स्थानीय निकाय चुनाव (Election) में दांव-पेंच

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मध्यप्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव (Election) दिलचस्प होंगे. सत्तारूढ़ भाजपा के लिए ये चुनाव जितने महत्वपूर्ण हैं विपक्षी कांग्रेस के लिए भी उतने ही अहम क्योंकि प्रदेश में एक लम्बे समय से स्थानीय निकायों पर भाजपा काबिज है, कहीं–कहीं तो चार दशक से भाजपा की अखंड सत्ता रही है. इस चुनाव में हालाँकि सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी होती है लेकिन इस बार स्थानीय क्षत्रप भी सामने हैं.

स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर कांग्रेस में खासा उत्साह है हालाँकि संगठनात्मक रूप से कांग्रेस भाजपा के मुकाबले आज भी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है फिर भी इस बार कांग्रेस ने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करने में भाजपा को पीछे छोड़ दिया है. कांग्रेस 15 निकायों में महपौर पद के लिए अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर चुकी है. ऐसी धारणा है कि इन 15 में से 13 नाम कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की पसंद के और मात्र 2 दिग्विजय सिंह की पसंद के हैं.

कांग्रेस ने अबकी बार जहाँ प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की है वहीं अपने अनेक विधायकों तक को मैदान में उतार दिया है यानि इस समय पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस बहुत कम है, हालाँकि असंतोष है और वो स्वाभाविक भी है, ग्वालियर की एक महिला ने टिकिट न मिलने पर कमलनाथ के घर के बाहर डेरा डालकर सूकरखियाँ भी बटोरने की कोशिश की. गरीब को सुर्खियां तो मिल गयीं किन्तु टिकिट नहीं मिला. जाहिर है कि कांग्रेस ने बहुत पहले से अपने प्रत्याशियों को लेकर मन बना लिया था.

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प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करने में पहली बार भाजपा को पसीना आ रहा है. पार्टी के समाने ‘ एक अनार,सौ बीमार ‘ वाली स्थिति है. प्रत्याशी ज्यादा हैं और टिकिट सीमित. टिकिटों का फैसला करने वाला कोई एक नेता नहीं है. न मुख्यमंत्री इस मामले में परम स्वतंत्र हैं और न पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष. पार्टी में पहली बार मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख के अलावा कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए एक महाराज भी हैं. हाल ही में उनके ग्वालियर प्रवास के दौरान उनके महल में टिकिट के दावेदारों की जबरदस्त भीड़ उमड़ी थी.


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भाजपा आने वाले दिनों में भले ही स्थानीय निकाय चुनावों में अपना परचम फहराने में कामयाब हो किन्तु शुरुआत में तो उसकी कमजोरी सामने आ ही चुकी है. भोपाल में टिकटार्थियों का मेला लगा है किन्तु नेतृत्व नामों का फैसला नहीं कर पा रहा है यानि घमासान तो है और यही घमासान बाद में चुनाव परिणामों को प्रभावित करता है. समझा जाता है की पार्टी में लगातार हासिये पर जा रहे पूर्व संसद,पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा भी अपनी पत्नी को महापौर का चुनाव लड़वाना चाहते हैं और इसके लिए हाल ही में उन्होंने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी भेंट की.

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भाजपा के टिकिटों की घोषणा होने तक जहाँ असनतोष बढ़ेगा वहीं चुनावी तैयारियां भी प्रभावित होंगी. ग्वालियर-चंबल अंचल के क्षत्रप केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस बार गुड़ खाकर बैठे हैं लेकिन उन्होंने अपने नाम पार्टी है कमान को दे दिए हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने समर्थकों से कह दिया है कि अंतिम फैसला तो पार्टी ही करेगी. ये तकनीकी बातें हैं किन्तु फैसले तो हो चुके हैं, इसके नतीजे जो होंगे सो होंगे.

