Silver Screen: ग्लैमर की चाकलेटी दुनिया में भीड़ में खो जाने वाला चेहरा!  

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Silver Screen: ग्लैमर की चाकलेटी दुनिया में भीड़ में खो जाने वाला चेहरा!  

 

– हेमंत पाल

 

ये करीब 12 साल पुरानी बात है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा अपनी फिल्म ‘तीन थे भाई’ का प्रमोशन करने इंदौर आए थे। उनके साथ ओम पुरी भी थे। मेरे से ओम पुरी का परिचय पुराना था, तो मैंने उनसे अखबार के दफ्तर आने का अनुरोध किया। करीब एक घंटे बाद दफ्तर के गेट पर हल्ला हुआ, तो पता चला कि ओम पुरी फिल्म के कई कलाकारों के साथ पहुंच गए। मेरे लिए आश्चर्य वाली बात थी, कि ओम पुरी जैसा बड़ा अभिनेता मेरे सामान्य से अनुरोध पर बिना किसी औपचारिकता के सीधे दफ्तर पहुंच गया। मैंने उनका स्वागत करते हुए कहा कि आप सूचना तो देते, मैं आ जाता आपको लेने! … तो उनका जवाब था ‘आपने बुलाया तो कैसी औपचारिकता, दिल किया तो आ गया!’ ये छोटी सी घटना बताती है कि ये अभिनेता रिश्तों को लेकर कितने सहज थे। कोई दंभ नहीं कि मैं बड़ा कलाकार हूं। जब एक साथी ने उनसे सवाल किया कि आपको एक्टिंग करने की जरूरत ही क्या, आप तो आवाज से ही अदाकारी कर लेते हैं! इस पर ओम पुरी का जवाब था ‘मेरा चेहरा ऐसा है कि उससे तो कोई प्रभावित नहीं होगा! इसलिए आवाज के दम से ही अपनी अदाकारी जिंदा है।’ ये प्रसंग बताता है कि ओम पुरी सिर्फ बेहतरीन कलाकार ही नहीं, अच्छे इंसान भी थे। उनकी सहजता और जमीन से जुड़े से होने से लगता है कि वे परदे पर भी एक्टिंग नहीं करते रहे। वे अंदर से ऐसे ही थे। भीड़ में खो जाने वाला आम आदमी का ऐसा चेहरा जो आसपास कहीं भी हमेशा नजर आ जाता है।

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अपनी अनोखी अदाकारी का लोहा मनवाने वाले ओम पुरी का जन्म 18 अक्तूबर, 1950 को अंबाला में हुआ था। उनका असल नाम ओम प्रकाश पुरी था। बेशक उनकी जन्म की तारीख 18 अक्टूबर दर्ज हो, पर उन्हें भी इसका पता बरसों बाद चला। ओम पुरी के परिवार के पास उनके जन्म का कोई प्रमाण पत्र नहीं था और न किसी को उनकी जन्म तिथि याद थी। उनकी मां ने किसी को बताया था कि वे दशहरा से दो दिन पहले पैदा हुए थे। जब वो स्कूल जाने लगे, तो उनके मामा ने जन्म तारीख 9 मार्च, 1950 लिखवा दी। लेकिन, जब वे मुंबई आए, तो उन्होंने पता किया कि साल 1950 में दशहरा कब मना था! उस हिसाब से उन्होंने खुद की जन्म तारीख 18 अक्टूबर तय कर ली, और यही उनके साथ बाकी जीवन में बनी रही।

