कलयुग के श्याम – खाटूश्यामजी, जहां 20 मार्च से शुरू हो रहा लक्खी मेला 

महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान कृष्ण को अपना सिर काट कर अर्पित करने वाले भीम के पौते घटोत्कच के पुत्र महान धनुर्धर बर्बरीक को कलयुग के श्याम नाम से पूजे जाने का मिला था वरदान

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कलयुग के श्याम – खाटूश्यामजी, जहां 20 मार्च से शुरू हो रहा लक्खी मेला 

नीति गोपेन्द्र भट्ट की रिपोर्ट

देश दुनिया के लाखों लोगों की अथाह श्रद्धा का केन्द्र स्थल राजस्थान के बाबा खाटूश्याम जी का वार्षिक लक्खी मेला-2024 इन दिनों अपने चरम परवान पर है। खाटू श्यामजी का मुख्य मेला इस वर्ष 20 मार्च बुधवार को एकादशी पर आयोजित होगा। खाटू श्यामजी मंदिर में प्रतिवर्ष फाल्गुन माह शुक्ल षष्ठी से बारस तक वार्षिक मेला लगता है। महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान कृष्ण को अपना सिर काट कर अर्पित करने वाले भीम के पौते घटोत्कच के पुत्र महान धनुर्धर बर्बरीक को कलयुग के श्याम नाम से पूजे जाने का वरदान मिला था ।

 

हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा जयकारों से खाटू नगरी इन दिनों गूंज रही है। अब तक लाखों श्रद्धालु बाबा श्याम के दर्शन कर चुके है।

 

खाटू श्याम जी मंदिर मंडल के चेयरमेन प्रताप सिंह चौहान बताते है कि एकादशी नजदीक आने के साथ ही खाटू में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है। देशभर से जत्थों में बाबा के जयकारे लगाते श्रद्धालु पहुंच रहे है। इस सतरंगी फाल्गुनी मेले में श्रद्धालु बाबा का दीदार कर मंत्र मुग्ध हो रहे है। रींगस से खाटू श्याम धाम तक श्रद्धालुओं की अपार भीड़ देखी जा रही है। श्रद्धालु हाथों में निशान और केसरिया झंडा लेकर बाबा श्याम के जयकारों के साथ खाटू धाम पहुंच रहे है।

 

वार्षिक लक्खी मेले पर श्रद्धालुओं का रींगस से लेकर खाटू धाम तक लगातार कारवां जारी है। बाबा श्याम का गुलाबी और अन्य रंगों के फूलों से मनमोहक श्रृंगार किया जा रहा है। मंदिर के नए कलेवर और व्यवस्था के अनुरूप कतारबद्ध होकर श्रद्धालु बाबा श्याम का दीदार कर रहे है। खाटू नगरी की हर एक गली श्रद्धालुओं से लबालब नजर आ रही है। रींगस से खाटू में बाबा के दरबार तक लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई है ।भक्तों से खचाखच खाटू श्याम जी धाम ‘हारे के सहारे’ के जयकारों से गूंजायमान हो रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों से मंगवाए जा रहे विशेष रंगों के फूलों से श्यामधणी का विशेष श्रृंगार किया जा रहा है। मेले में भारी भीड़ के चलते मंदिर मंडल ने बाबा के दर्शनों के लिए 24 घंटे मंदिर के पट खुले रखे जा रहे हैं।

 

खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिला मुख्यालय से सिर्फ 43 किमी दूर खाटू गांव में एक हिंदू मंदिर है। खाटू का श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है। यह महाभारत काल में भगवान कृष्ण और भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक से जुड़ा एक तीर्थ स्थल है। भक्तों का मानना है कि मंदिर में बर्बरीक का असली सिर है, जो एक महान योद्धा थे, जिन्होंने महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण के कहने पर अपना सिर काटकर उन्हें गुरु दक्षिणा के रूप में अर्पित कर दिया था और बाद में भगवान कृष्ण ने उन्हें समस्त सृष्टि में श्याम नाम से पूजित होने का आशीर्वाद दिया था। श्याम बाबा की महिमा का बखान करने वाले भक्त राजस्थान या भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने में मौजूद हैं। खाटू श्यामजी भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार हैं।

 

