

Search for Vultures : विलुप्त हो रहे गिद्धोें की तलाश में वन विभाग का 17 फरवरी से तीन दिन का अभियान!
तीन दिन तक गिद्धों को सभी रेंज, बीट और डिविजन स्तर पर तलाशा जाएगा!
Bhopal : मालवा क्षेत्र में तेजी से विलुप्त हो रही गिद्धों की प्रजातियों को खोजने के लिए प्रदेश के सभी वन मंडलों में 17 फरवरी से तीन दिवसीय विशेष अभियान शुरू किया जाएगा। इस अभियान के तहत गिद्धों की मौजूदगी का पता लगाकर उनकी संख्या का आंकलन किया जाएगा। इस अभियान के तहत सभी बीट, रेंज और डिवीजन स्तर पर जानकारी एकत्र की जाएगी।
गिद्ध पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, वे मृत जीवों को खाकर प्राकृतिक सफाई का कार्य करते हैं। पिछले वर्ष मालवा के कुछ जिलों (शाजापुर और आगर) में 27 गिद्ध देखे गए। विशेषज्ञों का मानना है कि गिद्धों की संख्या में लगातार आ रही गिरावट को देखते हुए यह पहल बेहद महत्वपूर्ण है। जिले से गिद्ध पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं और कुछ स्थानों पर इनकी मौजूदगी बेहद कम हो गई है। वन विभाग और वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ इस अभियान के जरिए 17 से 19 फरवरी तक व्यापक सर्वेक्षण कर गिद्धों की पहचान और संरक्षण पर काम करेंगे। इसके बाद अप्रैल में एक दिन यही अभियान चलेगा।
मृत जानवरों के शवों का खात्मा
वन विभाग के अधिकारी राम मूर्ति शर्मा ने बताया कि अब तक गिद्धों की उपस्थिति को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। हालांकि, पिछले वर्ष शुजालपुर और सुसनेर क्षेत्र में कुछ गिद्ध देखे गए थे। इस वर्ष भी कुछ इलाकों में गिद्धों के देखे जाने की सूचना मिली है। वर्ष 1990 और 2000 के दशक में सफेद पीठ वाले गिद्धों की संख्या हजारों में थी जो अब बिल्कुल नगण्य है। गिद्धों के लुप्त होने का पर्यावरण पर सीधा असर देखा जा सकता है। अब गिद्धों की अनुपस्थिति में चूहे, जंगली कुत्ते और अन्य मांसाहारी जीवों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
जहरीले पदार्थों और शिकार से घटी गिद्धों की संख्या
गिद्धों की संख्या में गिरावट का एक प्रमुख कारण डाइक्लोफेनैक नामक दर्द निवारक दवा है, जिसे मवेशियों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता था। जब गिद्ध इन मवेशियों के शवों को खाते थे, तो उनके शरीर में यह दवा पहुंचकर घातक साबित होती थी। हालांकि, इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन तब तक गिद्धों की अधिकांश आबादी नष्ट हो चुकी है। इसके अलावा, पर्यावास विनाश, भोजन की कमी, शिकार और जहरीले पदार्थों का सेवन भी गिद्धों की संख्या में गिरावट का कारण हैं। जंगलों की कटाई और शहरीकरण के चलते इनके घोंसले बनाने के स्थान खत्म हो गए। वहीं अवैध शिकार के मामले भी सामने आए थे। गिद्धों की 6 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन मालवा क्षेत्र में केवल एक प्रजाति सफेद पीठ वाला गिद्ध की मौजूदगी की संभावना जताई जा रही है।
गिद्धों की प्रमुख प्रजातियां
– भारतीय गिद्ध
– सफेद पीठ वाला गिद्ध
– लंबी चोंच वाला गिद्ध
– हिमालयी गिद्ध
– राजगिद्ध
– मिस्र गिद्ध
गिनती में उड़ते हुए गिद्ध शामिल नहीं
गिद्धों की गणना के लिए सभी वनमंडल के वन कर्मियों को ट्रेंनिग दी जाती है। गिद्धों की गिनती के लिए चिन्हित जगहों पर सुबह 6 बजे के पहले पहुंचना होता है। गणना 8 बजे तक की जाती है। गिद्धों की गणना में सिर्फ जमीन या पेड़ों पर बैठे गिद्धों को ही शामिल किया जाता है। उड़ते हुए गिद्धों की गिनती नहीं की जाती। गिद्ध गणना के दौरान गिनती के लिए उनकी तस्वीरें भी ली जाती है, जिससे पता चल सके कि गिनती में शामिल गिद्ध कौन-सी प्रजाति के है।
गिद्धों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। सभी वन मंडलों में वन विभाग द्वारा 17 फरवरी से गिद्धों की वर्तमान स्थिति का आकलन करने और उनके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए सर्वेक्षण करेगा। बैठे हुए गिद्धों की ही गणना की जाती है, इसके लिए बीट प्रभारियों सहित अन्य कर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया है।