Silver Screen: सिनेमा से भी बड़ा हो गया बीते वक़्त का ‘बुद्धू बक्सा!’ 

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Silver Screen: सिनेमा से भी बड़ा हो गया बीते वक़्त का ‘बुद्धू बक्सा!’ 

टेलीविजन को उसके आकार की वजह से भले ही ‘छोटा परदा’ कहा जाता रहा हो, पर सिनेमा के इस वैकल्पिक मनोरंजन ने करीब 40-45 सालों में दर्शकों को बहुत कुछ दिया है। इस माध्यम ने सिर्फ मनोरंजन ही नहीं किया ज्ञान और सूचनाओं से भी अपने दर्शकों को समृद्ध भी किया। यही कारण है कि छोटे परदे ने कुछ मामलों में सिनेमा को भी पीछे छोड़ दिया। शुरूआती दौर में जरूर फिल्म जगत ने टेलीविजन की खिल्ली उड़ाई, उसे बुध्दू बक्सा तक कहा गया। पर, बाद में फिल्मकारों को भी इस परदे की ताकत का अहसास होने लगा था। क्योंकि, घर के एक कमरे में जो मनोरंजन पूरे परिवार को मिलता है, उसका मुकाबला सिनेमाघर कैसे कर सकता था। टेलीविजन के कई धारावाहिक इतने लोकप्रिय हुए कि उसके कलाकारों को फिल्म सितारों की तरह पसंद किया जाने लगा और फिर वे छोटे से बड़े परदे पर भी छा गए। इसके बाद समय इतना बदला कि सभी बड़े सितारे टेलीविजन के छोटे परदे में समा गए। टेक्नोलॉजी ने इस घर में रखे परदे को समृद्ध किया। इसके बाद कोरोना काल ने तो और भी बड़ा कमाल यह किया कि ओटीटी जैसा विस्तृत मनोरंजन छोटे परदे का हिस्सा बन गया। इसका प्रभाव ये हुआ कि छोटे परदे के सामने बड़ा परदा भी छोटा दिखाई देने लगा। यही वजह है कि अब सिनेमा के बड़े कलाकार और दिग्गज ओटीटी के जरिए छोटे परदे में समा गए।

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सभी इस सच को जानते हैं कि मनोरंजन की दुनिया पर कई दशकों तक सिनेमा का राज रहा। जब भी समय बिताने या कुछ अलग करने की इच्छा होती थी, तो लोग फिल्म देखने जाते रहे। ये सब 20वीं सदी के शुरूआती दौर से शुरू हुआ और लंबे समय तक चला। तब सिनेमा का विकल्प सिर्फ नाटकों को ही समझा जाता था, पर मंचीय नाटकों की भी अपनी सीमा थी। जबकि, दर्शकों के लिए सिनेमा आसान मनोरंजन था। लेकिन, जब टीवी आया तो दर्शक बंट गए। इसका सीधा असर सिनेमा पर पड़ा। जब टीवी थोड़ा समृद्ध हुआ, तो इसके धारावाहिकों ने घर के दर्शकों को बांध लिया। 80 और 90 के दशक में तो ऐसा दौर भी आया जब हम लोग (1984-85), मालगुडी डेज (1986), रामायण (1987-88), महाभारत (1988-89), बुनियाद (1986-87), तमस (1987), ब्योमकेश बख्शी (1993-97) और फौजी (1988) जैसे टीवी शो ने मनोरंजन की परिभाषा ही बदल दी। सिनेमाघर खाली होने लगे। यहां तक कि दर्शक टीवी के मोहपाश में इतना बंध गए कि उनकी दिनचर्या टीवी के धारावाहिकों के अनुसार तय होने लगी। मनोरंजन का मकसद ही बदल गया। रविवार को जब छोटे परदे पर बड़ी फ़िल्में दिखाई जाने लगी तो फिल्म के दर्शक भी छोटे परदे के सामने आ गए। कुछ ही सालों में टीवी का प्रभाव इतना प्रबल हो गया कि बड़े कलाकार भी छोटे परदे में सिमट गए। इसके साथ ही टीवी धारावाहिकों के कलाकारों को फिल्मों में मौका मिलने लगा।

