Satire: बिना सोचे-समझे बोलना भी एक कला है.सोचना नहीं है ,बस बोलना ही है

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Satire:बिना सोचे-समझे बोलना भी एक कला है.सोचना नहीं है ,बस बोलना ही है

– डॉ श्रीकांत द्विवेदी

आजकल राजनीति में जिम्मेदार ओहदों पर बैठे नेता अपने बड़बोलेपन और गलत बयानों से बाज नहीं आ रहे हैं । इस तरह की बयानबाजी में पक्ष-विपक्ष में से कोई पीछे नहीं है । अब इक्कीसवीं सदी की राजनीति है । जो मन में आए बोलो । उलजलूल बोलो । बिना सिर पैर की बातें बोलों । कुछ भी बोलो । पर बोलो जरूर । जनमानस के मनोरंजन के लिए ही सही , कुछ तो बोलो । सोचना नहीं है ,बस बोलना ही है । जल्दी करिए । आप नहीं बोले तो कोई दूसरा बोल जाएगा । इसलिए चर्चा में बने रहने के लिए इस तरह से बोलते रहिए । कारण , बोलना एक कला है । और बिना सोचे समझे कुछ तो भी बोल देना उससे बड़ी कला है । इसी बात को ध्यान में रखते हुए हाल ही में मप्र के एक काबीना मंत्री ने राजा राममोहन राय को एक मंच से अंग्रेजों का दलाल बता दिया । बात बस इतनी सी थी । फिर क्या था , मीडिया ने भी लिख दिया ‘ बिना सोचे कुछ भी बोलते हैं मंत्री । ‘ जबकि सोचना समझना तो मीडिया का काम था । कारण , मंत्री हैं , इसलिए ऐसा बोल गए होंगे ।

मंत्रीजी के पास इतना समय थोड़े ही होता है , जो हर बात सोच कर बोले । सोच – समझकर ही बोलना होता तो राजनीति में क्यों आते ? और चलो , कोई बात बिना सोचे समझे बोल भी दी तो उसे इतना दिल पर लेने की जरूरत ही नहीं है । मंत्रीजी हैं , दिनभर में पांच दस कार्यक्रमों में बोलना ही पड़ता है । ऐसे में कहां का भाषण कहां पढ़ा जाता है । इसमें मंत्रीजी की गलती नहीं है । पीए की जिम्मेदारी है कि ढंग से भाषण के कागज जमानत रखें । इसलिए आज की राजनीति में सब चलता है । आज बोले , कल भूले । मगर मीडिया है कि भूलने को तैयार नहीं । बात को इतना खींच देता है कि कभी – कभी पार्टी को भी विवादित बयान से कन्नी काटना पड़ती है । पार्टी विवादास्पद बयान को मंत्री / नेता की निजी राय बताकर पल्ला झाड़ लेती है । ऐसे में बयान देने वाले नेता भी कह देते हैं कि मेरे कहने का आशय ऐसा नहीं था । मीडिया ने तोड़-मरोड़कर पेश किया है । राजा राममोहन राय वाले बयान पर भी कुछ ऐसा ही हुआ ।
मामला गरमाते देख सम्बंधित मंत्रीजी को वीडियो जारी कर कहना पड़ा कि ‘ मैं तो अंग्रेजों के षड़यंत्र के बारे में बात कर रहा था । गलती से राममोहन राय के बारे में मेरे मुंह से कुछ गलत निकल गया , इसका मुझे दुःख है । राजा राममोहन राय का मैं व्यक्तिगत रूप से सम्मान भी करता हूं । वे समाज सुधारक भी थे । ‘ अब जब स्वयं मंत्रीजी ने अपनी गलती मान ली तो बात खत्म हो जानी चाहिए । इसीलिए तो कविवर रहीम ने बरसों पहले लिख दिया था कि ‘ क्षमा बड़न को चाहिए , छोटन को उतपात । ‘ और फिर गलती होना मानवीय स्वभाव है । कहीं – कहीं माननीय स्वभाव भी है । वैसे भी इन माननियों को कोई एक काम थोड़े ही रहते हैं ।

इनके सामने प्रदेश की ढेरों जनसमस्याएं , झोला भर-भर अर्जियां , कदम-कदम पर विरोधी दल के साथ – साथ अपनों के भी गति अवरोधक …. इन सबसे पार पाना इतना आसान नहीं है । राजनीति की ऐसी पथरीली पगडंडियों पर चलते हुए अपने विषय में सोचते रहना पड़ता है । जरा सा भी चुके तो हाशिए पर आ जाने का खतरा । इतने दबाव और तनाव के चलते मंत्रीजी से गलती होना स्वाभाविक है । एक मंत्री होने के नाते अपने कार्यकाल में गलत बयान तथा विवादित टिप्पणियों के लिए इन्हें थोड़ी बहुत लाइफ लाइन तो मिलनी ही चाहिए । साथ ही इनकी विवशता को समझते हुए आगे से किसी भी माननीय मंत्री या नेता के विवादित बयान को क्षम्य ही माना जाना चाहिए ।पीए की जिम्मेदारी है कि ढंग से भाषण के कागज जमाकर रखें ।

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