दारु पीने – बेचने से पाप या कल्याण के दावे कितने सार्थक

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नीतीश कुमार ने पिछले दिनों    बिहार विधान सभा में मुख्यमंत्री के रुप में अपनी नीतियों को सही ठहराते हुए बहुत तीखे अंदाज में कहा कि ” जो शराब पीते हैं , वे भारतीय नहीं हैं और महापापी हैं | वे महात्मा गाँधी के आदर्शों का पालन नहीं कर रहे हैं | ” उन्होंने वैसे यह टिप्पणी शराब पीने रखने पर बने उनके कड़े कानून में थोड़े संशोधन के साथ तत्काल जेल न भेजने की कृपा वाले विधेयक पर सदन में हुई  बहस का उत्तर देते हुए की | उनकी शराब नियंत्रण नीति के लाभ और राजस्व हानि अथवा अवैध बिक्री पर लगातार बहस बिहार ही नहीं देश भर में चलती रही है |

बिहार के अलावा केवल गुजरात राज्य में पूर्ण नशाबंदी कानून लागू हैं | हाँ , हाल ही में भाजपा की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती ने बाकायदा शराब की लाइसेंसशुदा एक दूकान में घुसकर पथ्थर फेंक कर  नशाबंदी कानून पर आंदोलन शुरू किया है | दोनों ही प्रदेशों में इसे सत्ता की राजनीति के फार्मूले के रुप में देखा जा रहा है | नीतीश कुमार राजनीति के दांव पेंच के अनुसार बड़े दावे करते और बदलते रहे हैं | कुछ वर्ष पहले उन्हें प्रधान मंत्री पद का दावेदार कहा जा रहा था | आजकल कभी भाजपा का दामन छोड़ नए प्रतिपक्षी मोर्चे के प्रमुख नेता , उप राष्ट्रपति पद के दावेदार की चर्चा हो रही है | तो क्या वह यह लक्ष्य भी रख सकते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका मिलने पर बिहार की तर्ज पर देश भर में मद्यनिषेध लागू करवा सकेंगे ?

 वह अनुभवी नेता हैं और जयप्रकाश आंदोलन से आगे बड़े हैं और उन्हें  कम से कम मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के 1977 – 79 के जनता पार्टी के राज के नशाबंदी संकल्पों और उनकी विफलताओं का थोड़ी जानकारी याद  होगी | मुझे इसलिए याद है , क्योंकि मैं उस समय देश की प्रमुख हिंदी पत्रिका साप्ताहिक हिंदुस्तान ( हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप ) में संवाददाता था | मोरारजी भाई और चरण सिंह से मिलने , उनकी बातें सुनने और पत्रिका में मद्यनिषेध नीति के विवादों पर दो चार पेज की रिपोर्ट -फीचर आदि लिखने होते थे |

इसी क्रम में दिसंबर 1977  में  छपे एक लेख का शीर्षक था ” दारुबंदी  : मौसम खुश्क रहेगा ” | उन्ही दिनों प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने सार्वजनिक रुप से यह संकल्प व्यक्त किया था कि ” अगले चार वर्षों में मद्यनिषेध कानून पुरे देश में लागू हो जाएगा |” इसके बाद जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने मुझसे एक मुलाकात में थोड़ा व्यंग्य से कहा था कि जब उनके मंत्रिमंडल के 12 सदस्य ही शराब प्रेमी हैं , तो वे साड़ी जनता को कैसे रोक पाएंगे ?  मोरारजी भाई ने इससे पहले मुंबई राज्य के मुख्यमंत्री के नाते शराबबंदी लागू की थी |

