पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा रचनात्मक आयोजन “कोजागरी का चाँद”
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा भी कहते हैं.यह आश्विन मास की पूर्णिमा होती है .कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था.माना जाता हैं कि शरद पूर्णिमा के रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है इसी विश्वास के साथ इस दि खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है एवं प्रसाद के रूप में ली जाती है .इस महत्वपूर्ण पर्व पर पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा “कोजागरी का चाँद” विषय पर कविता का रचनात्मक आयोजन किया गया . रचनाकारों द्वारा लिखी गई कविताओं में से पांच कवितायें यहाँ हम पाठकों के लिए प्रकाशित कर रहें –-संयोजन रूचि बागड़देव
1.कोजागिरी पूर्णिमा
राघवेंद्र दुबे
भले ही विज्ञान की नजर में चांद बंजर हो,
पर चांद के माथे पर झूमर लगाने का मन करता है।
भले ही उनके लिए चांद का उजाला बेनूर हो,
पर हमें तो चांदनी का मंजर देखने का मन करता है।
भले ही उनको हर तरफ दिखता प्रदूषण हो,
पर हमें तो रूपहली आसमां और चांदी सी जमीन देखने का मन करता है।
2.चांद के नीचे
वन्दिता श्रीवास्तव
निकलेगा
नीम के झाड़
पीछे
परात भर
शरद पूनम का चांद
अमृत कलश
लिये हुए
सजा दो
कान्हा जी का
आसन
चांद के नीचे
धर दो
फूल के
कटोरे मे
चावल खीर
भोग के लिए
अमृत सिक्त
होने के लिए
अमृत मय
चांदनी के नीचे
हो
रहा है
कान्हा जी का
रास
वृन्दावन मे
राधा जी
गोपियो संग
फैल
रही है
बांसुरी की
अमृतमयी
धुन
सकल
ब्रम्हांड मे
शरद पूनम मे
मगन है
मन
पूनम की रोशनी
मे
सुई मे
धागा डालने
घर की
दु छत्ती मे
मेरे कस्बे
मे
शहर मे
मैं
आज
नाइट ड्यूटी
मे हूं।।
3.भीगे मन आंगन
प्रभा जैन इन्दौर
मुक्तक
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शरद पूनम अमृत वर्षा,भीगे मन आंगन,
नॉका विहार मन आतुर, सजनी संग साजन,
शांत चित्त शीतल उज्ज्वल जीवन दमके,
स्नेहपूर्ण स्निग्ध रिश्ते ,कभी न छूटे दामन।
4.छलकी उजास देखो
सुनीता फड़नीस
आज रात देखो तो
बुझाकर कृत्रिम दीप सारे
गगन में मुस्कुराने वाला
वो चांद देखो तो
रोज तो वह नभ में
अकेला ही चमकता
आज रात उसके साथ
रहकर देखो तो
अमृतमय दुग्ध में
उसका प्रतिबिंब खेलता
उत्सव पूर्णिमा का देखो तो
चांदनी के आंचल से
छलकी उजास देखो तो
पर्वत के पीछे शर्मिला चांद
आलिंगन में भरने निकली
सागर की लहरें देखो तो
5.श्रीकृष्ण का महारास आज
नीति अग्निहोत्री
शरद पूर्णिमा अमृत महोत्सव मनाने का दिन
अमृत बरसता चंद्रमा की शीतल किरणों से
धरती ,प्राणी डूबते चांदनी के जादू में
जीवन में प्रसन्नता और शांति पाते हैं।
ये ऋतु भी कुछ बौराई सी लगती
मन में उल्लास का समुद्र ठाठें मारता
चंद्रमा धरती के बहुत करीब हो जाता
वर्ष में एक बार यह होता है।
भक्त कोजागिरी या कौमुदी का व्रत करते
भक्त लक्ष्मी जी को पूजा -पाठ से मनाते
जिनका इस दिन धरती पर आगमन होता
सबको मनचाहा वरदान भी मिल जाता है।
यह रात्रि औषधियों में अमृत भर देती
खीर को किरणों से अमृतमय कर देतीं
सुई में धागा चांदनी में पिरोया जाता
जिससे नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है।
श्रीकृष्ण ने महारास किया था गोपियों संग
चंद्रमा पूरी सोलह कलाओं के साथ था
गोपियों को अपनी तपस्या का फल मिला
आत्मा का परमात्मा से मिलन हुआ है ।
संस्मरण ;यादों की गली में हैं कुछ यादें शरद पूर्णिमा की —-
आज का विचार :सुबह का सबसे बड़ा काम क्या है ?साथ ही आज विश्व साहित्य की एक कहानी सुनते हैं –