Silver Screen : नाम में ही तो सब कुछ रखा!

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Silver Screen : नाम में ही तो सब कुछ रखा!

Silver Screen : नाम में ही तो सब कुछ रखा!

इन दिनों देश में नाम बदलने का दौर चल रहा है। शहरों, रेल्वे स्टेशनों और चौराहों नाम बदले जा रहे हैं। इसके पीछे अपने-अपने तर्क है कि नाम क्यों बदले गए। लेकिन, ये सारे उपक्रम शेक्सपीयर की उस उक्ति को झुठलाने के लिए पर्याप्त है, जिसमें उन्होंने कहा था कि नाम में क्या रखा है!

जबकि, यह नहीं भूलना चाहिए यह कलयुग है, जिसके बारे में संत तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा है ‘कलयुग केवल नाम अधारा!’ नाम की महिमा समाज में ही नहीं फिल्मों में भी दिखाई देती है। किसी भी फिल्म के आरंभ में हमें जो सेंसर सर्टिफिकेट दिखाई देता है, उसमें फिल्म का नाम सबसे ऊपर होता है। लेकिन, यह सिलसिला केवल फिल्म के शीर्षक तक ही सीमित नहीं होता, फिल्मों में नाम की महिमा इससे भी आगे चलती रहती है।

हिन्दी सिनेमा के शैशवकाल में जितने भी अभिनेता या अभिनेत्री ने फिल्मों में अभिनय किया, सभी को अपने वास्तविक नाम का मोह छोड़कर फिल्मी नाम अपनाना पड़ा! इसमें अशोक कुमार से लेकर दिलीप कुमार और मीना कुमारी से लेकर मधुबाला तक शामिल हैं। राज कपूर और देव आनंद जरूर ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपने असली नाम में थोड़ी बहुत हेराफेरी कर अपना फिल्मी नाम पर्दे पर उतारा।

इस दौर में प्राण अकेले ऐसे कलाकार थे, जिनका असली नाम भी वही था, जो परदे पर आया। जो परदे पर इतना बदनाम हो चुका था कि उस दौर में लोग अपने बच्चों का नाम प्राण रखने से हिचकिचाने लगे थे। 70 से 80 के दशक में आए फिल्मी कलाकार भी छद्म नाम से फिल्मों में काम करते रहे। इनमें जतीन खन्ना राजेश खन्ना कहलाए तो रवि कपूर को जितेंद्र नाम से पहचान मिली। मिथुन चक्रवर्ती, अक्षय कुमार, अजय देवगन, सनी देओल भी फिल्मी नाम के साथ ही परदे पर उतरे। हरी जरीवाला की पहचान संजीव कुमार के रूप में ही तो हरी गोस्वामी की लोकप्रियता मनोज कुमार के रूप में।

अमेरिकी फिल्मों की गोल्डन एज (1930-60) में अधिकतर स्टार्स ने हिट होने के लिए अपने असली नाम बदल लिए थे। मर्लिन मुनरो ने अपना पुराना नाम नोर्मा जीन मोर्टेंसन छोड़ दिया था। हिंदी फिल्मों में ये रिवाज कुछ ज्यादा ही चला। अक्षय कुमार का वास्तविक नाम राजीव भाटिया है। राज कपूर की खोज मंदाकिनी का नाम पहले यास्मीन जोसेफ था। जबकि, फिल्मों में आने से पहले मीना कुमारी का नाम महजबीन बानो था।

नरगिस को पहले फातिमा रशीद कहा जाता था। राजकुमार राव पहले राजकुमार यादव हुआ करते थे। सलमान ख़ान को फिल्मों में आने से पहले अब्दुल रशीद सलीम सलमान ख़ान पुकारते थे। कमल हासन का मूल नाम उनके परिवार ने पार्थसारथी रखा था। परदे के जैकी श्रॉफ असल में जयकिशन काकूभाई थे। रितु चौधरी को महिमा चौधरी नाम डायरेक्टर सुभाष घई ने दिया। आज के लोकप्रिय अभिनेता रणवीर सिंह का असल नाम रणवीर भवनानी है।

कॉमेडी के लिए पहचाने जाने वाले जॉनी लीवर का असल नाम जॉन राव प्रकाश राव जानुमला है। रेखा को पहले भानुरेखा गणेशन कहा जाता था। जबकि, नरगिस का जन्म का नाम फातिमा राशिद था। ऋतिक रोशन में रोशन उनका सरनेम नहीं, बल्कि नागरथ है। मिथुन चक्रवर्ती का वास्तविक नाम गौरांग चक्रवर्ती था।

Silver Screen : नाम में ही तो सब कुछ रखा!

