Semi Final of General Elections: चुनावों का सेमीफ़ाइनल
एन के त्रिपाठी
पाँच राज्यों में विधानसभा के चुनावों को 2024 के आम चुनावों का सेमीफ़ाइनल माना जा रहा था। 2018 के विधानसभा के चुनावों में बीजेपी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों हिंदी राज्यों में हार गई थी। फिर भी आश्चर्यजनक रूप से 2019 के आम चुनाव में भाजपा और बढ़े बहुमत के साथ विजयी हुई। इस बार उसके लिए स्थिति और अनुकूल है।
वर्तमान चुनाव परिणाम पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जहाँ भाजपा के लिए ये चुनाव महत्वपूर्ण है, वहीं कांग्रेस के लिए तो ये अस्तित्व की लड़ाई थे। इन चुनावों के परिणामों में इंडी अलायंस के बाक़ी सभी घटकों की भी अपने हितों के कारण बहुत रुचि है। बीजेपी ने इन चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट कर दिया है कि हिंदी पट्टी में कांग्रेस उसके लिए कोई चुनौती नहीं रह गई है। इन तीन राज्यों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी को चुनौती देना पहले की तुलना में और कठिन हो गया है। कांग्रेस नेतृत्व में हताशा की भावना हो जाना स्वाभाविक है। अपने परिवार केंद्रित नेतृत्व के कारण उसमें ऊर्जा के संचार के विकल्प भी कम है। कांग्रेस ने विधानसभा के चुनावों में जातिगत जनगणना की माँग पहली बार उठा कर ओबीसी कार्ड खेलने का प्रयास किया जो विफल रहा है।बीजेपी ने सभी गरीबों के कल्याण की बात कर के ओबीसी, आदिवासी एवं अनुसूचित जातियों में अपनी पैठ और गहरी कर ली है। सवर्ण वर्ग में बीजेपी के लिए समर्थन यथावत बना हुआ है। मोदी द्वारा गरीबों की एक जाति बता कर उसके कल्याण के लिए निष्ठापूर्वक कार्य करने की गारंटी देना जनमानस में बहुत प्रभावी रहा है। छत्तीसगढ़ की अप्रत्याशित विजय को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। लोक जनकल्याणकारी कार्यक्रम का स्थान फ़्रीबीज़ की घोषणाएँ नहीं ले सकती है। कांग्रेस को अपनी आगामी रणनीति इन जातिवादी विभाजनकारी नीतियों को छोड़कर, जो कभी भी उसकी नीतियों में नहीं रही हैं, एक युवा नेतृत्व के साथ सकारात्मक एजेंडे पर बनानी होगी।
इन चुनावों में कांग्रेस को तेलंगाना में भारी समर्थन मिला है। कर्नाटक की विजय के उपरांत दस साल पूर्व बने तेलंगाना में अपनी पकड़ बना कर उसने दक्षिण भारत में अपनी शक्ति बता दी है। कांग्रेस के लिए तेलंगाना जीतना अपेक्षाकृत आसान था क्योंकि केसीआर सरकार विभिन्न कारणों से अलोकप्रिय हो गई थी। फिर भी यहाँ कांग्रेस की जीत उत्तरी राज्यों की तुलना में राष्ट्रीय राजनीति के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। निश्चित रूप से उसके लिए यह एक संतोष की बात है कि तेलंगाना में मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस का हाथ पकड़ा है और इसका असर उत्तर भारत में भी पड़ सकता है। इससे कांग्रेस के उन सहयोगी दलों के कान खड़े हो गए हैं जो मुस्लिम वोटबैंक पर निर्भर है। दक्षिण भारत बीजेपी के लिए अभी भी एक पहेली है, फिर भी कर्नाटक में बीजेपी का वोट बैंक बरकरार है तथा तेलंगाना में भी उसने मामूली बढ़त प्राप्त की है। केरल और तमिलनाडु अभी बीजेपी के लिए अभेद्य है।
उत्तर के राज्यों में कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन इंडी गठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं है। मजबूरन कांग्रेस अपना प्रसार अब उन क्षेत्रों में करना चाहेगी जहाँ उसके सहयोगी दल क्षेत्रीय शक्तियां बने हुए है। मध्य प्रदेश में सपा के साथ सीट एडजस्टमेंट न करने पर अनेक सहयोगी दल कांग्रेस से नाराज़ है। इंडी अलायंस को बीजेपी से प्रतिस्पर्धा में रहने के लिए अच्छे तालमेल और सूझ-बूझ की आवश्यकता होगी। इस एलायंस में कांग्रेस को अपनी सीमाओं को समझना होगा।
2024 लोक सभा चुनाव के लिये बीजेपी और अधिक उत्साहित है। उसके पास मोदी की अपार लोकप्रियता का संबल है। इस परिस्थिति में कांग्रेस को अपने धैर्य और विवेक का परिचय देना आवश्यक हो गया है। भारत को कांग्रेस सहित एक सशक्त विपक्ष की बहुत आवश्यकता है।