स्थानीय निकाय चुनावों में स्थानीय नेता चुनाव नहीं लड़ते, उनके लिए स्थानीय क्षत्रपों को भी अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगना पड़ती है भाजपा के हिस्से में अब तक स्थानीय निकाय प्राय बड़ी आसानी से आते रहे हैं. भाजपा ने अब तक जिसे चाहा उसे महापौर बना लिया लेकिन पहली बार भाजपा के सामने चुनौती है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के कारण सत्ताच्युत हुई कांग्रेस हर हाल में स्थानीय चुनावों के जरिये अपनी ताकत का अहसास करना चाहती है.

कांग्रेस स्थानीय निकाय चुनावों के जरिये भाजपा के प्रभुत्व वाले शहरी इलाकों में अपना प्रभुत्व बढ़ाना चाहती ही. प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में आज भी कांग्रेस की स्थिति बहुत ज्यादा खराब नहीं है विधानसभा चुनावों के पिछले नतीजों से ऐसा लगता है, लेकिन शहरी इलाकों में भाजपा की पकड़ अवश्य मजबूत है. कांग्रेस को स्थानीय निकाय चुनावों से पहले होने वाले पंचायत चुनावों से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों को कांग्रेस ने महत्वपूर्ण माना है और इस हिसाब से अपनी तैयारी भी की है, नतीजे जो भी हों. कांग्रेस ने न परिवारवाद के आरोपों की चिंता की है और न अंदरूनी असंतोष की.

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भाजपा से आखरी बार दो-दो हाथ कर रहे कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है कि- ‘निकाय चुनाव सिर्फ हार और जीत का प्रश्न नहीं हैं. बल्कि ये चुनाव हमारी जन सेवा के भाव को मूर्त रूप देने का माध्यम मात्र है. हम सुंदर, सुरक्षित, समर्थ और सुविधाओं से भरपूर शहर देने के संकल्प के साथ आपके समक्ष हैं. आप से सरोकार रखने वाले आपके शहर के जनसेवक लोकप्रिय साथियों को महापौर प्रत्याशी के रूप में आपको आशा और विश्वास के साथ सौंपा है. मेरे सभी महापौर प्रत्याशी साथी ऐसे महान संकल्प के साथ जनता के बीच जाएं कि चारों तरफ फैले कुशासन और भ्रष्टाचार के बीच जनता आपके साथ मिलकर नई शुरुआत करे.’.

प्रदेश में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 408 स्थानीय निकाय हैं इनमें नगर पालिक निगम: 16, नगरपालिका परिषद: 98 और नगर परिषद: 294 हैं. पहली बार इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यक एआइएमआइएम भी एक चुनौती होने वाली है. पार्टी प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने घोषणा की कि पार्टी मध्य प्रदेश के 7 नगर पालिकाओं में निकाय चुनाव लड़ेगी. ओवैसी ने कहा पार्टी इंदौर, भोपाल, जबलपुर, खरगोन, बुरहानपुर, रतलाम और खंडवा नगर पालिकाओं सहित मध्य प्रदेश के 7 नगर पालिकाओं में नागरिक चुनाव लड़ेगी. प्रदेश में पिछले दिनों हुए दंगों के बाद प्रदेश सरकार द्वारा इस्तेमाल किये गए बुलडोजर स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा का आंशिक नुक्सान अवश्य कर सकते हैं, हालाँकि ये केवल ओवैसी के कारण नहीं होगा.

बल्कि पूरे देश में अल्पसंख्यकों को राजनीति से किनारे करने की भाजपा की कोशिशों के कारण होगा. ये भी मुमकिन है कि ओवैसी की पार्टी की मौजूदगी से भाजपा को नुकसान के बजाय फायदा हो जाये क्योंकि जो मतदाता कांग्रेस की ओर  रुख कर भाजपा का नुक्सान कर सकते हैं वे ओवेसी के पास जाकर भाजपा का कल्याण कर दें. बहरहाल प्रदेश में इस बार बरसात का मौसम हर साल की बरसात से एकदम अलग होगा. इस मौसम में आपको दादुर, पपीहे और मोर ही नहीं झींगुर भी झांझ बजाते सुनाई और दिखाई देंगे.