Silver Screen:एक कहानी, जिस पर फ़िल्में बनी बार-बार     

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Silver Screen:एक कहानी, जिस पर फ़िल्में बनी बार-बार 

फिल्मों की कहानियां दर्शकों की रूचि और उन्हें प्रभावित करने की क्षमता पर गढ़ी जाती है। सभी दर्शकों की पसंद एक जैसी नहीं होती। इसलिए फिल्मकारों की यह भी कोशिश होती है, कि एक ही कहानी में वो सारे मसाले परोस दिए जाएं, जो हर तरह के दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनें। सौ साल से ज्यादा पुरानी फिल्म इंडस्ट्री में वैसे तो हजारों कहानियों पर फ़िल्में बनी, पर कुछ कहानियां दर्शकों को इतनी पसंद आई कि फिल्म बनाने वालों ने उन्हीं को आधार बनाकर कई नई कहानियां गढ़ी। कुछ कहानियों का प्लॉट तो इतना दिलचस्प है, कि उस पर अलग-अलग भाषाओं में 3-4 बार फ़िल्में बनी और हर बार पसंद की गई। अभी भी इन्हीं कहानियों में थोड़ा फेर-बदल करके फिर से फ़िल्म बनाने की तैयारी हो रही है। दरअसल, रीमेक का प्रयोग इसी वजह से शुरू हुआ कि दर्शकों को फिर से वही दिखाया जाए, जो वे नए कलेवर फिर देखना चाहते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि फिल्मों के रीमेक की प्रथा नई कही जाती है, लेकिन यह ट्रेंड नया नहीं है। हिंदी सिनेमा का इतिहास टटोला जाए, तो कहानियों के साथ प्रयोग का ये काम तो बरसों से होता रहा। इसका कारण यह है कि यदि फिल्म की कहानी अच्छी हो, तो भला कौन दर्शक उसे फिर देखना नहीं चाहेगा! ऐसी कई फिल्मों के नाम याद किए जा सकते हैं, जिनकी कहानी दर्शकों को इतनी पसंद आई कि फिल्मकारों ने इसके रीमेक से बॉक्स ऑफिस से जमकर माल कमाया। कुछ कहानियां तो इतनी दिलचस्प हैं कि उन पर 4-5 बार फ़िल्में बनी।

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शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास ‘देवदास’ पर अलग-अलग भाषाओं में कई बार फ़िल्में बनी। हिंदी में ही दिलीप कुमार और शाहरुख खान ने इस कहानी पर बनी फिल्मों में काम किया। कहानी को फिल्माने की बात यहीं नहीं रूकती। विलियम शेक्सपियर के नाटकों में से एक ‘रोमियो और जूलियट’ पर भी अब तक 5 फ़िल्में बनी। इन फिल्मों पर नज़र दौड़ाई जाए तो सबसे पहले आई थी 1981 में कमल हासन और रति अग्निहोत्री की ‘एक दूजे के लिए।’ इस दुखांत फिल्म को नेशनल अवार्ड मिला था। दूसरा नाम है आमिर खान की ‘क़यामत से क़यामत तक’ का जो 1988 में आई और इसे भी दर्शकों ने खूब पसंद किया था। इसी थीम पर ‘इश्कजादे’ बनी जिसमें अर्जुन कपूर और परिणिति चोपड़ा थे। साथ ही ‘इश्क’ और संजय लीला भंसाली की ‘गोलियों की रासलीला : राम लीला’ भी रोमियो और जूलियट पर ही बनाई गई थी।

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1972 में आई फिल्म ‘सीता और गीता’ में हेमा मालिनी, संजीव कुमार और धर्मेंद्र मुख्य भूमिकाओं में थे। इसमें हेमा मालिनी ने डबल रोल किया था। इस फिल्म को हेमा मालिनी के करियर की ब्लॉकबस्टर फिल्मों में गिना जाता है। इसमें एक सीता बिल्कुल सीधी सादी है, तो दूसरी गीता चतुर और चालाक। वो दुनिया को अपने हिसाब से जीती है। फिल्म में हेमा के दोनों ही जुदा से अंदाज ऑडियंस को भा गए और फिल्म पर पैसों की बारिश हुई। इस फिल्म को देखकर साउथ वालों की आंखें खुली की खुली की रह गई थी। तभी इस फिल्म को एक नहीं बल्कि दो-दो बार बनाया गया वो भी अलग अलग भाषाओं में। ‘सीता और गीता’ की रिलीज के अगले ही साल 1973 ‘गंगा मंगा’ तेलुगू में बनी तो 1974 में ‘वानी रानी’ तमिल में बनी। दोनों ही फिल्मों में एक्टर वनिसरी लीड रोल में रहीं। इन दोनों ही फिल्मों ने साउथ में भी झंडा गाड़ दिया। इस कहानी को नए अंदाज में दिखाने के लिए पंकज पाराशर ने 1989 में श्रीदेवी, रजनीकांत और सनी देओल की ‘चालबाज’ बनाई। ये भी सीता और गीता से ही इंस्पायर्ड थी। अब फिर इसी कहानी पर मेकर्स की नजर है। ‘चालबाज’ के सीक्वल का ऐलान हो गया जिसमें श्रद्धा कपूर लीड रोल निभाने वाली है।