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ऐसा भी समय था, जब टेलीविजन को मनोरंजन का इतना छोटा माध्यम माना जाता था कि फिल्मों के बड़े कलाकार उसके कार्यक्रमों में काम करने से कतराते थे। कलाकारों में सीधा विभेद किया जाने लगा। एक तरफ थे फिल्मों के कलाकार जिनकी लोकप्रियता आसमान छूती थी। दूसरे थे छोटे परदे के कलाकार जिनकी थोड़ी-बहुत लोकप्रियता धारावाहिक के प्रसारण तक ही सीमित थी। लेकिन, 90 के दशक के बाद ये भेद भी ख़त्म हो गया जब, छोटा और बड़ा परदा दोनों एक-दूसरे में समाहित हो गए। टीवी के क्विज शो में फ़िल्मी सितारों का जमघट लगने लगा। अमिताभ बच्चन, सलमान खान और करण जौहर जैसे बड़े कलाकार होस्ट बनकर छोटे परदे समा गए। जबकि, टीवी से शाहरुख खान, इरफान खान और विद्या बालन ने बड़े परदे पर जगह बना ली। छोटे परदे की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि उस पर बड़े सितारों को भी सहारा मिलने लगा। यदि अमिताभ बच्चन का शो ‘केबीसी’ नहीं होता तो क्या 20 साल तक दर्शक अमिताभ को याद रखते! सलमान खान और शाहरुख खान भी क्विज़ शो लेकर इसी छोटे परदे पर आए। शिल्पा शेट्टी और माधुरी दीक्षित जैसी कलाकार भी टीवी के रियलिटी शो की जज बनने लगी।

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निःसंदेह अब मनोरंजन के मामले में टीवी की पहचान पहले जैसी नहीं रही। अब 80 और 90 का वो दौर नहीं रहा, जब छोटे परदे का एकछत्र राज था। टीवी ने अपने धारावाहिकों में कई ऐसे कलाकारों को मौका दिया, जो आज बड़े परदे के बड़े स्टार हैं। शाहरुख खान ने अपने करियर की शुरुआत टीवी से ही की। उनके अभिनय करियर की शुरुआत 1989 में ‘फौजी’ और ‘सर्कस’ जैसे टीवी शो से हुई थी, जो दूरदर्शन पर प्रसारित होते थे। लेकिन, आज वे जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है। इसके कुछ साल बाद उन्होंने फिल्म ‘दीवाना’ से फ़िल्मी दुनिया में जगह मिली। आज विद्या बालन को फिल्मों की संजीदा एक्ट्रेस माना जाता है, उन्होंने भी एकता कपूर के कॉमेडी शो ‘हम पांच’ से अपना करियर शुरू किया था। 2005 में उन्होंने फिल्म ‘परिणीता’ से फिल्मों में एंट्री की और सफल हुई। उन्होंने द डर्टी गर्ल, कहानी, तुम्हारी सुलु और शेरनी जैसी हिट फिल्मों में काम किया। नवाजुद्दीन सिद्दीकी को फिल्मों में काम पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने भी टीवी शो ‘परसाई कहते हैं’ के कुछ एपिसोड में काम किया था। इसके बाद उन्हें बड़े परदे पर छोटे मोटे-रोल मिले। 2012 में ‘गैंग ऑफ वासेपुर’ से उन्हें पहचाना जाने लगा।

