
Sardar Vallabhbhai Patel: बचपन से ही थे फ़ौलाद से भी मज़बूत इरादे
1883 की एक काली रात। गुजरात का करमसद गाँव सोया हुआ था, लेकिन छोटा वल्लभभाई जाग रहा था। बाहर बारिश की बूँदें धड़धड़ाती थीं, और नदी का पानी उफन रहा था – मानो कोई राक्षस जाग उठा हो! 8 साल का वल्लभभाई खिड़की से झाँक रहा था। उसके पिता झवेरभाई, एक साधारण किसान, चिंता में डूबे थे।
“इस बार बाढ़ सब कुछ बहा ले जाएगी,” उन्होंने बुदबुदाया।
सुबह हुई तो गाँव में हड़कंप मच गया। नदी ने रास्ता बदल लिया था – अब पानी सीधे गाँव की ओर आ रहा था! खेत डूबने की कगार पर थे। गाँव वाले चिल्ला रहे थे: “मेरा खेत बचाओ!”, “नहीं, पहले मेरा!” एक बुजुर्ग चिल्लाया, “अगर अलग-अलग लड़ोगे, तो सब डूब जाएँगे!” लेकिन कोई सुन नहीं रहा था। छोटा वल्लभभाई हैरान था – क्या ये वही गाँव वाले हैं जो हर साल मिलकर नाला खोदते हैं?
तभी झवेरभाई ने कुछ अनोखा किया। उन्होंने गाँव के मंदिर में घंटा बजाया – रात के 3 बजे! सब दौड़े आए।
“सुनो!” झवेरभाई गरजे, “नदी कोई दुश्मन नहीं, ये हमारी माँ है। लेकिन माँ को काबू करने के लिए हमें एक होना पड़ेगा!”
उन्होंने एक पुरानी कहानी सुनाई: “सैकड़ों साल पहले, हमारे पूर्वजों ने इसी नदी से लड़ाई जीती थी – एक जादुई चाल से!”
कहानी थी एक ‘मानव दीवार’ की। सबने हँसते हुए कहा, “पागलपन!” लेकिन वल्लभभाई की आँखें चमक उठीं। योजना बनी: गाँव के सैकड़ों लोग हाथ में हाथ डालकर नदी के किनारे खड़े होंगे – एक जीवंत बाँध बनाएँगे! बच्चे, औरतें, बुजुर्ग – सब शामिल। छोटा वल्लभभाई आगे बढ़ा, “मैं भी!” उसके पिता ने मुस्कुराकर सिर पर हाथ फेरा।
रात भर बारिश। सुबह नदी का पानी गर्दन तक आ गया। गाँव वाले कतार में खड़े हो गए – जैसे कोई प्राचीन युद्ध की सेना! वल्लभभाई बीच में था, उसके छोटे हाथ पड़ोसी के साथ जुड़े। पानी की लहरें टकराईं ! पहली लहर ने कुछ को गिरा दिया, लेकिन सबने एक-दूसरे को थाम लिया। “एक… दो… तीन… पुश!”
झवेरभाई चिल्लाए। सबने मिलकर धक्का दिया। पानी मुड़ा, और एक पुराने नाले की ओर बहने लगा – वो नाला जो सालों से बंद था!अचानक चमत्कार हुआ। नाले में पानी घुसा, तो जमीन के अंदर से एक पुराना पत्थर उभरा – उस पर लिखा था संस्कृत में: “एकता से अमरता।”
गाँव वाले दंग रह गए! वो पत्थर उनके पूर्वजों का था.
छोटे वल्लभभाई ने उस रात कुछ सीखा जो किताबों में नहीं मिलता: एकता कोई साधारण शब्द नहीं, ये जादू है! टूटे हुए हाथ अलग-अलग कमजोर होते हैं, लेकिन जुड़े हुए – लोहे से भी मजबूत!
वर्षों बाद… 1947। भारत आजाद, लेकिन बिखरा हुआ। 562 रियासतें अलग होना चाहती थीं। सरदार पटेल, अब ‘लौह पुरुष’, दिल्ली में बैठे थे।
हैदराबाद का निजाम हथियार उठा चुका था। पटेल को वो बचपन की रात याद आई – नदी की लहरें, मानव दीवार, और वो जादुई पत्थर। उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “अब समय है भारत को एक ‘मानव दीवार’ बनाने का!
“Operation Polo चला। सैनिकों ने नहीं, बल्कि जनता की एकता ने निजाम को घुटने टेकने पर मजबूर किया।
जूनागढ़ में जनमत संग्रह – 99% वोट भारत के पक्ष में! कश्मीर से कन्याकुमारी तक – पटेल ने वो ‘जादू’ दोहराया। भारत को एक सूत्र में बाँध दिया।
राष्ट्रीय एकता दिवस पर शुभकामनाएं.