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अनिल कपूर की फिल्म ‘जमाई राजा’ 1990 में आई थी। इसमें अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित की जोड़ी ने दर्शकों के दिल में जगह बनाई थी। इस फिल्म ने अनिल कपूर के करियर में चार चांद लगाए। इस फिल्म की कहानी पर अभी तक तीन भाषाओं में 4 फिल्में बन चुकी हैं। पांचवीं फिल्म तैयारी शुरू हो गई। तीन भाषा में बनी एक फिल्म में तो रजनीकांत ने काम किया था। दूसरी फिल्म में रजनीकांत के दामाद धनुष ने का लीड रोल किया। 1990 में आई फिल्म ‘जमाई राजा’ भी तमिल फिल्म ‘अट्टाकु यमुदु अम्मायिकी मोगुडु’ का हिंदी रीमेक थी। इसमें रजनीकांत नजर आए थे। 2011 में इस कहानी पर आई फिल्म का नाम ‘मापिलाई’ था, जिसमें मुख्य किरदार धनुष ने निभाया था। अब पांचवी बार इसी कहानी फिल्म बनाने की घोषणा की गई। आजादी के आंदोलन के अमर शहीद भगत सिंह के शौर्य की कहानी पर भी आधा दर्जन फ़िल्में बन चुकी हैं। पहली बार 1954 में ‘शहीद-ए-आज़म भगत’ आई थी। इसके बाद 1963 में शम्मी कपूर की भूमिका वाली ‘भगत सिंह’ आई थी। 1965 में मनोज कुमार की फिल्म ‘शहीद’ आई थी। इन तीन फिल्मों के बाद लंबे समय तक इस विषय को भुला दिया गया। लेकिन, 2002 में एक के बाद तीन फ़िल्में भगत सिंह पर बनीं। इन फिल्मों में भगत सिंह की भूमिका सोनू सूद, बॉबी देओल और अजय देवगन ने निभाई थी।

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एक ही कहानी पर दो बार तो कई फ़िल्में बनी। लेकिन, इनमें ऐसी कई फ़िल्में बनी जिसके पहले हिस्से को तो दर्शकों ने पसंद किया, पर जब दोबारा इसी कहानी को फिल्माया गया तो दर्शकों ने उन्हें नकार दिया। कुछ ठीक-ठाक चली, तो कुछ फ्लॉप हुई। 1997 में सलमान खान की ‘जुड़वां’ आई थी, जिसने धमाल मचाया। इसी नाम की दूसरी फिल्म 2017 में आई, जिसमें वरुण धवन थे। लेकिन, इसे दर्शकों ने नकार दिया। 1990 में गोविंदा और करिश्मा कपूर की कॉमेडी फिल्म ‘कुली नंबर-वन’ आई थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई थी। लेकिन, 2020 में जब वरुण धवन की इसी नाम की फिल्म आई, तो वो दर्शकों के गले नहीं उतरी। अमिताभ बच्चन को यंग एंग्रीमैन का ख़िताब दिलाने वाली 1973 में रिलीज हुई फिल्म ‘जंजीर’ सुपर हिट की गिनती में है। इस फिल्म ने अमिताभ के करियर को नई दिशा दी थी। इस फिल्म का 2013 में रीमेक बनाया गया, जिसमें साउथ के रामचरण ने नायक की भूमिका निभाई थी। किंतु, ये फिल्म अपने पहले हिस्से की तरह दर्शकों की पसंद पर खरी नहीं उतरी और बुरी तरह ध्वस्त हो गई।

अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ और शरीफ अली हाशमी के अभिनय वाली फिल्म ‘फुलू’ ये दोनों तमिलनाडु के अरुणाचलम मुरुगनाथम की सच्ची कहानी पर बनी। इस फिल्म की कहानी का केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए सस्ते सैनिटरी नैपकिन बनाने पर थी। ‘पैडमैन’ को दर्शकों ने बहुत पसंद किया था। इसी तरह 1897 में ब्रिटिश भारतीय सेना और पश्तून कस्बे के सिख सैनिकों के बीच हुई सारागढ़ी की लड़ाई को सबसे पुरानी लड़ाइयों में माना जाता है। इस लड़ाई में 21 सिखों के दल ने दस हजार पश्तों के खिलाफ बहादुरी से लड़कर उन्हें हराया था। इसी कहानी पर अक्षय कुमार की फिल्म ‘केसरी’ भी आई और अजय देवगन की ‘सन ऑफ सरदार’ में भी इस लड़ाई का जिक्र था। इसके अलावा ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर भी ’21 सारागढ़ी’ नाम से बड़ी वेब सिरीज आी, जो बेहद सफल रही थी।

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1990 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘अग्निपथ’ में मिथुन चक्रवर्ती, माधवी और डैनी जैसे कलाकार थे। लेकिन, तब ये फिल्म अपनी अपेक्षा के अनुरूप नहीं चली थी। 22 साल बाद इसे फिर इसी नाम से बनाया गया। फर्क इतना था कि पहली इसे यश जौहर ने बनाया था और दूसरी बार उनके बेटे करण जौहर ने। दूसरी बार बनी फिल्म में रितिक रोशन, प्रियंका चोपड़ा, संजय दत्त और ऋषि कपूर ने काम किया था। इसमें संजय दत्त और ऋषि कपूर निगेटिव किरदार में थे। पहली बार फिल्म के ज्यादा न चलने की कमी दूसरी बार पूरी हो गई थी। अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद की जिंदगी पर 2010 में बनी फिल्म ‘वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई’ में अजय देवगन और इमरान हाशमी थे। 2013 में इस फिल्म का सीक्वल आया जिसमें इमरान खान और अक्षय कुमार थे। लेकिन, दोनों ही फ़िल्में दर्शकों को मोह नहीं सकी। दिल्ली का आरुषि मर्डर केस को तो लोग भूले नहीं होंगे। आरुषि तलवार की मौत एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, जिसमें इकलौती बेटी की हत्या का आरोप मां-बाप पर ही लगा। आरुषि की मौत की परिस्थितियां आज भी संदिग्ध हैं। आरुषि के माता-पिता अब भी हत्या के आरोपी हैं। इस घटना पर दो फिल्में बनी। पहली मेघना गुलजार की फिल्म ‘तलवार’ थी और दूसरी मनीष गुप्ता की ‘रहस्य।’

गंजेपन की समस्या वाली कहानी पर भी तीन फ़िल्में बनी ओंदु मोत्तेया कथे, बाला और ‘उजड़ा चमन।’ इनमें ‘बाला’ को पसंद किया गया। मानसिक रूप से विचलित डॉक्टर की लव स्टोरी की कहानी पर तीन फ़िल्में बनी। ये थीं ध्रुव विक्रम की आदित्य शर्मा, विजय देवरकोंडा की अर्जुन रेड्डी और और शाहिद कपूर की फिल्म ‘कबीर सिंह।’ लेकिन, शाहिद की फिल्म मात खा गई। ऐसे ही पोकिरी, पोक्कीरी और ‘वांटेड’ की कहानी भी एक जैसी है। महेश बाबू ने ‘पोकिरी’ में काम किया, विजय ‘पोक्किरी’ के नायक थे और सलमान खान ने ‘वांटेड’ में काम किया था। इनमें सबसे ज्यादा सलमान वाली फिल्म को पसंद किया गया। फिल्मकार सिर्फ देसी कहानियों को ही नहीं दोहराते विदेशी फिल्म की कहानियों के प्रति भी उनकी दीवानगी वैसी ही होती है। फ्रेंच फिल्म लार्गो विंच, दक्षिण के सितारे पवन कल्याण की ‘अग्न्याथवाशी’ और प्रभास की फिल्म ‘साहो’ की कहानियां भी एक जैसी है। लार्गो विच के निर्देशक ने तो इन दोनों फिल्मों पर चोरी के भी आरोप लगाए। क्योंकि, कमाई में ‘साहो’ ने 433 करोड़ कमाए थे। जबकि, ‘लार्गो विंच 214 करोड़ ही कमा सकी और ‘अग्न्याथवाशी’ की कमाई तो 94 करोड़ पर ही अटकी रह गई।