भीषण गर्मी और मौसम (Season) के बदलते रंग;
राजनीति की बातें करते-करते जब उबकाई आने लगे तब हमें मौसम (Season) की बात करना चाहिए. मौसम (Season) भी आजकल राजनीति से प्रेरित दिखाई देता है और इसीलिए पल-पल पर रंग बदलता दिखाई दे रहा है.
अब चूंकि मौसम (Season) एक विज्ञान है इसलिए मनुष्य मौसम (Season) के मिजाज का अंदाजा पहले से लगा लेता है और जरूरी होने पर लोगों को आगाह भी कर देता है. इसके लिए बाकायदा ‘ऑरेंज अलर्ट’ तक जारी किये जाते हैं.
सोलहवीं,सत्रहवीं सदी में आदमी के पास मौसम (Season) की नब्ज पर हाथ रखने का कोई विज्ञान नहीं था, लेकिन पंचांग था. सूर्य की गृह-दशा के बारे में इनसान बहुत कुछ जानता था. तब के कवि अब के कवियों से इस मामले में बहुत आगे थे. इसीलिए उन्हें मौसम (Season) का चित्रण करने में महारत हासिल थी.
देश में बढ़ती गर्मी के बीच भारतीय मौसम (Season) विज्ञान विभाग ने बीते रोज राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और ओडिशा सहित उत्तर पश्चिमी भारत के पांच राज्यों के लिए ‘ऑरेंज अलर्ट’ जारी किया है.
मौसम(Season) विज्ञानी आरके जेनामणि ने बताया कि बुधवार को देश के कुछ हिस्सों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया.
उन्होंने कहा, “इसे देखते हुए हमने राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और ओडिशा के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया है.”
आपने अब तक रेड अलर्ट के बारे में सूना होगा, लेकिन अब ‘ऑरेंज अलर्ट’ के बारे में जान लीजिये.
मौसम (Season) विभाग द्वारा मौसम से संबंधित चेतावनी देने के लिए ‘रेड अलर्ट’, ‘ऑरेंज अलर्ट”, ‘येलो अलर्ट’ और ‘ग्रीन अलर्ट’ को जारी किया जाता है.
चेतावनी देने के लिए रंगों का चुनाव कई एजेंसियों के साथ मिलकर किया जाता है. इन अलर्ट को मौसम (Season) के ख़राब होने की तीव्रता के आधार पर जारी किया जाता है यानि भीषणता के माध्यम से रंग बदलते रहते हैं.
बहरहाल जब गरमी अपने पूरे शबाब पर होती है तो आम आदमी की जान पर बन आती है. आम आदमी दिल्ली, मुंबई के मुकाबले बिहार और उत्तर प्रदेश में ज्यादा रहता है.
बेचारा तेज सर्दी पड़े तो मरता है, बाढ़ आये तो उसी को मरना है और गरमी में भी आम आदमी ही मारा जाता है.
आम आदमी के पास न कूलर होता है और न पंखा. बेचारा एसी के बारे में तो कल्पना तक नहीं कर सकता. उसके पास ज्यादा से ज्यादा हाथ से झलने वाला पंखा होता है जिसे हमरे बुंदेलखंड में ‘बिजना’ कहते हैं.
अब चूंकि गर्मी भन्ना रही है तो बिजली और पानी का संकट भी गहराने लगा है, लेकिन इस संकट के पीछे कौन है ये आम आदमी न जानना चाहता है और न कोई बताना चाहता है.
जल, जंगल और जमीन के प्रति हमारी सरकार की नीतियों और आम आदमी की उदासीनता ने ही मौसम को भी आपने रंग बदलने के लिए मजबूर कर दिया है, आम आदमी लगातार प्रकृति से दूर होता जा रहा है या उसे दूर किया जा रहा है.
सरकार बेरहमी से कुदरत अडानियों और अम्बानियों पर लुटा रही है. जंगल काटो,जमीन खोद डालो नदियों को निचोड़ लो, कोई रोकटोक नहीं. जो विरोध करे उसे राजद्रोही बना दो.
पहले आदमी जमीन पर रहता था, कुंआ खोदो तो दो-चार हाथ पर पानी मिल जाता था, आज आदमी जमीन पर गगनचुम्बी इमारतें बनाकर रहने को मजबूर है.
