Silver Screen: परदे पर ही नहीं, निजी जिंदगी में भी भले हैं सितारे
मनोरंजन की अपनी दुनिया अलग ही है। यहाँ बड़े सितारे हैं, छोटे सितारें और टिमटिमाते हुए तारे भी हैं। यहां के लोगों के बारे में आम धारणा होती है, कि वे दुनिया से से अलग होते हैं। तोहमत लगाई जाती है, कि यहाँ के लोग बेहद स्वार्थी होते हैं और कोई किसी का साथ नहीं देता। चढ़ते सूरज का तिलक किया जाता है और अस्ताचल वाले सूरज को कोई देखता भी नहीं!
कुछ मामलों में ये बात सही भी हो, पर, कुछ लोग इससे अलग भी हैं, जो दूसरों का दर्द समझते हैं और मदद का हाथ बढ़ाने से पीछे नहीं रहते! जिंदादिल फिल्मकारों से जुड़े ऐसे भी कुछ किस्से हैं, जो बताते हैं कि सिनेमा की दुनिया उतनी बुरी भी नहीं, जितनी समझी जाती है। सिर्फ कोरोना काल में मददगार बनकर ही फ़िल्मी कलाकारों ने अपना फर्ज नहीं निभाया, उसके पहले भी कई ऐसे किस्से हैं जब फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने सामाजिक और व्यक्तिगत तौर पर लोगों की मदद की। लेकिन, कभी उसे प्रचारित नहीं किया।
कोरोना की दूसरी लहर ने जब देश और दुनियाभर में हाहाकार मचाया, तब कोई उससे अछूता नहीं रहा! फिल्मों की दुनिया भी उससे प्रभावित हुई। ऐसे में कई बड़े कलाकार सामने आए जिन्होंने फिल्म इंड्रस्ट्री से जुड़े छोटे कलाकारों, तकनीशियनों और मजदूरों के लिए अपने हाथ खोल दिए थे। लॉकडाउन में जब फिल्म इंडस्ट्री के मजदूरों पर रोजी-रोटी पर संकट मंडराया, इस घड़ी में 25 हजार मजदूरों की मदद के लिए सलमान खान मसीहा बनकर सामने आए थे। इंडस्ट्री में हजारों दिहाड़ी मजदूर काम करते हैं।
इनके लिए सलमान खान ने अपना खजाना खोल दिया था। यशराज फिल्म्स ने भी लोगों की मदद की और कई परिवारों को मासिक राशन भिजवाया। अभिनेत्री जूही चावला ने भी भूमिहीन किसानों की मदद के लिए अनोखी पहल की। उन्होंने संकट की इस घड़ी में कुछ भूमिहीन किसानों को खेती के लिए देकर उनकी मदद की। जूही ने अपनी जमीन किसानों को चावल उगाने के लिए दी और बदले में इसका छोटा सा हिस्सा अपने पास रखा। सोनू सूद ने जो किया, वो तो किसी से छुपा नहीं है। लॉकडाउन की वजह से मुंबई और दूसरी जगह फंसे मजदूरों को घर पहुंचाने में उनकी हर संभव मदद की। बसों से लेकर उनके खाने-पीने की चीजों तक का इंतजाम किया।
ये तो वो किस्से हैं, जो आज के दौर सबकी आँखों के सामने से गुजरे। जो ये बताते हैं कि फ़िल्मी दुनिया बुरी नहीं, बहुत अच्छी भी है। पुराने दौर के किस्से याद किए जाएं तो ऐसी कई घटनाएं हैं, जो फिल्म इंडस्ट्री के अच्छे होने की गवाही देती हैं। मोहम्मद रफी एक बार गाने की रिकार्डिंग के लिए स्टूडियों की लिफ्ट से ऊपर जा रहे थे। उस रिकॉर्डिंग स्टूडियो का पुराना लिफ्ट मैन रफ़ी साहब को जानता था।
उसने मोहम्मद रफी की तरफ शादी का कार्ड बढ़ाते हुए कहा ‘मेरी बेटी की शादी है, आप आइएगा।’ रफी साहब ने अनमने से कार्ड ले लिया, उसकी तरफ देखा भी नहीं। लिफ्ट मैन ने भी इसे कमजोर लोगों की नियति मान लिया और चुप हो गया। करीब घंटे भर बाद मोहम्मद रफी रिकॉर्डिंग करके लौटे! वापसी में उसी लिफ्ट मैन से पूछा ‘शादी किस दिन है, ये कहते हुए एक लिफाफा उसके हाथ में दिया।’ रफी के इस बदले व्यवहार को वो समझ नहीं पाया!