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वे सिर्फ सिनेमा और टीवी के ही अच्छे कलाकार नहीं थे, जिन लोगों ने थियेटर में उनकी अदाकारी देखी है, वे जानते हैं कि एक्टिंग में उनकी जीवंतता का स्तर क्या था। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 1976 में मराठी फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की। इसके बाद गोविंद निहलानी की फिल्म ‘आक्रोश’ (1980) में पहली बार हिंदी फिल्म में काम करने का मौका मिला। लेकिन, 1983 में आई फिल्म ‘अर्ध सत्य’ से वे लोगों की निगाह में चढ़े। गुस्से से भरे पुलिसवाले वेलणकर के किरदार में उन्होंने जान डाल दी थी। साल 1988 में दूरदर्शन के चर्चित सीरियल ‘भारत एक खोज’ में उन्होंने कई किरदार निभाए। मिर्च मसाला, जाने भी दो यारो, चाची 420, हेरा फेरी, मालामाल वीकली, स्पर्श, कलयुग, गांधी, जाने भी दो यारो, आरोहण, मंडी, पार और ‘सिटी ऑफ जॉय’ जैसी कई फिल्मों में काम किया। हमेशा अलग तरह के किरदारों में दिखाई दिए। लेकिन, श्याम बेनेगल की ‘आरोहण’ और गोविंद निहलानी की ‘अर्धसत्य’ ने उन्हें शोहरत के के आसमान पर पहुंचा दिया था। इन दोनों फिल्मों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ भी मिला। ओम पुरी ने भारतीय भाषाओं की फिल्मों के अलावा 20 से ज्यादा हॉलीवुड फिल्मों में काम किया। जाने-माने निर्देशक रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ में भी उन्होंने भूमिका निभाई। वर्ष 1990 में इस बेहतरीन अभिनेता को भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया था।

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ओम पुरी का बचपन काफी गरीबी में बीता। लंबे संघर्ष के बाद ही उन्होंने सफलता का मुकाम हासिल किया। पंजाबी परिवार में जन्में ओम पुरी के पिता रेलवे में मुलाजिम थे। जब वे 6 साल के थे, विषम पारिवारिक स्थिति में परिवार बेघर हो गया। ओम पुरी के भाई वेद प्रकाश पुरी ने जीवन का संघर्ष शुरू कर दिया। छह साल की उम्र में ओम को भी चाय की दुकान पर काम करना पड़ा। वे रेलवे ट्रैक से कोयला भी बीना करते थे, ताकि घर वालों को दो वक़्त की रोटी मिल सके।

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पिता ने आर्थिक तंगी के कारण ओम पुरी को पढ़ने के लिए उनके मामा के पास (सनौर) पटियाला भेज दिया। लेकिन, वहां भी घरेलू हालात कुछ ऐसे बने कि उन्हें मामा के यहां से अलग होना पड़ा। कोई ठिकाना नहीं था, तो स्कूल के चौकीदार ने ओम को स्कूल में ही रख लिया। कुछ दिनों बाद हेडमास्टर को पता चला तो ओम की मदद करने के लिए उन्हें छोटे बच्चों की ट्यूशन दिला दी। इस तरह उन्होंने 10वीं पास कर ली। बड़े हुए तो एक वकील के यहां नौकरी करने लगे थे और उसी दौरान उनका परिचय प्रसिद्ध नाटककार हरपाल टिवाना से हुआ। लेकिन, जब उनके नाटकों में काम करने से वकील की नौकरी में अड़चन आने लगी तो वो नौकरी छूट गई। फिर खालसा कॉलेज के नाटक प्रेमी प्रिंसीपल की मदद से कॉलेज में नौकरी की। कुछ दिनों बाद उन्हें ‘पंजाब कला मंच’ में नौकरी मिल गई और यहीं से उनको ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ में जाने का रास्ता भी मिला। नसीरुद्दीन शाह, जो उनके दोस्त थे, उन्होंने ओम पुरी को पुणे में इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में काफी मदद की। नसीरुद्दीन के अलावा अमरीश पुरी भी उनके अच्छे दोस्त थे। लेकिन, दोनों में भाई का रिश्ता नहीं था, जो लोग समझते रहे।

