Silver Screen: फिल्मी दीवाली, कहीं अंधेरी तो कहीं उजयाली!

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Silver Screen: फिल्मी दीवाली, कहीं अंधेरी तो कहीं उजयाली!

हमारे देश में दिवाली अकेला ऐसा त्योहार है, जिसे अंतरिक्ष से भी जगमगाते देखा जा सकता है। न केवल हिन्दू धर्मावलम्बियों बल्कि सभी धर्मों को मानने वालों के लिए भी दिवाली का त्योहार किसी न किसी रूप से खुशियां लेकर आता है। हिंदी सिनेमा के पर्दे पर भी दिवाली के पर्व का उजास अनछुआ नहीं रहा। कुछ फिल्मों के गीतों व दृश्यों में दिवाली अहम रही है। कथानक के मुताबिक कहीं दिवाली की पृष्ठभूमि पर गीत फिल्माए गए, तो कहीं दृश्यों को दिवाली से जोड़कर फिल्माया गया। इससे दिवाली का उजास, खुशियां और भव्यता स्पष्ट रूप से नजर आई। हिन्दी सिनेमा में जिन हिंदू त्योहारों को सबसे ज्यादा फिल्माया गया उनमें होली, राखी और करवा चौथ के अलावा दिवाली ही सबसे ज्यादा है। मूक फिल्मों के ज़माने से त्योहारों पर केंद्रित फ़िल्में बनती रही हैं। लेकिन, धीरे-धीरे इन त्योहारों को फिल्माने का चलन कम हो गया। फिल्मों का स्वरूप बदलने से अब दिवाली के प्रसंगों को पहले की तरह शामिल नहीं किया जाता। फिर भी साल दो साल में कोई फिल्म आ ही जाती है, जिसमें दिवाली के दृश्य या गीत दिखाई या सुनाई पड़ जाते हैं।

Silver Screen: फिल्मी दीवाली, कहीं अंधेरी तो कहीं उजयाली!

गुजरे जमाने की कई फिल्में दिवाली के त्योहार आसपास घूमती रही। जयंत देसाई निर्देशित 1940 में आई फिल्म ‘दिवाली’ इसी परम्परा की फिल्म थी। इसके बाद 1955 में गजानन जागीरदार की ‘घर घर में दिवाली’ आई। इसके सालभर बाद 1956 में दीपक आशा की ‘दिवाली की रात’ में भी दिवाली को विषयवस्तु बनाया गया। इसके बाद फिल्मों में गाहे-बगाहे दिवाली के प्रसंगों को जोड़ा जरूर गया, लेकिन दिवाली कथानक का मुख्य विषय नहीं बन सका। 2001 में अमिताभ बच्चन की फिल्म निर्माण कंपनी ‘एबीसीएल’ ने आमिर खान और रानी मुखर्जी के साथ ‘हैप्पी दिवाली’ बनाने की घोषणा की, लेकिन इस फिल्म निर्माण कंपनी का दिवाला पिटने के कारण यह फिल्म परदे तक नहीं पहुंच सकी।

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जिन फिल्मों के कथानक में दिवाली के दृश्यों को प्रमुखता से शामिल किया गया, उनमें 1961 में आई राज कपूर और वैजयंती माला की फिल्म ‘नजराना’ भी एक थी। इस फिल्म का गीत ‘मेले है चिरागों के रंगीन दिवाली है’ लता मंगेशकर ने गाया था। यह ब्लैक एंड व्हाइट दौर की खुशनुमा दिवाली का गीत था। इस गीत का फिल्मांकन राज कपूर और वैजयंती माला पर किया और शुरू से अंत तक इसमें दिवाली की आतिशबाजी और भरपूर रोशनी नजर आती है। यह गीत आज भी देखने पर जीवंतता दर्शाता है। 1962 में आई ‘हरियाली और रास्ता’ में दिवाली के दृश्य नायक और नायिका के विरह को दर्शाते हैं। वैजयंती माला, दिलीप कुमार की फिल्म ‘पैगाम’ और ‘लीडर’ में दिवाली के माध्यम से फिल्म के किरदारों को जोड़ने का प्रयास भी किया गया था। 1972 की फिल्म ‘अनुराग’ में आपसी विश्वास को प्रदर्शित किया गया था। इसमें कैंसर से जूझ रहे बच्चों की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए पूरा आस-पड़ोस दिवाली मनाने के लिए आ जुटता है।

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दिवाली सिर्फ रोशनी और आतिशबाजी का ही त्योहार नहीं है! फिल्मों में इसे कई बार अलग तरह से भी जोड़ा जाता है। आतिशबाजी की आवाजों के बीच गोलियों के चलने और पूरे परिवार के खत्म हो जाने वाले दृश्य को अमिताभ बच्चन को सितारा बनाने वाली फिल्म ‘जंजीर’ में बेहद प्रभावशाली ढंग से फिल्माया गया था। फिल्म में एक बच्चा छुपकर सब देखता है और क्लाइमैक्स में वो खलनायक से बदला भी लेता है। कमल हासन की 1998 में आई फिल्म ‘चाची 420’ में कमल हासन की बेटी को पटाखों से घायल होते दिखाया गया। आदित्य चोपड़ा की फिल्म ‘मोहब्बतें’ (2000) में भी दिवाली का दृश्य था। करण जौहर की 2001 की सुपरहिट फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ का टाइटल सांग ही दिवाली गीत है। इसमें जया बच्चन दिवाली की पूजा करते हुए इस गीत को गाती है। पारंपरिक वेशभूषा और तेज चमकती रोशनी से इस गीत की पृष्ठभूमि में दिवाली का भरपूर उजास नजर आता है।

