What Collector’s Eye Saw: ये हैं अल्बी सस्तिया, उनके जैसा सुकून हमें भी नसीब नहीं!
डॉ अभय अरविंद बेडेकर कलेक्टर, अलीराजपुर की आंखों देखी
ये हैं भील फलिया के गांव ग्राम झण्डाना की अल्बी सस्तिया, इनके पति शब्बीर सस्तिया का निधन हो गया। इनकी शिक्षा बिल्कुल नहीं यानी ये ‘अनपढ़’ हैं। इस महिला के लिए ‘अनपढ़’ इसलिए लिखा कि शालेय शिक्षा के हिसाब से देखें, तो अल्बी कभी स्कूल ही नहीं गयी। पर, उनके जैसी समझदार, संतोषी और सुखी तथा बहादुर महिला बहुत कम देखने मिलती है।
अल्बी झण्डाना गाँव के भील फलिये में अकेली 3 बकरियों और 4-5 मुर्ग़े-मुर्गियों के साथ रहती है। उनकी 4 बेटियां हैं, सबकी शादी हो गई और सब अपने अपने-अपने घर चलीं गयीं। अब वे और उनकी तनहाई …!’ पर इस तनहाई, एकांत में जैसा सुकून अल्बी के चेहरे पर देखा, वो हम शहरी जीवन में देखने को तरस जाते हैं।
जब जनपद के अधिकारी ने अल्बी को बताया कि कलेक्टर साहब, बड़े साहब आये हैं, तो उस अनपढ़ महिला ने झुककर ‘जोहार’ किया जो संभवतः आदिवासी समाज में सम्मान देने का श्रेष्ठ प्रतीक है। तब मुझे लगा कि पढ़े-लिखे सभ्य समाज में भी कभी कभी सरकारी अधिकारियों को ये सम्मान नहीं मिल पाता। मैं स्वयं, अलीराजपुर के पुलिस अधीक्षक राजेश व्यास और ज़िला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी अभिषेक चौधरी और अन्य अधिकारियों के साथ 10 सितंबर को अलिराजपुर मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर ग्राम पंचायत झण्डाना गया था।
ये अलीराजपुर जिले का ऐसा गांव है, जहां मतदान दल को मतदान करवाने नाव से जाना पड़ता है। पुण्य सलिला माँ नर्मदा के बैक वाटर को पार करके पहाड़ी पर चढ़कर झण्डाना गांव के पंचायत भवन तक पहुंचना पड़ता है। इसके बीच में अल्बी का घर पड़ता है। इस पंचायत में झण्डाना, सुगट और चमेली ये तीन गाँव हैं। इस पंचायत में और कुल 13 फलिये हैं जिनमे कुल 1624 लोग (2011 की जनगणना के मुताबिक) रहते हैं।
ये हमारे लोकतंत्र की ताक़त है और हमारी लोकतांत्रिक मूल्यों में जनता की आस्था कि कितनी भी मुश्किल हो, हम सब निर्वाचन आयोग के मार्गदर्शन में ऐसे सभी स्थानों पर भी मतदान केंद्र बनाते हैं जो दूरस्थ होने के साथ दुरूह भी हैं। इसलिये मैं और पुलिस कप्तान मतदान केंद्र का निरीक्षण करने गए थे। साथ ही इस पंचायत और उसके गाँवों की वस्तुस्थिति जानने और समझने भी। कितना मुश्किल जीवन है इन लोगों के लिए, पर ये सब उतने ही खुश मिज़ाज और संतोषी भी हैं।
27-28 साल का नौजवान हींगा सोलिया सोंडवा जनपद के सदस्य हैं। झण्डाना पंचायत उन्हीं के जनपद क्षेत्र में पड़ती है। वे बहुत सक्रिय भी रहते हैं। जब मैंने उन्हें बताया कि हम लोग न सिर्फ़ मतदान केंद्र देखने आए हैं, बल्कि उनकी समस्याएँ जानने भी आये हैं, तो उनका कहना था कि यहाँ कि मुख्य समस्या ‘एप्रोच रोड’ है। चमेली गाँव के पटेल फलिया से झण्डाना के पटेल फलिया तक अगर 3.5 किमी लंबी रोड बन जाये तो झण्डाना और ऊपर सुगट तक भी जाना सुगम हो जायेगा।
लगभग 1600-1700 लोग रोज़ कष्ट सहते हैं, लेकिन आजतक हमारी कोई मदद नहीं हुई। ये सड़क मात्र कच्ची सड़क बनना है, जो नर्मदा के बैक वाटर के किनारे-किनारे बनेगी, पर बीच में फ़ॉरेस्ट लगता है इसलिए शायद आजतक नहीं बन सकी। उनकी बात सुनकर हमने तय किया कि ये सड़क हम अवश्य बनवा कर रहेंगे, ताकि गांव वालों को, हमारे आदिवासी भाई बहनों को राशन लेने तो नाव से न जाना पड़े। आज तो राशन लेने भी वे नाव से जाते हैं, क्योंकि नाव से जाना उन्हें पठार-पहाड़ पार करके जाने से ज़्यादा आसान लगता है।
जब मैंने अल्बी से पूछा कि आपको क्या चाहिए?
