सिंधिया ड्रोन संभालें, गोपाल का साथ दें या झाड़ू थामें…निगाहों में आ ही जाते हैं…

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पंजाब में झाड़ू लगाने के बाद भगवंत मान मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की तैयारी में जुटे हैं। वह केजरीवाल से दिल्ली में मिले और गुफ्तगू की। इस साल गुजरात, हिमाचल में चुनाव हैं।
मोदी ने गुजरात में संदेश दे दिया है कि युवाओं पर उन्हें भरोसा है। तो मध्यप्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया ने झाड़ू हाथ में थामकर साफ-सफाई कर डाली। सिंधिया इलेवन की टी-शर्ट पहनकर ज्योतिरादित्य झाड़ू थामे ऐसे लग रहे हैं जैसे कह रहे हों कि मध्यप्रदेश में केजरी की झाड़ू नहीं चल पाएगी, यहां तो झाड़ू हमारे ही हाथ है। कांग्रेस को इसका अहसास बखूबी होगा।
वैसे भी मध्यप्रदेश बड़ा राज्य है। यहां पिछले चुनाव में भी आप ने जोर लगाया था। खाता भी नहीं खुल पाया था। उनके प्रदेश अध्यक्ष रहे आलोक अग्रवाल को भी उंगलियों पर गिने जा सकने वाले वोट मिले थे। ऐसे में यह तय है कि मध्यप्रदेश में न केजरी चल पाएंगे, न उनकी झाड़ू।
पिछले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में केजरी ने जान फूंकने की कोशिश की थी, चंदा भी जुटाया था। पर कुछ भी काम न आया था। पंजाब में “आप” की कामयाबी काबिले तारीफ है, पर मध्यप्रदेश में इसकी संभावना फिलहाल न के बराबर ही है। मध्यप्रदेश में तो नाथ कितना जोर लगा पाते हैं, उससे निपटने की तैयारी ही भाजपा को करनी है। और ज्योतिरादित्य के भाजपा में आने के बाद कांग्रेस की सेहत कमजोर तो हुई ही है। कितनी कमजोर हुई है, इसका गवाह ही बनेगा मध्यप्रदेश का 2023 का विधानसभा चुनाव।
खैर बात चुनावों की ही चली है, तो इसी साल गुजरात और हिमाचल में चुनाव होने हैं। जम्मू कश्मीर में क्या होगा, यह तो मोदी ही समझ सकते हैं। तो 2023 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना सहित त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड में चुनाव होने हैं। मोदी सहित भाजपा के सभी दिग्गज इन चुनावों में जुटे रहेंगे। जहां कहीं भी झाड़ू मैजिक चलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। अभी तो गोवा में दो सीट मिली हैं तो आप की नजर अगले विधानसभा चुनाव में गोवा पर जरूर रहेगी।
इन दो सालों के चुनावों के बाद यह जरूर पता चलेगा कि आप ने कहां-कहां चुनाव लड़ने का मन बनाया और कहां-कहां खाता खोलने में सफल हो पाती है। जहां वह पांच साल बाद झाड़ू लगाने का टारगेट बना सकती है। खैर 2024 के लिए मोदी कह ही चुके हैं कि यूपी जीता तो हमने 2024 ही फतह कर लिया है, सो यहां से भी आप का पत्ता कट गया है। अगली चुनौती तो केजरी को दिल्ली के विधानसभा चुनाव की ही रहेगी कि 2025 में हैट्रिक बना पाते हैं या नहीं। सिंधिया की सफाई अगर दिल्ली पर असर डाल सकेगी, तो शायद भाजपा के लिए बहुत बेहतर होगा। क्योंकि दो विधानसभा चुनाव में तो दिल्ली में केजरी के सामने मोदी की भी नहीं चली। लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने भले ही केजरी को घास न डाली हो।
पर मध्यप्रदेश में सिंधिया की सक्रियता जमीन पर नजर आ रही है। वरिष्ठतम विधायक-मंत्री गोपाल भार्गव के क्षेत्र का रहस मेला अब रहस्य सा बन गया है। सिंधिया इसमें शामिल हुए और गोपाल को हिम्मत भी बंधा दी कि ज्योतिरादित्य साथ है, मरते दम तक साथ देगा। संदेश यही था कि भावुक और कमजोर मत होइए गोपाल जी, सिंधिया तुम्हें अकेला नहीं पड़ने देगा। बदले में हो सकता है कि कुछ अपेक्षा भी हो, जिसे गोपाल समझ ही गए होंगे।
वैसे ग्वालियर में ही सिंधिया ही शिवराज के डगमगाते ड्रोन की सुरक्षित लैंडिंग के सारथी भी बने। सिंधिया सफल सारथी का प्रमाण तो पहले ही दे चुके हैं। उधर श्योपुर के कराहल में तोमर और शिवराज साथ-साथ रहे। यानि कि पुरानी जोड़ी अब भी हिट है। दोनों नेताओं ने मिलकर मध्यप्रदेश के दो विधानसभा चुनावों में यह साबित किया है कि यह एक और एक मिलकर दो नहीं, बल्कि ग्यारह ही बनते हैं। पर फिलहाल सबकी निगाहें सिंधिया की तरफ ही हैं…। चाहे वह ड्रोन संभालें, चाहे गोपाल का साथ देने का दम भरें या फिर झाड़ू ही थाम लें।