satellite survey; सेटेलाइट सर्वे ने खोली पोल, गांवों से गायब 92 हजार जल स्त्रोत
भोपाल: प्रदेश में जल स्त्रोतों की कमी के आंकड़ों ने जिलों में कराए जाने वाले लघु सिंचाई कृषि संगणना के कामों में भारी लापरवाही उजागर की है। प्रदेश के 92 हजार जल स्त्रोतों को गायब किए जाने का यह मामला सेटेलाइट सर्वे रिपोर्ट से उजागर हुआ है।
इसके बाद अब इस मामले में किसान कल्याण और कृषि विभाग व राजस्व विभाग ने कलेक्टरों से रिपोर्ट मांगी है और कहा है कि वास्तविक आंकड़े एकत्र करें और इसके लिए शासन द्वारा तय किए जाने वाले फार्मेट पर आनलाइन और आफलाइन जानकारी भेजें।
किसान कल्याण और कृषि विभाग द्वारा लघु सिंचाई गणना और जल निकायों की गणना वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट में इस तरह की गड़बड़ी किए जाने का खुलासा किया है। इसमें कहा गया है कि इसके सर्वे का कार्य राजस्व विभाग द्वारा किया गया है।
पिछले माह दस मई को भारत सरकार के साथ हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग के बाद यह बात सामने आई है कि जल निकायों की गणना के अंतर्गत 4989 जल निकायों का ही डाटा प्राप्त हुआ है। इसके बाद एमपीएसईडीसी तथा भू अभिलेख के अफसरों के साथ चर्चा में यह पता चला कि रिमोट सेंसिंग सर्वे के आधार पर प्रदेश में जल निकायों की संख्या 97334 है। एमपीएसईडीसी से इसका डेटा जिलों को भेजा गया है।
अब जिलों में कलेक्टर इस काम को फिर से कराएं और जल निकायों की गणना कराकर उसे एक फार्मेट में सुरक्षित रखें। इसके बाद इसे एक पोर्टल पर अलग से फीड कराया जाएगा।
देवास में नदी और तालाबों का मामला भी सामने आया
इस मामले में राज्य सरकार के संदेह को तब और अधिक बल मिला जब देवास जिले में एक नदी को सिंचाई संगणना और जल निकाय गणना रिपोर्ट में गायब बताया गया। इसी तरह चार अन्य तालाबों का वजूद गायब बताया गया। इससे यह स्पष्ट हुआ कि पांच साल पहले की गई लघु सिंचाई संगणना और जल निकाय गणना में पटवारियों और राजस्व निरीक्षकों ने गड़बड़ की है। इसलिए अब इसे दुरुस्त करने के निर्देश दिए जाने के साथ सभी जिलों से रिपोर्ट मंगाई गई है।
जिलों को भेजी जिलों से जल स्त्रोतों के गायब होने की जो रिपोर्ट सामने आई है, उसमें एक जिले से पांच से छह हजार तक जल स्त्रोत गायब होना बताए गए हैं। ऐसे जल स्त्रोतों को चिन्हित कर अब एक बार फिर राजस्व व कृषि विभाग के अफसरों की टीम पूरी गड़बड़ी को सुधारने का काम करेगी । यदि इससे अधिक जल स्त्रोत मौजूद हैं, तो उसे भी गणना में शामिल किया जाएगा ताकि आने वाले समय में जल स्त्रोतों को नुकसान पहुंचाने से बचाया जा सके।
फार्मेट में ऐसी जानकारी मांगी
गणना में जो जानकारी भरने के लिए कहा गया है उसके शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों के जल स्त्रोत बताना होंगे। इसमें तालाब, हौज, झील, जलाशयजल संरक्षण योजना, जल रिसाव हौज, चेकडैम व अन्य जानकारी देना होगी। साथ ही यह किस खसरा नम्बर पर मौजूद है।
यह भी बताना होगा। यह भी जानकारी देना है कि ये जल स्त्रोत उपयोग में हैं या नहीं हैं। इनका सिंचाई, मनोरंजन, धार्मिक, मत्स्यपालन, घरेलू पेयजल, भूजल रिचार्ज या अन्य किस रूप में उपयोग हो रहा है। यह जानकारी फार्मेट में तैयार कर पोर्टल पर फीड करना होगी।
इसके साथ ही यह बताना होगा कि यह मानव निर्मित है या प्राकृतिक जल स्त्रोत है। इसका किसी योजना के अंतर्गत पुनरुद्धार किया गया हैतो उसकी भी जानकारी देने के लिए कहा गया है। इससे लाभान्वित होने वाले गांवों, नगर व शहर की संख्या भी बताना होगी और पांच साल के अंतराल में संबंधित जल स्त्रोत में जल भराव की रिपोर्ट भी देना होगी।
क्रास चेक कराकर भेजना होगी रिपोर्ट-
जलाशयों के गायब होने के बाद उनके वापस रिकार्ड में लेने के लिए जो तथ्य तैयार किए जाएंगे उसकी रिपोर्ट को क्रास चेक करने का काम भी करना होगा। इसके लिए कलेक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे निरीक्षण अधिकारी तैनात कर इस काम को कराएं और शासन को यह अवगत कराएं कि गणना करने वाले अमले द्वारा जो रिपोर्ट दी गई है, उसमें कितनी गलती निकली है? कितने जलस्त्रोत सुधार कराए गए हैं और यह भी बताएंगे कि लघु सिंचाई संगणना कितने जलस्त्रोतों के मामले में इसके पूर्व में नहीं कराई गई है।
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