल ट्रेकिंग भी की है. कई बार तो गिरते–गिरते बचे और सांस लेना भी दूभर हुआ किन्तु कुछ अलग करने के जज्बे ने हिम्मत को पस्त नहीं होने दिया।

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मेघालय की भी दूसरी बार अत्यंत यादगार, सोलो यात्रा की। यह एक साहसिक यात्रा थी जिसमें देश की स्वच्छतम नदी उमंगोट में स्नान किया, देश के स्वच्छतम गाँव मेलिननांग में एक रात बिताई। कई नयनाभिराम झरनों को निहारने के लिए दुर्गम रास्तों पर ट्रैकिंग की। ऐसे प्रमुख झरने हैं वेईसादोंग, डबल डेकर लिविंग रुट ब्रिज और रेनबो फाल्स।

स्टेचू ऑफ यूनिटी, अहमदाबाद, भुज, कच्छ का रन, द्वारका, कोटेश्वर, माण्डवी, पोरबंदर, चोरवाड़, सोमनाथ, दीव, गिर फारेस्ट, जूनागढ़ की 4000 किलोमीटर की सोलो ड्राइविंग की।

इनके पास इन सारी यात्राओं के स्वयं द्वारा लिए गए हजारों चित्र और वीडियो का संग्रह भी है.

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बैंक सेवा में रहते हुए इनकी छवि एक उत्कृष्ट समर्पित अधिकारी की रही। कालेज के दिनों में यह टेबल टेनिस के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे तो पेंटिंग्स में भी अनेक अवार्ड्स से नवाजे गए. छायाकारी के शौक ने इन्हें घुमक्कड़ बना दिया तथा साइकल और बाइक से सोलो साहसिक यात्राएं करने का शौक जाग गया। छायाकारी और घुमक्कड़ी के शौकीनों को नैसर्गिक रुप से लिखने का शौक होता ही है तब नईदुनिया जैसे प्रतिष्ठित अखबारों और पत्रिकाओं में कई लेख भी नियमित रूप से प्रकाशित हुए। स्कूल की हस्तलिखित पत्रिका आलोक और बैंक की गृहपत्रिका मालविका का संपादन भी किया। आकाशवाणी, इंदौर से कई वार्ताएं प्रसारित हुई।

उन्होंने विगत चार वर्षों में कई पौधे रोपे जिनमें से 32 वृक्ष होने ही वाले हैं। इंदौर जैसे शहर में वृक्ष कहाँ लगाएं, यह सोचकर लोग रुचि नहीं लेते। वह उन वृक्षारोपण स्थानों पर करते हैं जहाँ नगर निगम द्वारा लगाए पौधे मर गए थे। फिर गर्मियों में लगभग प्रतिदिन स्कूटी पर 15-15 लीटर के दो कंटेनरों में पानी ले जाकर तीन-चार फेरे रोज लगाकर इन पौधों की सिंचाई भी करी। सर्दियों में सप्ताह में यह कार्य दो बार करते हैं। यथासमय इनकी निंदाई-गुड़ाई भी करते हैं। इसके अलावा सामजिक कार्यों में भी बहुत सक्रिय बने हुए हैं।

इनका कहना है कि उम्र एक नंबर है और आज 63 वर्ष की उम्र में इनका जोश बरकरार है जो युवा पीढ़ी के लिए नव स्फूर्त प्रेरणा सिद्ध होगी.