अब सौ-पचास मंजिल कीइमारत पर कुंए तो कजोड़े नहीं जा सकते इसलिए कुँओं को ही लगातार गहरा कर जमीन का पानी निचोड़ा जा रहा है.
पहले पानी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध था, लोग जनहित में और पुण्य कमाने के लिए प्याऊ लगता था अब पानी बोतलों में बंद है. सौ ग्राम पानी की कीमत कम से कम पांच रूपये है. आने वाले दिनों में पानी भी आधार कार्ड दिखाकर मिल सकता है.
सरकार जैसे आज 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में अन्न बाँट रही है उसी तरह भविष्य में 120 करोड़ लोगों मो मुफ्त में पानी देकर लोकतंत्र की रक्षा की जायेगी.
आदमी और उसका विज्ञान न धरती बना सकता है और न धरती के ऊपर, नीचे मिलने वाली चीजें. पानी भी इनमें से एक जरूरी चीज है. इस जरूरी चीज की कमी से नेचर यानि प्रकृति यानि कुदरत नाराज है.
सूरज बाबा लगातार आग बरसाने लगे हैं.
आज का कवि रीतिकाल के कवियों की तरह सूरज बाबा के मिजाज पर कवित्त नहीं लिख सकते. जब मैं कक्षा पांच का छात्र था, तब मुझे कवि सेनापति की कविता पढ़ाई जाती थी जो आज मैं आपको भी साझा कर रहा हूँ.
वे कहते थे कि –
बृष को तरनि तेज, सहसौ किरन करि,
ज्वालन के जाल बिकराल बरसत हैं।
तपति धरनि, जग जरत झरनि, सीरी
छाँह कौं पकरि, पंथी-पंछी बिरमत हैं॥
‘सेनापति नैक, दुपहरी के ढरत, होत
धमका बिषम, ज्यौं न पात खरकत हैं।
मेरे जान पौनों, सीरी ठौर कौं पकरि कौनौं,
घरी एक बैठि, कहूँ घामै बितवत हैं।
आप इसे बृज की, अवधी की, बुंदेली भाषा की कविता कह सकते हैं लेकिन सीधी समझ में आने वाली कविता है.
किसी रंगकर्मी की कूंची से प्रकृति का उकेरा गया चित्र जैसी है ये कविता. आज के कवि ये कमाल नहीं कर सकते.
बेचारों को नेताओं की स्तुति लिखने से ही फुरसत नहीं है, वे कुदरत पर कैसे लिख सकते हैं?
रमजान के महीने में सूरज किस राशि में है मुझे नहीं पता लेकिन इतना मालूम है कि सूर्य प्रचंड रूप से तप रहा है.
असंख्य किरणों का जाल उसने जमीन पर फैला दिया है. इस जाल में ज्वालायें भरी हैं. धरती तप रही है, दुनिया जली जा रही है और ठंडी छांव के लिए पथिक और पंछी दोनों परेशान हैं.
सेनापति कहते हैं कि दोपहर के ढलते ही जो धमका पड़ता है उसमें पेड़ों से पत्ते तक नहीं हिलडुल पाते.
ऐसा लगता है कि हवा भी मरे गर्मी के कहीं ठंडी छाँह का कोना पकड़कर घाम बीतने का इन्तजार कर रही है.
सेनापति द्वारा पांच सौ साल पहले लिखा गया कवित्त आज का लिखा प्रतीत होता है. आज के कवि सेनापति नहीं हो सकते, वे चारण और भाट हो सकते हैं. चमचे हो सकते हैं. प्रकृति वर्णन वे क्या ख़ाक करेंगे?
इस सबके बावजूद मेरे ज्योतिषी ने मुझे बताया है कि आज से शनि देव के कुंभ राशि में गोचर करते ही मीन राशि पर साढ़ेसाती आरंभ हो जाएगी और धनु राशि साढ़े साती से पूरी तरह से मुक्त हो जाएंगी।
इस समय में कुंभ राशि पर साढ़े साती का दूसरा चरण आरंभ होगा और मकर राशि पर साढ़े साती का अंतिम चरण आरंभ होने जा रहा है।
मिथुन राशि, तुला राशि से शनि की ढैया समाप्त होगी और कर्क राशि व वृश्चिक राशि पर ढैय्या का आरंभ हो जाएगा। मेरी राशि वालों के लिए ये समय अनुकूल है. उनके लिए भी जिन्हें लोग पप्पू कहते हैं.