खाटू श्यामजी की कहानी बहुत ही लोभदर्शक है। महाभारत काल में पाण्डवों के महाबली भीम के पौते और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक को ही आज बाबा खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता हैं। घटोत्कच का जन्म महाबली भीम की पत्नी हिडिम्बा से हुआ था।बर्बरीक अपने पिता घटोत्कच से भी ज्यादा शक्तिशाली और मायावी थे। वे विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे ।बर्बरीक देवी के उपासक थे। देवी के वरदान से उसे तीन दिव्य बाण मिले थे जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस उनके पास आ जाते थे। इसकी वजय से बर्बरिक अजेय थे। बर्बरीक को किसी भी विशाल सेना का संहार करने के लिए तीन बाण ही काफी थे, जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को भी समाप्त कर सकते थे। महाभारत युद्ध के मैदान में भीम के पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और उन्होंने यह घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूंगा जो हार रहा होगा। बर्बरीक की इस घोषणा से भगवान कृष्ण चिंतित हो गए।

 

जब अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्ण बर्बरीक की वीरता का चमत्कार देखने के लिए उपस्थित हुए तब बर्बरीक ने अपनी वीरता का छोटा-सा नमूना दिखाया। कृष्ण ने कहा कि यह जो वृक्ष है ‍इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं मान जाऊंगा कि तुम महान धनुर्धर हों। बर्बरीक ने कृष्ण की आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया। जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा। कृष्ण ने उस पत्ते को अपना पैर रखकर छुपा लिया। पेड़ के सभी पत्तों को छेदता हुआ वह तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया, तब बर्बरीक ने कहा कि प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए, क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दे रखी है आपके पैर को छेदने की नहीं।

उसके इस चमत्कार को देखकर भगवान कृष्ण भी चकित हो गए। श्रीकृष्ण यह बात जानते थे कि बर्बरीक अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार महाभारत में हारने वाली सेना का साथ देगा और उसे यदि कौरव हारते हुए नजर आए तो फिर पांडवों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा और यदि जब पांडव बर्बरीक के सामने हारते नजर आए तो फिर वह पांडवों का साथ देगा। इस तरह वह दोनों ओर की सेना को एक ही तीर से खत्म कर देगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे लेकिन बर्बरीक अपने वचन के पक्के थे और इस तरह वे कृष्ण के जाल में फंस गए और भगवान कृष्ण ने उससे उसका शीश मांग लिया। कहते हैं कि जब बर्बरिक से श्रीकृष्ण ने शीश मांगा तो उन्होंने रातभर भजन किया और फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान करके पूजा की और अपने हाथ से अपना शीश काटकर श्रीकृष्ण को दान कर दिया।

 

बर्बरीक द्वारा भगवान कृष्ण के मंतव्य को समझते हुए अपने पितामह पांडवों की महाभारत युद्ध में विजय के लिए स्वेच्छा से किया गया शीशदान के पश्चात बर्बरीक के इस महान बलिदान को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दे दिया। साथ ही पूरे महाभारत युद्ध का सजीव दृश्य देखने का वरदान भी दिया। शीश दान से पहले बर्बरिक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्‍छा जताई थी तब श्रीकृष्‍ण ने उनके शीश को एक ऊंचे स्थान पर स्थापित करके उन्हें युद्ध अवलोकन की दृष्टि प्रदान की।

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युद्ध समाप्ति के बाद जब पांडव विजयश्री का श्रेय देने के लिए वाद विवाद कर रहे थे तब श्रीकृष्ण कहा कि इसका निर्णय तो बर्बरिक का शीश ही कर सकता है। तब बर्बरिक ने कहा कि युद्ध में दोनों ओर श्रीकृष्ण का ही सुदर्शन चल रहा था और द्रौपदी महाकाली बन रक्तपान कर रही थी।

अंत में श्रीकृष्ण ने वरदान दिया की कलियुग में मेरे नाम से तुम्हें पूजा जाएगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा।

 

बताया जाता है कि स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट हुए थे और श्रीकृष्ण शालिग्राम के रूप में मंदिर में दर्शन देते हैं।

 

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आज बर्बरीक को सारे विश्व में खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है और जहां कृष्ण ने उनका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है।

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खाटू श्याम जी से जुड़े कई अनजाने रहस्य आज भी श्रद्धालुओं को अपने शरण में आकर्षित करते है। कहा जाता है कि खाटू श्याम अर्थात मां सैव्यम पराजित:अर्थात जो हारे हुए और निराश लोगों को संबल प्रदान करता है। खाटू श्याम बाबा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हैं उनसे बड़े सिर्फ श्रीराम ही माने गए हैं। खाटूश्याम जी का जन्मोत्सव हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

खाटू का श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है, लेकिन वर्तमान मं‍दिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के मुताबिक सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था तथा मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।