बुंदेलखंड के समृद्ध पुरा वैभव का प्रतीक है सिंगौरगढ़ का किला
अशोक मनवानी की रिपोर्ट
बुंदेलखंड अंचल की समृद्ध पुरा संपदा का महत्वपूर्ण प्रतीक सिंगौरगढ़ का किला भी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर सिंगौरगढ़ में शनिवार, पांच अक्टूबर को हुई मंत्रि परिषद की बैठक के साथ इस किले की विशेषताएं भी उजागर हो गई हैं।
सिंगौरगढ़ वीरांगना रानी दुर्गावती की राजधानी रही जो सिंग्रामपुर के निकट है। इस किले को ऐसा विशिष्ट किला माना जाता है जहां प्रचीन सती परम्परा के प्रमाण भी सती स्तंभों के रूप में मिलते हैं।
पन्ना जिले में अजयगढ़ दुर्ग भी अद्भुत है। इसके अलावा सागर, जयसिंह नगर (आज का जैसीनगर) राहतगढ़ के किले आज पर्यटकों के आकर्षण के प्रमुख केंद्र बनने की संभावनाएं लिए हुए हैं।
बुंदेलखंड के किलों में सिंगौरगढ़ किले का ऐतिहासिक महत्व है। यह किला सामरिक दृष्टि से बेमिसाल था। सिंगौरगढ़ के किले के दो द्वार द्रष्टव्य थे ओर तीसरा द्वार शत्रु सैनिकों को मौत के घाट उतारने के काम आता था। पुरातत्व विभाग द्वारा सिंगौरगढ़ किले के बाहर स्थित बोर्ड पर लिखा गया है कि प्रदेश के प्रमुख किलों में से एक सिंगौरगढ़ एक सुरक्षित किला था। इस किले के परकोटे दो तरह से सुसज्जित किए गए थे। एक भाग पहाड़ की चोटियों से गुजरते हुए लगभग 5 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह बाह्य किले-बंदी के रूप में सुरक्षा के उद्देश्य से निर्मित किया गया था। किले के अंदरूनी भाग में भी एक परकोटा है। यह आंतरिक किले-बंदी के प्रयोजन के लिए निर्मित हुआ था। इन परकोटों को मजबूती प्रदान करने के लिए अनेक स्थानों पर बुर्ज भी निर्मित किए गए थे।
सिंगौरगढ़ के किले के बुर्ज भी अलंकृत किए गए थे। इसके लिए कंगूरे की अनवरत श्रंखला का निर्माण हुआ। अनगढ़ पाषाण खण्ड भी सुसज्जित कर निर्माण के काम में लाए गए।
सिंगौरगढ़ के किले का निर्माण सर्वप्रथम कलचुरी राजवंश ने किया था। इसके पश्चात अन्य राजवंशों ने भी किले का उपयोग किया। समय-समय पर अन्य निर्माण भी किले में किए गए। जब इस स्थल को गोंड साम्राज्य का हिस्सा बनाया गया तो इसका महत्व बढ़ गया। सामरिक दृष्टि से किला अत्यंत महत्वपूर्ण है। किले की सुरक्षा के लिए द्विस्तरीय परकोटे और तीन द्वारों के कारण अभेद्य श्रेणी के किले का दर्जा मिला। मुख्य रूप से किले के दो द्वार थे। तृतीय द्वार सामरिक योजना के अंतर्गत एक संकरे प्रांगण में निर्मित किया गया। शत्रु द्वारा किले पर चढ़ाई करने की स्थिति में उन सैनिकों के किले के अंदर घुस आने पर वापस जाने वाले मार्ग के संकरा होने के कारण फंस जाने की परिस्थिति निर्मित हो जाती थी। इस बीच किले में तैनात सैनिकों को इतना समय मिल जाता था कि वे शत्रु सैनिकों पर हमला कर सकें। किले के सैनिक प्रांगण में फंसे शत्रु सैनिकों को आसानी से मौत के घाट उतार देते थे। किले का एक द्वार-हाथी द्वार कहलाता है। हाथियों के आवागमन के लिए इसका उपयोग होता था। किले में रानी महल का निर्माण कलात्मक ढंग से हुआ है। यह महल तीन तलीय है। काष्ठ के उपयोग और झरोखे का निर्माण भी किया गया है। इस महल के नजदीक एक कुण्ड भी निर्मित है। किले के परिसर में भगवान गणेश, विष्णु, हनुमान की प्रतिमाएं भी हैं जो इसके धार्मिक स्वरूप की जानकारी देती हैं।
कुछ सती स्तंभ भी सिंगौरगढ़ के किले में निर्मित हुए थे। उल्लेखनीय है बुंदेलखंड अंचल में कई सती स्तंभ चौथी शताब्दी में निर्मित एक सती स्तंभ सागर जिले में बीना के पास एरण में मिला था। अपनी यात्रा में ऐसे कई स्तंभ देखने के बाद ब्रिटिश अफसर विलियम बैंटिक ने कलकत्ता पहुंचकर सती निरोधक कानून बनाने की पहल की थी। राजा राम मोहन राय के प्रयासों से वर्ष 1829 में सती को गैर-कानूनी घोषित किया गया। बहरहाल सिंगौरगढ़ किले की विशेषताएं यहां पर्यटन स्थल के रूप में इसके विकास और स्थानीय अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने की दृष्टि से सामने आती दिख रही हैं। निश्चित ही सम्पूर्ण अंचल को इसका सकारात्मक लाभ प्राप्त होगा।