दिवाली को पृष्ठभूमि में रखते हुए तैयार किए कुछ गानों को भी अपार लोकप्रियता हासिल हुई है। इन गीतों में ‘नजराना’ का गीत एक वो भी दिवाली थी, ‘शिर्डी के साईं बाबा’ का दीपावली मनाई सुहानी भी ख़ासा पसंद किया गया था। फिल्म ‘रतन’(1944) के गीत ‘आई दीवाली दीपक संग नाचे पतंगा’ में दीवाली के लाक्षणिक भाव की पृष्ठभूमि में नौशाद ने विरह-भाव की रचना की थी। मास्टर गुलाम हैदर ने फिल्म ‘खजांची’(1941) के गीत ‘दीवाली फिर आ गई सजनी’ में पंजाबी उल्लसित टप्पे का पृष्ठभूमि में आकर्षक प्रयोग किया था। फिल्म महाराणा प्रताप (1946) में ‘आई दीवाली दीपों वाली’ की पारंपरिक धुन सुनने को मिली थी। ‘आई दीवाली दीप जला जा’ (पगड़ी) गीत में आग्रह का पुट था। वहीं ‘शीश महल’(1950) के गीत ‘आई है दीवाली सखी आई रे’को वसंत देसाई ने पारंपरिक ढंग से स्वरबद्ध किया था।

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कुछ साल पहले गोविंदा अभिनीत फिल्म ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया’ का गाना ‘आई है दिवाली, सुनो जी घरवाली’ को भी दिवाली को केंद्र में रखकर बनाया गया था। ‘पैग़ाम’ में मोहम्‍मद रफ़ी का गाया और जॉनी वॉकर पर फिल्माया दिवाली गीत ‘वास्तव’ में कॉमेडी गाना था। ‘नमक हराम’ का राजेश खन्ना और अमिताभ पर फिल्माया गया गीत ‘दीये जलते हैं फूल खिलते हैं’ अपने फिल्मांकन के लिए दर्शकों को आज भी याद है। हम आपके है कौन, एक रिश्ता : द बॉन्ड ऑफ लव और ‘ख्वाहिश’ आदि में भी दिवाली के दृश्य तो दिखाए गए, लेकिन वे कहीं से भी कहानी का हिस्सा नहीं लगते! ‘हम आपके है कौन’ में माधुरी दीक्षित, सलमान खान, रेणुका शहाणे और मोहनीश बहल मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म में दिवाली के सीन को उस समय फिल्माया गया है जब फिल्म में सलमान खान की भाभी रेणुका शहाणे दिवाली के मौके पर बेटे को जन्म देती हैं।

महेश मांजरेकर की संजय दत्त अभिनीत फिल्म ‘वास्तव’ 1999 में सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। यह फिल्म अपने समय की हिट फिल्मों में से एक है। इस फिल्म में भी दिवाली का यादगार सीन है। फिल्म में गैंगस्टर संजय दत्त दिवाली के मौके पर अपने घर आते हैं! अपने गले में सोने की मोटी चेन, एक हाथ में पिस्टल और दूसरे में नोटों की गड्डी के साथ मां के सामने कहते हैं ‘इसे 50 तोला बोलते हैं।’ 1973 में आई फिल्म ‘जुगनू’ में दिवाली की थीम पर एक गीत है, जिसके बोल थे ‘दीप दिवाली के झूठे, रात जले सुबह टूटे, छोटे-छोटे नन्हे-मुन्ने, प्यारे-प्यारे रे, अच्छे बच्चे जग उजियारे रे!’ यह गीत धर्मेंद्र पर फिल्माया था, जिसमें वे यह बताने की कोशिश करते हैं कि दुनिया में असल उजास अच्छे बच्चों के कारण है।

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चेतन आनंद की 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘हकीकत’ में भी दिवाली का उल्लेख है। भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध पर आधारित इस फिल्म के एक दृश्य में दिवाली के दिन फिल्म के अभिनेता जयंत देश के जवानों को एक संदेश भेजते हैं, जो बहुत मार्मिक होता है। इस फिल्म में दिवाली पर बहुत ही दर्द भरा सॉन्ग फिल्माया गया, जिसके बोल थे ‘आई अब के साल दीपावली, मुंह पर अपने खून मलें।’ सॉन्ग को ध्यान से सुने तो इसके पहले अंतरे से ही गरीबी और बेबसी का आभास हो जाता है। इसमें कहा गया है ‘बालक तरसे फुलझड़ियों को, दीपों को दीवारें!’ यह सॉन्ग लद्दाख में चीन के बॉर्डर पर शहीद हुए एक देशभक्त के परिवार पर फिल्माया गया है। देशभक्ति की थीम पर बेस्ड इस फिल्म को साल 1965 में सेकंड बेस्ट फीचर फिल्म का अवॉर्ड दिया गया था।

2005 में रिलीज हुई फिल्म ‘होम डिलेवरी’ ज्यादा नहीं चली, लेकिन फिल्म का गीत ‘मेरे तुम्हारे सबके लिए हैप्पी दिवाली’ ने लोगों के बीच दिवाली को लोकप्रिय किया। कुछ समय से पर्दे से दिवाली तो बिल्कुल ही गायब हो गई है। दिवाली के दृश्यों और गानों से बॉलीवुड लगभग किनारा कर चुका है। विषयवस्तु में भी अब काफी बदलाव आ गया है। यह पूरी तरह से पटकथा की मांग पर निर्भर हो गया है। दीपों के पर्व दिवाली पर प्रदर्शित फिल्मों की सफलता लगभग सुनिश्चित रहती थी। लेकिन, हाल के साल में बड़े पर्दे पर इस त्यौहार को कम ही स्थान मिला। दूसरे त्योहारों के मुकाबले सिनेमा के परदे पर दिवाली के पटाखे कम ही फूटते हैं।