बहुत ढूंढा पर MP में नहीं मिला भूपेन्द्र पटेल

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गत सप्ताह मंगलवार को इसी कालम में हम चर्चा कर रहे थे कि ‘मध्य प्रदेश का अगला भूपेंद्र पटेल कौन होगा’ और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके थे। पिछले एक सप्ताह के दौरान मप्र से जुड़े इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर विभिन्न नेताओं, पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों से गहन चर्चा हुई और कोई भी गुजरात के तर्ज पर मध्यप्रदेश में भूपेंद्र पटेल को तलाशा नहीं जा सका। ज्यादातर लोगों का मानना है कि मध्य प्रदेश की गुजरात से तुलना किया जाना सही नहीं होगा।

सब कुछ उनकी अंगुलियों पर
गुजरात वह राज्य है जहां नरेंद्र मोदी और अमित शाह की टीम लंबे समय से जमीन से जुड़ी रही है और गुजरात के एक एक नेता को जानती हैं और समझती है। उन नेताओं की क्या कमजोरियां हैं और क्या ताकत है।

पूरा है लेखाजोखा
ताकत और कमजोरी का बेहतर लेखा-जोखा मोदी और शाह की टीम के पास होता है और इसी का परिणाम रहा कि उन्होंने अपनी जानकारी पर भरोसा करते हुए चुनाव से एक साल पहले इतना बड़ा रिस्क लिया और विरोध की परवाह किए बगैर पूरे घर के एक ही झटके में बदल डाले। इसलिए कहा जा सकता है यह एक एक्सपेरिमेंट है जिसके बारे में मोदी और शाह की टीम को पूरी तरह भरोसा है। पर मप्र में ऐसा एक्सपेरिमेंट नहीं किया जा सकता है। मोदी और अमित शाह की टीम गुजरात के चप्पे-चप्पे से इतनी वाकिफ हैं कि अगर कोई उन्हें सोते से उठाकर भी किसी विधानसभा क्षेत्र की चर्चा करें तो वे लैपटॉप पर रिकॉर्ड खोजे बगैर उस क्षेत्र की जन्म कुंडली और इतिहास बता सकते हैं।

28 में एक भी दमदार नहीं
मध्यप्रदेश विधानसभा के 23 अगस्त 2021 तक संशोधित रिकॉर्ड के अनुसार 15वीं विधानसभा में 83 सदस्य पहली बार निर्वाचित होकर विधानसभा के सदस्य बने हैं। इनमें भाजपा के 28, कांग्रेस के 49, बसपा के दो, सपा का एक और तीन निर्दलीय हैं। भाजपा की तरफ से पहली बार चुने गए विधायकों में बाबूलाल गौर की पुत्रवधू श्रीमती कृष्णा गौर, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पुत्र आकाश विजयवर्गीय, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के भाई उमाकांत शर्मा के नाम भी हैं। पर इन नामों में कोई भी ऐसा नहीं है जो अपने दम पर आगे बढ़ने की ताकत रखता हो। इन सभी लोगों के पीछे राजनीतिक हाथ है जो इन्हें पीछे से धक्का दे रहा है, साथ ही गिरने पर संभालने के लिए भी तैयार है।इसलिए फर्स्ट टाइमर विधायकों पर कोई प्रयोग मध्यप्रदेश में संभव नहीं दिखता है।

सीटें गईं सरकार गई
मध्यप्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटों में से 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए तथा 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई है। यह 82 सीटें प्रदेश में स्थायी सरकार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होती हैं। 2018 के मप्र विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षाकृत बहुमत ना मिल पाने के पीछे इन आदिवासी बाहुल्य वाली 47 सीटों में से अधिकांश का फिसलना भी था। 2013 के चुनाव में भाजपा को 34 अजजा सीटों का समर्थन मिला था जो 2018 में घटकर 17 रह गया था।कांग्रेस में 2018 के चुनाव में इन सीटों पर बेहतर पकड़ बनाई थी।

आदिवासियों से जुड़ाव पर जोर
भाजपा को मध्यप्रदेश में स्थायी सरकार बनानी हो तो आदिवासी क्षेत्र में पैठ और गहरी करनी होगी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बारे में मंथन कर रहा है और संघ की ओर से भी इस मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है। उनकी तरफ से भी अधिक से अधिक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के नेताओं को अपने साथ जोड़ने का अभियान गंभीरता से चलाया जा रहा है।

