

व्यंग्य: अनुकंपा के बदले अनुकंपा….
– डॉ . श्रीकांत द्विवेदी
पिछले दिनों एक अजीबो-गरीब समाचार पढ़ते को मिला । समाचार यूं कि ‘ प्रदेश के रीवा जिले में दूसरों के मृत माता-पिता को अपने माता-पिता बताते हुए फर्जी दस्तावेज के आधार पर ले ली अनुकंपा नियुक्तियां । ‘ इस वाकए से एक बात तो स्वत: सिद्ध होती है कि आदमी पेट के लिए क्या-क्या नहीं करता । आखिर पेट जो पापी ही ठहरा । फिर भी गनीमत है कि पापी पेट ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए ही सही , दूसरों के माता-पिता को अपना तो माना । वह भी मृत माता-पिता को । वरना आज के दौर में तो लोग अपने जिंदे मां-बाप को भी मां-बाप नहीं समझते । ऐसे ही कलियुगी श्रवण कुमारों की वजह से अब कुछ मां-बाप कावड़ो से तीर्थाटन की बजाय वृद्धाश्रम की यात्रा कर रहे हैं ।
खैर ! छोड़ो । हमें क्या लेना-देना । हम तो इस घटनाक्रम की बात करें । इस घटनाक्रम में हमारे प्रदेश के लिए गौरव की बात यह कि मृत माता-पिता के स्थानांतरण एवं दूसरों के नाम पर नामांतरण का सम्मान भी हमारे ही प्रदेश को प्राप्त हुआ है । ऐसा पहले कभी पढ़ने सुनने में नहीं आया । हमारे प्रदेश में ऐसा कीर्तिमान होने की भी वजह है । कारण , हमारे यहां मध्यप्रदेश गान की रचना में भी ‘ मां की गोद , पिता का आश्रय ऐसा मेरा मध्यप्रदेश है ‘ का उल्लेख हुआ है । । यह हमारे मध्यप्रदेश का ही उदार हृदय है जो देश की विभिन्न संस्कृतियों , भाषा – भाषियों तथा रीति-रिवाजों को अपने भीतर समेटे हुए है । मिली-जुली परम्पराओं की वजह से मध्यप्रदेश की अपनी अलग से कोई पहचान नहीं रही । कोई मलाल भी नहीं । सुकून इस बात का है कि हमने औरों के मृत मां-बाप को अपना बता दिया । वह भी सिर्फ अपने परिवार की खातिर । चाहते तो हम भी नकली दवाइयां बेंच कर घर चला सकते थे । दूध में यूरिया पावडर मिला कर खूब पैसा कमा सकते थे। देश के गोपनीय दस्तावेज दुश्मन देश को सौंप सकते थे । मगर हमने ऐसा नहीं किया । हमारे ज़मीर ने इसकी कभी इजाजत नहीं दी ।
अपनी पहचान मिटाकर , अपना गौत्र एवं डीएनए छुपाकर पराए , ऊपर से दिवंगत माता-पिता को अपने माता-पिता के रूप में स्वीकार कर लेने का सामर्थ्य सिर्फ मध्यप्रदेश में ही है । गर्व है ऐसे अनुकंपाधारियों पर । ऐसे सामर्थ्यवान बेटों को अब यही सलाह है कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए ही सही ,दूसरों के माता -पिता को अपना माता-पिता बना तो लिया । अब समय-समय पर इनके श्राद्ध और तर्पण भी तुम्हें ही करने होंगे । वरना इन अतृप्त आत्माओं के स्थानांतरण , नामांतरण तथा पितृदोष के भोग भी तुम्हें ही भोगने होंगे । चूंकि इनके नाम पर तुम्हें अनुकंपा नियुक्ति मिल गई । ऐसे में अनुकंपा के बदले इन पर भी थोड़ी अनुकंपा करो । अनुकंपा यही कि तुम इनके
निमित्त कुछ ऐसा करो कि इन्हें मृत रूप में इधर-उधर भटकना नहीं पड़े । बस , इन्हें मोक्ष मिल जाए ।
– डॉ . श्रीकांत द्विवेदी
महावीर मार्ग , धार
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