फिल्मी कलाकारों के साथ ही उनके फिल्मी नामों का भी अपना जादू छाया रहा। ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के बाद राहुल और सिमरन जैसे नाम इतने लोकप्रिय हुए कि दूध मुहें बच्चों के नाम भी राहुल और सिमरन रखने का सिलसिला चल पड़ा। फिल्मी कलाकारों के लिए परदे के नाम इतने चर्चित हुए, कि फिल्म दर फिल्म उनके यही नाम चलते रहे। सलीम जावेद की फिल्म में अमिताभ का नाम विजय इतना चर्चित हुआ कि हर दूसरी फिल्म में अमिताभ इसी नाम के साथ फिल्मों में दिखाई दिए।

उनके सह कलाकारों के नाम रवि और शीतल भी कई फिल्मों में दर्शकों ने देखे। पुराने फिल्मकारों में प्रमोद चक्रवर्ती का किस्सा तो और भी दिलचस्प है। उनकी हर फिल्म में नायक, नायिका, खलनायक और हास्य कलाकारों के नाम एक ही रहे। जिद्दी, जुगनू, वारंट से लेकर ‘लव इन टोक्यो’ में प्रमोद चक्रवर्ती ने नायक का नाम अशोक, नायिका का नाम आशा, विलेन का नाम प्राण, हास्य कलाकार का नाम महेश और उसकी प्रेमिका का नाम शोभा रखकर अपनी परम्परा को जीवित रखा।

फिल्मी कलाकारों और उनके फिल्मी नाम के साथ ही कुछ कलाकार ऐसे हैं जिनकी फिल्मों के शीर्षक भी उनकी शख्सियत का परिचायक रहे है। मसलन यदि नायक शम्मी कपूर है, तो उनकी फिल्मों के नाम जंगली, जानवर, बदतमीज से लेकर राजकुमार, प्रिंस, लाट साहब और ‘छोटे सरकार’ जैसे रखे गए। देव आनंद की फिल्मों के नाम अपराधियों की तर्ज पर बाजी, सीआईडी, टैक्सी ड्राइवर, फंटूश, बनारसी बाबू, बंबई का बाबू जैसे तय थे।

गोविंदा जैसे कलाकारों ने एक-नंबर को अपनाकर कुली नंबर-वन, हीरो नंबर-वन, आंटी नंबर-वन जैसी फिल्में दी तो अक्षय कुमार के लिए खिलाड़ी शीर्षक की फिल्मों में काम करके खिलाड़ी कुमार बन गए। ऐसी ही पदवी मनोज कुमार को ‘भारत’ नाम रखकर भारत कुमार बनने में काम आई थी। हास्य अभिनेता आईएस जौहर और महमूद ने ‘जौहर महमूद इन गोवा’ बनाई, जो बहुत सफल हुई।

इसके बाद उन्होंने थोड़े से फेरबदल के साथ जौहर महमूद इन हांगकांग, जौहर इन बाम्बे जैसी कई फिल्में बनाई। आजकल जब फिल्मकारों के सामने नाम का टोटा पड़ने लगा, तो उन्होंने अपनी पुरानी फिल्मों के आगे गिनती जोड़कर अगली फिल्मों के नाम बना दिए। डॉन के बाद डॉन 2, गोलमाल तो गोलमाल 4 तक बन गई और गोलमाल 5 की तैयारी चल रही है।

सिनेमा में नाम की महिमा इतनी लोकप्रिय हुई कि कुछ फिल्मों के टाइटल में ही नाम समा गया। राज कपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ बनाई और फिल्मों के वितरक गुलशन राय को निर्माता बनने की चुनौती दी। उन्होंने राज कपूर की फिल्म की तर्ज पर सुपर हिट फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम बनाई।’