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रेणुका शहाणे ने दूरदर्शन के शो ‘सर्कस’ से अपना अभिनय करियर शुरू किया। लेकिन, उन्हें पहचाना गया सिद्धार्थ काक के शो ‘सुरभि’ से। बाद में रेणुका ने टीवी और फिल्मों में एक साथ काम किया। राजश्री की फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ से उनका करियर परवान चढ़ा। इसी तरह साक्षी तंवर दूरदर्शन की टेलीफिल्म ‘ललिया’ से अभिनय शुरू किया। इसके बाद गाने के रियलिटी शो ‘अलबेला सुर मेला’ को होस्ट किया। फिर कहानी घर घर की’ से वे महिला दर्शकों की लोकप्रिय एक्ट्रेस बन गई। उन्होंने टीवी शो ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ से दूसरी पारी शुरू की। जबकि, ‘दंगल’ फिल्म में आमिर की पत्नी का किरदार निभाकर लोकप्रियता हासिल की। मंदिरा बेदी ने 1994 में दूरदर्शन के शो ‘शांति’ से अपनी अलग पहचान बनाई थी और बाद में ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ से फिल्मों में दिखाई दीं। वे अब भी फिल्मों और टीवी दोनों में दिखाई देती हैं। टीवी के रियलिटी शो ‘बिग बॉस’ में आई अंजान सी शहनाज कौर का नाम भी इस लिस्ट में लिया जा सकता है। उनकी मासूमियत ने दर्शकों के दिलों पर ऐसा जादू चलाया कि वे रातों-रात लोकप्रिय हो गई। फिल्मों में भी उनको लिया गया।

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बेहद पसंद किए जाने वाले धारावाहिक ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’ वालीं मोना सिंह भी आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ और ‘लाल सिंह चड्ढा’ में दिखाई दी थीं। ‘बिग बॉस’ के 15वें सीजन की प्रेम तेजस्विनी प्रकाश ‘ड्रीम गर्ल-टू’ में नजर आई। ‘नागिन’ धारावाहिक से प्रसिद्ध हुई मोनी राय भी अक्षय कुमार के साथ ‘गोल्ड’ में आई हैं। वे ‘केजीएफ’ और ‘मेड इन चाइना’ में काम कर चुकी हैं। रणबीर-आलिया और अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ और ‘बोले चूड़ियां’  दिखाई दी। टीवी एक्ट्रेस टिस्का चोपड़ा ने ‘कहानी घर-घर की’ और ‘अस्तित्व’ से पहचान बनाई थी। उन्होंने आमिर खान के साथ ‘तारे जमीन पर’ से फिल्मों में पहचान बनाई। फिल्म ‘जुग जुग जियो’ में उनकी खास भूमिका थी। टीवी अभिनेत्री मृणाल ठाकुर को रितिक रोशन के साथ ‘सुपर थर्टी’ में देखा गया था।  वे जर्सी, तूफान और ‘बाटला हाउस’ फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं। वे साऊथ की कुछ फिल्मों में भी नजर आई।

सिर्फ अभिनेत्रियां ही नहीं, कई अभिनेताओं ने भी छोटे-छोटे किरदार निभाकर बड़े परदे पर अपनी जगह बनाई। इनमें मनोज बाजपेई, कपिल शर्मा, सुनील ग्रोवर, सुशांत सिंह, सिद्धार्थ शुक्ला हैं। 1995 मैं महेश भट्ट के निर्देशन में बने टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ से अपना करियर शुरू करने वाले मनोज बाजपेई ने ‘सत्या’ फिल्म से अपने फिल्म करियर की शुरुआत की। सुनील ग्रोवर ने ‘गुड बॉय’ और ‘जवान’ में भी काम किया है। टीवी के परदे पर लोकप्रिय रहे शरद केलकर ने दरबान, बादशाहो, लक्ष्मी और ‘इरादा’ में काम किया हैं। कितने ही कलाकारों के नाम गिनाए, फिर भी ये सूची अधूरी ही रहेगी। क्योंकि, शाहरुख़ खान जैसा कलाकार टेलीविजन की ही देन है। ओटीटी के बाद तो छोटे परदे के बड़े कलाकारों की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि वे सिनेमा से बड़े हो गए। अब कहा जा सकता है कि मनोरंजन के मामले में छोटे और बड़े परदे का फर्क ख़त्म हो गया। अब स्थिति ये है कि छोटे परदे से बहुत से चेहरे बड़े बनकर निकल रहे हैं!

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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