थोड़ी देर बाद फिल्म के निर्देशक ने कहा कि रफी साहब से गुस्सा मत होना! उस समय वे रिकार्डिंग के लिए जा रहे थे, इसलिए उनका ध्यान केवल गाने पर था। लेकिन, जब गाने की रिकार्डिंग हो गई, तो उन्होंने मुझसे कहा कि मेरी फीस में अपना पैसा भी मिलाइए, नीचे लिफ्ट मैन की बेटी की शादी है। बाद में शादी के दिन मोहम्मद रफ़ी उस लिफ्ट मैन की बेटी की शादी में भी गए।
एक और किस्सा। जाने-माने गायक मुकेश के घर के पास एक प्रेस की दुकान थी। वह प्रेस वाला अकसर अपने साथियों से कहता था कि मुकेशजी उससे आते-जाते बात करते हैं, मेरी उनसे दोस्ती है। जब उस प्रेस वाले की लड़की की शादी तय हुई, तो लोगों ने कहा कि मुकेशजी को क्यों नहीं बुलाते, वो तो तुम्हारे दोस्त हैं! उसने झिझकते हुए शादी का निमंत्रण मुकेश को दे दिया।
उसने सोचा नहीं था कि वास्तव में मुकेश उसकी बेटी की शादी में आएंगे। शादी के दिन मुकेश जब वे सांजिदों के साथ मंडप में पहुंचे, तो वह घबरा गया। उसे लगा कि उसने मुकेशजी को गाने के लिए थोड़ी बुलाया था। वह मुकेश के पास गया और कहने लगा ‘आपको तो बस आने के लिए कहा था, बेटी की शादी है आपके गाने का खर्चा कैसे दे पाऊंगा। ऊपर से तबला, बाँसुरी और सारंगी अलग।’ मुकेश ने कहा कि तुम्हारी बेटी क्या मेरी बेटी नहीं।
तुमसे पैसा कौन मांग रहा है। मैं तो बारातियों को गाना सुनाने आया हूँ। मुकेश ने उस शादी में देर रात तक गीत गाए। देर रात जब वे घर लौटे तो बेटे नितिन से कहा कि वहाँ गाने में इतना सुकून मिला, जितना आजतक रिकॉर्डिंग में भी नहीं मिला! मुकेश वहाँ सिर्फ गाने ही नहीं गए, उस बेटी को तोहफे में अच्छे-खासे पैसे भी देकर आए थे।
मुकेश अकसर सर्दियों की रात दिल्ली में कार से सड़क पर निकलते और फुटपाथ पर सोते भिखारियों को कंबल ओढ़ा देते थे। एक बार एक भिखारी ने उन्हें ऐसा करते पहचान लिया, लेकिन कहा कुछ नहीं। बस, उनका एक गीत ‘दुनिया मैं तेरे तीर का या तक़दीर का मारा हूँ’ गाने लगा।
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मुकेश ने कहा ये गीत तुमने कहाँ सुना? भिखारी ने कहा हमारी किस्मत में ये कहाँ कि मुकेश हमें ये गीत सुनाएं या हम उनके प्रोग्राम में जाएं। इस पर मुकेश ने कहा कि यहीं रहना मैं लौटकर आता हूँ। मुकेश वापस आए तो उस भिखारी के लिए अपने शो के चार टिकट लाएं, साथ में तीन सौ रुपए दिए और कहा ‘परसों मुकेश का कार्यक्रम है वहाँ आ जाना।’ भिखारी ने पांव छू लिए और कहा ‘मैं आपको पहचान गया था, पर हिम्मत नहीं थी, इसलिए आपका गीत गा दिया।’ मीना कुमारी बहुत अच्छी शायरा थी, लेकिन कभी मंचों पर नहीं गाती थी।
एक बार किसी ने कहा कि सैनिकों के लिए कवि सम्मेलन है, आप कभी मंच पर नहीं आतीं, पर हो सके तो सैनिकों के लिए आइए! मामला सैनिकों का था तो मीनाजी वहाँ गईं भी और कविताएं भी पढ़ी! उन्होंने कविता के लिए पैसा लेना तो दूर, अपनी तरफ से सैनिक कल्याण कोष में अच्छी खासी रकम दे आईं।
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