तो उसने इतना ही कहा कि ‘सड़क बन जाए। राशन तो मिल जाता है, वो तो हम किसी तरह ले ही आते हैं।’
हींगा सोलिया ग्रेजुएट हैं और समाजशास्त्र पढ़े हैं और अभी भी झण्डाना में ही रहते हैं। जब उनका गांव डूब में आया तो उनका घर डूब में आने वाला आख़िरी घर था। जो अब पूरी तरह टूट चुका है, पर उसके ईंट पत्थर और अवशेष अभी भी वहीं पड़े हैं। हम लोग जब नाव से उतरे तो जिस जगह नाव रुकी, वो उसी के घर के अवशेष थे।
अपने घर के टूटने और डूब में आने का दुःख उसे आज भी है और विस्थापित होने का मुआवज़ा लेकर भी वे अपनी ज़मीन छोड़कर जाने को तैयार नहीं! मुझे लगा कि कितना प्रेम होता इन लोगों को अपनी ज़मीन से।
पर विकास की क़ीमत तो सभी को चुकानी पड़ती है।
नर्मदा के किनारे होने के बावजूद पीने के पानी की भी उनकी समस्या हैं। क्योंकि, वॉटर लेवल काफ़ी नीचे है। मुझे आश्चर्य हुआ तो उन्होंने बताया कि पूरा गांव पहाड़ी पर बसा है, इसलिए बोर-वेल करना आसान नहीं होता।
मतदान में अब काफ़ी कम समय बचा है और झण्डाना और चमेली दोनों मतदान केंद्र हमने देखे और उन्हें चाक-चौबंद करने के निर्देश दिए, ताकि मतदान के समय पोलिंग पार्टी को परेशानी न हो। पंचायत में लगभग 148 पीएम आवास स्वीकृत हैं, पर ज़रूरत ज़्यादा की है और राशन की दुकान तो इस पंचायत में है ही नहीं। अब शासन ने प्रत्येक पंचायत में राशन दुकान अनिवार्य कर दी तो इस पंचायत में भी दुकान खुल जाएगी।
जब मैंने अल्बी से पूछा ‘तुम्हारे घर के एक कमरे में अस्थायी राशन दुकान खोल दें!’
… तो पहले उसे विश्वास नहीं हुआ, पर फिर उसने ख़ुशी से कहा ‘हाँ … खोल दीजिए।’
ये उनका अपने गांव और समाज से लगाव है, जो उन्हें एकजुट रखे है।
अल्बी के घर के पड़ोस में एक और घर था, जिसमें बहुत से छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे थे। जब मैंने पूछा तो उन बच्चों की माँ ने बताया कि ये सब प्राइमरी स्कूल में जाते हैं। आज रविवार होने से घर पर हैं। पंचायत में कुल 8 प्राइमरी शालायें हैं और 6 महिला स्व-सहायता समूह भी। ये कम आश्चर्य की बात नहीं थी कि उस अत्यंत पिछड़े गाँव में भी महिला एसएचजी बने हुए हैं। मैंने उन सभी बच्चों को बिस्किट दिए और शुभकामनाएं भी।
हमारे सभी आदिवासी भाई बहनों को शासन की सभी योजनाओं का लाभ हम दिला कर रहेंगे। समाज कि अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का जब उद्धार होगा तभी वास्तविक ‘अंत्योदय’ होगा। ये हमारा ध्येय भी है कर्तव्य भी और हाँ संकल्प भी।