बाद में विभाजन के बाद 77 में गुजरात और तमिलनाडु में मद्यनिषेध कानून लागू था | मोरारजी भाई जब अमृतसर निर्माण की 400 वीं वर्षगांठ के समारोह में गए तो अमृतसर को ड्राई पोर्ट बनाने की मांग पर शर्त रखी कि राज्य सरकार इस शहर को शराब से ड्राई घोषित  कर दे | तब तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कर दी कि फ़िलहाल दो दिन अमृतसर में शराब की बिक्री पर प्रतिबन्ध रहेगा | लेकिन बाद में न मोरारजी के संकल्प कभी पूरे हुए और अमृतसर ही नहीं पंजाब हरियाणा शराब के उत्पादन बिक्री में अग्रणी हो गए | वर्षों बाद बंसीलाल ने हरयाणा का  मुख्यमंत्री बनने पर मद्यनिषेध कानून लागू किया , लेकिन उनके हटने के बाद यह कानून अव्यवहारिक मानकर खत्म कर दिया गया |

नीतीश कुमार बार बार महात्मा गाँधी के आदर्शों का उल्लेख करते हैं | निश्चित रुप से उनके लिए मद्य निषेध महत्वपूर्ण आदर्श नीति थी | लेकिन वह या कांग्रेस पार्टी उस नीति को कितना लागू कर पाई ? आज़ादी से पहले गाँधी इर्विन समझौते के 11 प्रस्तावों में मद्यनिषेध नीति पहले नंबर पर थी | कांग्रेस अधिवेशनों में भी इस नीति को प्रमुखता से रखा जाता था | 1937 में  सात प्रांतों की कांग्रेस सरकारों ने भी मद्यनिषेध लागू करने के संकल्प मात्र व्यक्त किए |

आज़ादी के बाद संविधान सभा ने संविधान के भाग 8 की धारा 47  में मद्य निषेध का प्रावधान करते हुए लिखा – ” राज्य अपनी जनता के पोषक भोजन और जीवन स्तर को उन्नत करने एवं जान स्वास्थ्य में सुधार को अपने प्रमुख कर्तव्य समझे और खासकर यह प्रयास करे कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मादक पेय और नशीली औषधियों का उपयोग निषेध हो | केवल किसी विशेष उपचार के लिए आवश्यक होने पर नशीली औषधी का उपयोग हो |”   गाँधी शताब्दी वर्ष  और 1975 में इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार ने मद्यनिषेध नीति की योजना घोषित की , लेकिन क्रियान्वित नहीं हो सकी | इसका एक बड़ा कारण मद्यनिषेध स्वास्थ्य से जुड़ा होने के कारण राज्य सरकारों की नीतियों पर निर्भर है | वहीँ राज्य सरकारों की आमदनी का बड़ा स्रोत शराब की बिक्री से मिलने वाला टैक्स है |

यह तरीका भी अंग्रेजों की देन है | पहले अंग्रेजों ने भारत में शराब को बढ़ावा दिया | फिर 1790 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने  आबकारी व्यवस्था लागू कर शराब पर टैक्स वसूलना शुरु किया | आज़ादी के बाद यह नीति जारी रही | उदारीकरण के दौर में 1991 के बाद विदेशी शराब कंपनियों और देशी कंपनियों से शराब का उत्पादन खपत और आमदनी का सिलसिला बढ़ता रहा है | कांग्रेस  भाजपा सहित विभिन पार्टियों के नेता या उनके समर्थकों के शराब कारखाने लगे और मुनाफा बढ़ता चला गया | अब तो भारतीय बीयर और वाइन भी विदेशों में लोकप्रिय हो गई हैं |

गुजरात की अर्थ व्यवस्था तो बहुत अच्छी है और लोग अधिक शिक्षित एवं नशे के नुकसान  को समझते हैं | लेकिन बिहार जैसे राज्य में राजस्व की धनराशि की कमी होने पर लोगों को शिक्षित करने , नशे से निजात के लिए जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के लिए पर्याप्त बजट का प्रावधान नहीं हो पा रहा है | उनके ही नेता और समर्थकों पर  अवैध शराब की खरीदी करने या धंधे में सहायता के आरोप लग रहे हैं | इस स्थिति में नीतीश कुमारजी किस किसको पापी घोषित कर सकेंगें ?

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ – और आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं )