सनातन धर्म और सामयिक राजनीति

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सनातन धर्म और सामयिक राजनीति

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के पुत्र उदयनिधि ने सनातन धर्म को मलेरिया बीमारी बताकर भारत की चुनावी राजनीति में भूचाल ला दिया है। उनकी DMK पार्टी के कुछ अन्य नेताओं ने तो इसे और भी ख़तरनाक बीमारियों के समान बताया है। इससे जहाँ BJP पार्टी में उत्तेजना फैल गई है वहीं विपक्षी दलों की अन्य पार्टियों ने कुल मिलाकर चुप्पी जैसी साध ली है। यहाँ मैं यह कहना चाहूंगा कि तमिलनाडु में DMK पार्टी द्वारा दिया गया यह बयान वहाँ के सार्वजनिक जीवन के लिए एक बहुत साधारण बात है क्योंकि सभी द्रविड़ पार्टियों की मूल भावना में सनातन धर्म अर्थात् ब्राह्मणवाद का विरोध है। द्रविड़ राजनीति के पुरोधा ईवी रामास्वामी नायकर, जिन्हे पेरियार के नाम से जाना जाता है, ने स्वाभिमान आंदोलन की स्थापना की थी। यह एक गतिशील सामाजिक आंदोलन था जिसका उद्देश्य समकालीन हिंदू सामाजिक व्यवस्था को उसकी संपूर्णता में नष्ट करना और जाति, धर्म और भगवान के बिना एक नया, तर्कसंगत समाज बनाना था। उदयनिधि ने अपने इस बयान से अपना वोट बैंक ही मज़बूत किया है। DMK की विरोधी और BJP की सहयोगी AIADMK की विचारधारा भी इसी प्रकार की है और इसीलिए उसने उदयनिधि का कोई विरोध नहीं किया है।

‘सनातन’ का शाब्दिक अर्थ है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, यानी जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म जिसे हिन्दू वैदिक काल से अपनी जीवन पद्धति का मूलाधार मानते हैं, वह सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा और सहिष्णुता है जैसे गुणों से परिपूर्ण है। BJP जिसकी आत्मा हिंदुत्व पर आधारित है वह उदयनिधि के बयान से स्वाभाविक रूप से उद्वेलित हो गई है। उसके सभी स्तर के नेताओं ने आक्रोश और उत्तेजना से मुख्य और सोशल मीडिया पर इस वक्तव्य का प्रत्युत्तर देना प्रारंभ कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष पर प्रहार करते हुए सनातन धर्म की महत्ता प्रतिपादित की है। DMK द्वारा सनातन के आवरण में वास्तव में ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर चोट करते हुए दलित और पिछड़ी जातियों को अन्य विपक्षी पार्टियों के लिए उत्तर भारत में समेकित करने का प्रयास किया है। मोदी ने इसीलिए बीना की आम सभा में संत रविदास, महर्षि वाल्मीकि और राम की शबरी का नाम लिया जो दलित और आदिवासी थे।

DMK INDIA गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और इसलिए उसका विपक्ष में विशिष्ट स्थान है। विपक्ष की अन्य पार्टियों को DMK का विरोध करना आसान नहीं है। DMK ने अपने बयानों से अपने गठबंधन की अन्य पार्टियों को भी अपने स्वयं के महत्व के प्रति परोक्ष रूप से सचेत किया है। कुछ जातिवादी विपक्षी पार्टियां भी मन ही मन प्रसन्न हैं कि DMK ने उस सनातन धर्म पर प्रहार किया है जिस पर BJP उसके रूपांतर हिंदुत्व पर अपना एकाधिकार बताती है। जातिगत राजनीति की पार्टियों को DMK की मूल भावना से उनके अपने वोट बैंक को संबल मिलता है और इसीलिए उन में से कुछ ने दबी ज़बान से DMK का साथ देने का भी प्रयास किया है। मुख्य समस्या कांग्रेस पार्टी के समक्ष है जिसकी विचारधारा और सामाजिक पहुँच अपने में इन्द्र धनुष के सभी रंगों को समाहित किये हुए है। जहाँ कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कहा है कि सबको (अर्थात् DMK को)अपनी बात रखने का अधिकार है वहीं कुछ ने कहा है कि सभी धर्मों का सम्मान किया जाना चाहिए।

परन्तु खुल कर किसी ने भी उदयनिधि के बयान का विरोध या समर्थन नहीं किया है। BJP ने यद्यपि अभी अपनी तात्कालिक प्रतिक्रियाओं में उदयनिधि के बयानों की घोर भर्त्सना की है परन्तु उसे इस इन बयानों को लोक सभा चुनाव प्रचार का मुख्य मुद्दा बनाने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। हमें याद रखना चाहिए कि उत्तर भारत में भी कांशीराम और मायावती ने मनुवाद (ब्राह्मणवाद)का विरोध कर के ही उत्तर प्रदेश के विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया था। हिंदू समाज में जातिवादी कुप्रथा के अस्तित्व को कोई नकार नहीं सकता है। BJP हिन्दू धर्म की आवाज़ बुलंद करके जातिगत भेदों को ढंकते हुए सभी जातियों का अपने वोट बैंक में समावेश करना चाहेंगी। इसके विरूद्ध कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल हिंदू धर्म की विभिन्न जातियों को अलग-अलग बांटकर BJP के धर्म आधारित हिंदू एकता के चुनावी लाभ को कमज़ोर करने का प्रयास करेंगी। कोई आश्चर्य नहीं है कि INDIA गठबंधन ने जातिगत आधार पर जनगणना को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है।

विकास और देश की अन्य समस्याओं की कितनी ही बात राजनीतिक पार्टियां करें, चुनाव में दुर्भाग्यवश आज भी भारत में धर्म और जाति वोट एकत्र करने के मुख्य हथकंडे हैं।सभी राजनीतिक पार्टियां इन्हें समाप्त करने के स्थान पर इन्हें अपने-अपने हिसाब से और हवा दे रही हैं। सौभाग्यवश भारत में एक बहुत छोटा ऐसा वर्ग भी है जो कुछ अन्य मुद्दों पर वोट देता है। उनका प्रतिशत बहुत ही कम है परन्तु कांटे के चुनावों में वह निर्णायक हो सकता है।