यह शीर्षक इतना लोकप्रिय हुआ कि इसकी नकल करके गीता मेरा नाम, रीटा मेरा नाम और ‘तेरे नाम’ जैसी फिल्में बनी। सलीम खान ने भी नाम की महिमा से प्रभावित होकर संजय दत्त और कुमार गौरव के लिए ‘नाम’ शीर्षक से फिल्म लिखी। इसकी खासियत थी, कि आनंद बक्षी ने ‘नाम’ फिल्म के जितने भी गीत लिखे, उनमें नाम शब्द किसी न किसी पंक्ति में जरूर आता था।

फिल्मों का नाम बदलना भी एक अजीब सा शगल है। कभी लोकप्रियता पाने के लिए, कभी कहानी से मेल न खाने कारण तो कभी विवादों की वजह से फिल्मों के नाम बदले गए। फिल्म ‘पद्मावत’ का नाम पहले पद्मावती था, लेकिन विवाद के बाद निर्देशक संजय लीला भंसाली ने इसका नाम बदलकर ‘पद्मावत’ किया।

फिल्म ‘मेंटल है क्या’ नाम पर भारतीय मानसिक रोग संस्था ने आपत्ति उठाई थी। इसके बाद फिल्म का नाम बदलकर ‘जजमेंटल है क्या’ किया गया। सलमान खान के जीजा आयुष शर्मा की पहली फिल्म ‘लवरात्रि’ का नाम भी आपत्ति के बाद बदलकर ‘लवयात्री’ किया गया था। दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की फिल्म ‘रामलीला’ के नाम को लेकर बहुत से लोगों ने विरोध जताया था।

Silver Screen : नाम में ही तो सब कुछ रखा!

इसके बाद फिल्म का नाम बदलकर ‘गोलियों की रासलीला-रामलीला’ किया गया। सनल कुमार ससिधरन की मलयालम फिल्म ‘एस दुर्गा’ का नाम पहले ‘सेक्सी दुर्गा’ था। इस फिल्म के नाम पर आम लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगा। इसके बाद सेंसर बोर्ड ने इसका नाम ‘सेक्सी दुर्गा’ से बदलकर ‘एस दुर्गा’ कर दिया था। अक्षय कुमार की फिल्म ‘लक्ष्मी बम’ को भी ‘लक्ष्मी’ नाम से प्रदर्शित किया गया।

रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की ये फिल्म पहले ‘विंडो सीट’ के नाम से रिलीज होने वाली थी लेकिन फिल्म के डायरेक्टर इम्तियाज अली ने अंत में नाम बदल कर ‘तमाशा’ रख दिया था। शाहिद कपूर और सोनाक्षी सिन्हा की एक्शन थ्रिलर फिल्म नाम पहले ‘रेम्बो राजकुमार’ था। लेकिन, रेम्बो नाम से हॉलीवुड में सीरीज बन चुकी थी, तो निर्माताओं की आपत्ति के बाद फिल्म का नाम ‘आर राजकुमार’ किया गया।

Silver Screen : नाम में ही तो सब कुछ रखा!

इम्तियाज अली की फिल्म ‘लव आज कल’ पहले ‘इलास्टिक’ नाम से रिलीज होने वाली थी। कंगना रनौत और इमरान खान की फिल्म ‘कट्टी बट्टी’ को निखिल आडवाणी पहले ‘साली कुतिया’ नाम से रिलीज करने वाले थे। भट्ट कैंप की फिल्म ‘हमारी अधूरी कहानी’ का नाम पहले ‘तुम ही हो’ था। यश चोपड़ा साहब की फिल्म ‘वीर जारा’ पहले ‘ये कहाँ आ गए हम’ नाम से रिलीज होने वाली थी।

अली जफर और यामी गौतम की फिल्म पहले ‘अमन की आशा’ के नाम से रिलीज होने वाली थी। लेकिन, बाद में इसका नाम ‘टोटल सियापा’ कर दिया गया। ‘जब वी मेट’ करीना कपूर की बेहतरीन फिल्मों में से एक गिनी जाती है। पहले ये फिल्म ‘पंजाब एक्सप्रेस’ के नाम से रिलीज होने वाली थी। यानी ये नहीं कहा जा सकता कि ‘नाम में क्या रखा है!’ दरअसल जो कुछ है सब नाम में ही तो है!

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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