ओम पुरी बेहद बेबाक थे और अपनी इस आदत का उन्हें खमियाजा भी भुगतना पड़ा। उन्हें अपने जीवन के सीक्रेट्स बताने में भी कभी कोई संकोच नहीं होता था। इस वजह से उनके नाम के साथ कुछ विवाद भी जुड़े। लेकिन, वे अपनी ही पत्नी नंदिता पुरी की कलम का सबसे ज्यादा शिकार हुए। जबकि, नंदिता पुरी ने उन किस्सों को अपनी लेखकीय स्वतंत्रता का हिस्सा मानते हुए उन्हें ओम पुरी की बायोग्राफी ‘अनलाइकली हीरो : ओम पुरी’ में सबके सामने परोस दिया। जब 2009 में उनकी बायोग्राफी छपी, तो ओम पुरी की जिंदगी में भूचाल सा आ गया। इस किताब के बाद ओम पुरी और नंदिता के रिश्ते सामान्य नहीं रहे। बाद में दोनों अलग भी हो गए। वे जितना फिल्मों के कारण चर्चा में रहे, उतना ही अपने निजी जीवन के खुलेपन को लेकर भी ख़बरों और गॉसिप में छाए रहे। उन्होंने 1991 में सीमा कपूर से पहली शादी की थी। लेकिन, ये शादी आठ महीने ही चली।

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उनकी बेबाकी से वे कई बार सार्वजनिक विवादों में भी उलझे। दिल्ली में जब रामलीला मैदान में अन्ना हजारे का आंदोलन चल रहा था, मंच से उन्होंने नेताओं के बारे में हजारों लोगों की भीड़ के सामने कहा था कि जब आईएएस और आईपीएस ऑफिसर गंवार नेताओं को सलाम करते हैं, तो मुझे शर्म आती है। इस बयान के बाद जब विवाद बढ़ा तो खेद व्यक्त करने के बाद मामला शांत हुआ। उन्होंने यह भी कहा था कि मैं संसद और संविधान की इज्जत करता हूं। मुझे अपने भारतीय होने पर भी गर्व है। एक और मामला हुआ जब वे बेवजह विवाद में आए थे। एक टीवी बहस में ओम पुरी ने भारतीय जवानों के सरहद पर मारे जाने के बारे में कुछ टिप्पणी कर दी थी! हालांकि इस मामले में भी उन्होंने शहीद सैनिकों के परिवारों से माफी मांग ली थी।

छह जनवरी 2017 को ओम पुरी का 66 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया। कहा जाता है कि उन्हें अपनी मौत के बारे में भी अहसास था। एक बार उन्होंने कहा था कि मेरी मौत अचानक होगी। मौत का किसी को पता नहीं चलेगा। सोए-सोए चल देंगे। सबको पता चलेगा कि ओम पुरी का सुबह 7 बजकर 22 मिनट पर निधन हो गया। हुआ भी कुछ ऐसा ही था। ओम पुरी का शव उनके घर में मिला। डॉक्टरों ने वजह दिल का दौरा पड़ना बताई। मौत से पहले की शाम ओम पुरी ‘राम भजन जिंदाबाद’ फिल्म के निर्माता खालिद किदवई के साथ थे। उन्होंने मौत से पहले बिताई शाम के बारे में बताया था – ‘वे अपने बेटे को लेकर काफी भावुक थे। उस शाम भी वे बेटे से मिलना चाहते थे, पर नहीं मिल सके। जाते समय गले मिले। उसके बाद मैं कार से घर चला आया। जब कार पार्क की, तो देखा कि सीट के नीचे ओम पुरी का पर्स पड़ा था। मैंने सोचा कि अब रात को 12 बजे क्या फोन करना, सुबह उन्हें बता दूंगा। सुबह साढ़े 6 बजे फोन किया तो कोई जवाब नहीं मिलने पर मैंने उनके ड्राइवर को फोन करके कहा कि ओम जी का पर्स ले जाना। आठ बजे के करीब उनके ड्राइवर का फोन आया जिसने मुझे उनके निधन की सूचना दी। उनका पर्स अभी मेरे पास निशानी के तौर पर रखा है। उनकी मौत की जिस तरह सूचना मिली, उससे लगता है कि कहीं सही में उनकी मौत 7.22 पर ही तो नहीं हुई!’

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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