आदिवासी नेताओं की किल्लत
अगर आदिवासी नेताओं की बात करें तो मध्यप्रदेश में 47 सीटें उनके नाम पर आरक्षित होने के बावजूद कोई ऐसा नेता नहीं दिखता है जिसका नाम एकदम से जनमानस के जेहन में आता है। आदिवासी नेताओं की बात करें तो एक नाम ही सामने आता है जो फग्गन सिंह कुलस्ते का है। वे केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री हैं। आदिवासी कोटे से लगातार केंद्र में मंत्री बने हुए हैं। आदिवासियों के बीच उनकी सामान्य पकड़ है। मंडला के सांसद हैं।फग्गन सिंह कुलस्ते की छवि सीधे, सरल, सहज नेता के तौर पर है।Mass Leader न होने के कारण भाजपा उनपर भी दांव नहीं खेल सकती।

नेतृत्व परिवर्तन तो होगा
गुजरात में पाटीदार वोटों की चिंता करते हुए भाजपा नेतृत्व ने भूपेंद्र पटेल को कमान सौंप दी है। यदि उसी तर्ज पर देखा जाए तो मध्यप्रदेश में आदिवासी नेतृत्व को तैयार किया जाए तो भाजपा लंबे समय तक प्रदेश में काबिज रह सकती है। भाजपा के अंदर खाने की बात को सच माने तो गुजरात की तर्ज पर लगभग 1 वर्ष पहले यहां अभी नेतृत्व परिवर्तन की पूरी संभावना है। मध्य प्रदेश में नवंबर 2023 में विधानसभा चुनाव होना प्रस्तावित है इसलिए कहा जा सकता है कि 2022 में प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होना निश्चित है।

आडवाणी की भूल
यदि थोड़ पीछे जाएं तो आपको याद आ जाएगा कि 2014 के आम चुनाव के पहले जब केंद्र में भाजपा प्रधानमंत्री कैंडिडेट तलाश रही थी। लालकृष्ण आडवाणी, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री मटेरियल कैंडिडेट मान रहे थे।आडवाणी ने इस बारे में खुलकर ऐलान तक कर दिया था और आडवाणी आज भी अपनी उसी गलती का खामियाजा भुगत रहे हैं।

अपनी तरफ से 120% प्रयास
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय नेतृत्व के साथ अपने संबंध सामान्य बनाने के लिए अपनी तरफ से 120% प्रयास किया है लेकिन मोदी और शाह की टीम को जानने वालों का मानना है कि एक बार यह दोनों लोग जो तय कर लेते हैं, उस पर अमल हर हाल में करते हैं।

एंटी इनकंबेंसी फैक्टर
वैसे भी देखा जाए कि मध्यप्रदेश में चौथी बार मुख्यमंत्री के तौर पर काम कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अगले चुनाव में एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का भी सामना करना पड़ेगा तो पार्टी इस संकट से बचने के लिए चुनाव के एक साल पहले नया कैंडिडेट मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत करेगी और उन संभावित नामों में प्रदेश के वर्तमान मंत्रिमंडल से एक भी नाम नहीं होगा।

ज्योतिदित्य सिंधिया की उड़ान
केंद्र में बैठे कुछ मंत्री भी मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री कुर्सी पर निगाह जमाए बैठे हुए हैं। उनमें सबसे मजबूत नाम नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिदित्य सिंधिया का माना जा रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जिस तरीके से भाजपा में पदार्पण करने के बाद ‘महाराज’ वाला अपना चेहरा उतार कर जनमानस के बीच जाने का जो सिलसिला बढ़ाया है और बेतकल्लुफ होकर जनता से संपर्क बनाया है, Mass Leader के तौर पर उनसे भाजपा को एक उम्मीद जग गई है।
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री बनने के बाद पहली बार इंदौर पहुंचने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का जिस उत्साह और जोश के साथ स्वागत हुआ वह देखने लायक था। इंदौर के लोगों का मानना है कि उनका इतना भव्य स्वागत पहली बार देखा है। स्पष्ट है कि ज्योतिरादित्य अब Mass Leader के तौर पर उभर कर सामने आ रहे हैं।

दादी से है आस
सिंधिया के मुख्यमंत्री बनने में सबसे बड़ी बाधा संघ की ओर से ना मिलने वाली क्लीनचिट है। यह कहा जा रहा है की संघ भी चाहेगा कि मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के पहले कोई ऐसा व्यक्ति शीर्ष पद पर पदस्थ हो जो संघ की रीति नीति को सफलतापूर्वक अमल में ला सके। सिंधिया के प्रति उनकी दादी (राजमाता) विजयाराजे सिंधिया के कारण यदि संघ पसीज गया जो मध्यप्रदेश में भाजपा के विजयरथ के सारथी ज्योतिरादित्य सिंधिया ही होंगे। सब कुछ योजना अनुसार चला तो यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी व शाह की जोड़ी ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक साल तक अपनी भट्टी में तपाकर शुद्ध सोना बना रहे हैं ताकि वे मध्यप्रदेश के विकास के इतिहास में नयी इबारत लिख सकें।