लोक कल्याण की साक्षात प्रतिमूर्ति स्कंदमाता…

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लोक कल्याण की साक्षात प्रतिमूर्ति स्कंदमाता…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। स्कंदमाता लोक कल्याण की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं। स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ का ही एक नाम है। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं। दाएं हाथ की ऊपर वाली भुजा से माता पुत्र स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। इस दिन साधक का मन ‘विशुद्ध’ चक्र में अवस्थित होता है। मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना करने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और कार्यों की विघ्न-बाधा भी खत्म होती है।

 

मां दुर्गा के स्कंदमाता अवतार की ऐसी मान्यता है कि माता सती द्वारा अपनी देह त्यागने के बाद, भगवान शिव ने स्वयं को सांसारिक बंधनों से दूर कर लिया था और एक तपस्वी के रूप में पहाड़ों के बीच, कड़ी सर्दी में तपस्या करने चले गए थे। इसी दौरान, तारकासुर और सुरपद्मन नाम के दो राक्षसों ने देवताओं पर हमला कर दिया। उस वक्त, देवताओं की मदद करने के लिए कोई नहीं था। तारकासुर और सुरपद्मन नाम के दोनों राक्षसों को ब्रह्मा जी द्वारा यह वरदान प्राप्त था, कि उन्हें मारने के लिए शिव जी की संतान को ही आना होगा। उन राक्षसों ने चारों ओर कलह का माहौल बनाया हुआ था और अपने आसपास, हर किसी को परेशान करके रखा था। इन दोनों राक्षसों के अत्याचारों को देख, देवतागण भी चिंतित थे। तब सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपना दुख सुनाया। परंतु विष्णु जी ने उनकी कोई मदद नहीं की। विष्णु जी से मदद न मिलने पर, देवताओं ने नारद जी के पास जाने का सोचा।

उन्होंने नारद जी से कहा, कि यदि वह माता पार्वती से भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या करने को कहेंगे, तब शायद भगवान शिव उनसे शादी कर लें और उनके मिलन से महादेव की संतान जन्म ले, जो उन राक्षसों का वध कर सके। इसलिए नारद जी के कहे अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की और उनकी भक्ति से खुश होकर, भगवान शिव ने उनसे विवाह करने का निर्णय लिया।

विवाह के पश्चात, माता पार्वती और भगवान शिव की ऊर्जा से एक बीज का जन्म हुआ। बीज के अत्यधिक गर्म होने के कारण, उसे अग्नि देव को सर्वाना नदी में सुरक्षित रखने के लिए सौंप दिया गया। अग्निदेव भी उसकी गर्मी सह नहीं पाए, इसलिए उन्होंने उस बीज को गंगा को सौंप दिया, जो उसे आखिर में सर्वाना झील में ले गईं, जहां माता पार्वती पहले से ही पानी के रूप में मौजूद थीं और उस बीज को धारण करते ही, वह गर्भवती हो गईं। कुछ समय पश्चात, कार्तिकेय ने अपने छह मुखों के साथ जन्म लिया।

कार्तिकेय के जन्म के बाद, उन्हें तारकासुर और सुरपद्मन का विनाश करने के लिए तैयार किया गया। सभी देवताओं ने मिलकर, उन्हें अलग-अलग तरीके का ज्ञान दिया और राक्षसों से लड़ने के लिए, उन्हें महत्वपूर्ण शस्त्र भी दिए। आखिर में कार्तिकेय ने सभी राक्षसों का वध कर दिया। इसी कारण मां दुर्गा को स्कंदमाता यानी कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है।

तो नवरात्रि की पंचमी को साधक का मन ‘विशुद्ध चक्र’में स्थित हो जाता है।इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है। साधक का मन देवी स्वरूप में पूर्णत: तल्लीन होकर आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करता है।स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। मां स्कंदमाता का वाहन मयूर भी है, इसलिए इन्हें मयूरवाहन के नाम से भी जाना जाता है। मां स्कंदमाता की सच्चे मन से पूजा करने से विशुद्धि चक्र जागृत हो जाता है।

वास्तव में देवी दुर्गा का स्कंदमाता स्वरूप लोक कल्याण की महत्ता को स्थापित करता है। देवताओं और मानवों को राक्षसों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए पार्वती ने कठिन तपस्या कर शिव को सिर्फ इसलिए पति रूप में पाया ताकि शिव की संतान अत्याचारी राक्षसों का वध कर सभी को निर्भय और सुखी जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त कर सके… एक मां के रूप में लोक कल्याण के इस भाव की बराबरी नहीं की जा सकती…‌। लोक कल्याण की साक्षात प्रतिमूर्ति स्कंदमाता दुनिया की हर मां को यही सीख देती हैं कि संतानों को राष्ट्र हित के लिए समर्पित किया जाए और इसी उद्देश्य के लिए संतानों को संस्कारित करने का भाव हर मां के मन में होना चाहिए…।

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।