Slums free Bhopal: भोपाल को झुग्गी मुक्त बनाना चंद्रयान मिशन से ज्यादा कठिन कार्य
रंजन श्रीवास्तव की खास रिपोर्ट
भोपाल: Slums free Bhopal: भोपाल को झुग्गी मुक्त बनाना चंद्रयान मिशन से ज्यादा कठिन कार्य कहा जा सकता है।
मध्य प्रदेश सरकार ने पुनः एक योजना बनाई है जिसके तहत भोपाल की झुग्गी बस्तियों का विकास कर झुग्गी बस्तियों में रहने वालों को फ्लैट दिए जायेंगे। दरअसल झुग्गी बस्तियों को हटाकर वहां फ्लैट्स बनाकर झुग्गी बस्ती वासियों को देने की योजना भोपाल शहर को अगले 25 वर्षों में एक मेट्रो सिटी के तौर पर विकसित करने का एक अंग है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सम्बंधित अधिकारियों और विभागों को इसके लिए एक विस्तृत कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए है। प्रदेश की राजधानी भोपाल को झुग्गी मुक्त बनाना सुनने में जितना अच्छा लगता है उसे क्रियान्वित करना उतना ही कठिन है। वस्तुतः झुग्गियों के विकास के पीछे झुग्गी माफिया, राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं का बहुत बड़ा हाथ है।
पिछले दो तीन दशकों में झुग्गियों का इतना विकास हो गया है कि शायद ही कोई ऐसा एरिया भोपाल में हो जहाँ झुग्गियां ना हों। सरकार के नाक के नीचे ही यानि वल्लभ भवन और सतपुड़ा भवन से सटी झुग्गी बस्तियां दशकों से मौजूद हैं। चार इमली क्षेत्र जहाँ मंत्रियों, आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के आवास हैं वहीँ झुग्गियां सीना ताने खड़ी हैं। एक बार एक तत्कालीन मुख्य सचिव ने चार इमली के झुग्गी बस्ती से एक मंदिर हटाने की कोशिश की तो उसकी वजह से वहां कानून और व्यवस्था के लिए चुनौती खड़ी हो गयी । अंततः प्रशासन को पीछे हटना पड़ा और झुग्गी बस्ती के लोगों ने उस मंदिर को पहले से ज्यादा भव्य स्वरुप दे दिया।
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन में कई झुग्गी बस्तियों को शामिल किया गया पर उन बस्तियों में अभी भी बहुत से लोग झुग्गी में रह रहे हैं सरकार और प्रशासन के नाक के नीचे। ऐसा अनुमान है कि भोपाल शहर में 1500 से 2000 एकड़ क्षेत्र में लगभग 400 झुग्गी बस्तियां हैं जिनमें नए शहर में बाणगंगा , रोशनपुरा, मेन रोड संख्या 1 , 2 और 3, भेल क्षेत्र, 12 नंबर, वल्लभ भवन (मंत्रालय) के पास, कोलार रोड, बाग़ मुगलिया, बाग़ सेवनिया इत्यादि तथा पुराने शहर में छोला रोड, काजी कैंप, जहांगीराबाद इत्यादि बहुत से क्षेत्र हैं,जहाँ झुग्गी बस्तियां हैं ।
कुछ वर्ष पूर्व किये गए एक अध्ययन के अनुसार लगभग 33% झुग्गी बस्तियां नए शहर में हैं और 35% पुराने शहर में। शेष शहर के चारों तरह विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं। तेजी से बढ़ता शहरीकरण, शिक्षा, रोजगार और अच्छे स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए गावों से शहर की तरफ बढ़ता विस्थापन और अन्य सामाजिक एवं आर्थिक कारण तो हैं ही पर झुग्गी बस्तियों के विकास में झुग्गी माफिया, राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता भी जिम्मेदार हैं। अगर कुछ झुग्गी बस्तियों के नाम नेताओं के नाम पर हैं तो इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि इन झुग्गी बस्तियों को वहां स्थापित करने और विस्तार देने में किनका हाथ होगा ।
इसमें कोई छिपा तथ्य नहीं है कि इन झुग्गी बस्तियों का विकास सरकारी जमीन पर ही होता है। एक दिलचस्प उदाहरण है तुलसी नगर स्थित सरकारी कर्मचारियों के लिए आवासों का,जहाँ सरकारी आवासों से सटे हुए झुग्गियों का निर्माण दशकों पहले हो गया और भोपाल प्रशासन उन झुग्गियों को आज तक नहीं हटा पाया। उन झुग्गियों के कारण आसपास भी झुग्गियां विकसित हो गयीं। झुग्गी बस्तियों के जगह जगह विकसित होने के पीछे जो भी कारण हों,सरकार और प्रशासन का यह दायित्व है कि यहाँ के निवासियों को आधारभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाए। पर साथ में प्रशासन यह भी कोशिश करे कि नयी झुग्गी बस्तियों का निर्माण ना हो। जहाँ तक झुग्गी माफिया का मामला है, शासन और प्रशासन भी उनके सामने विवश है क्योंकि जितनी तेजी से शासन और प्रशासन किसी विकास कार्य के चलते वहां से झुग्गियां हटाता है, उतनी तेजी से दूसरी जगह झुग्गियां आ जाती हैं। झुग्गी माफिया इन बस्तियों में झुग्गियों को किराए पर भी चलाते हैं।
ऐसा नहीं कि मध्य प्रदेश में भोपाल को पहली बार झुग्गी मुक्त बनाने के बारे में सरकार ने संकल्प लिया है। पहले भी सरकार ने कई बार प्रयास किए पर वे सारे के सारे प्रयास सिर्फ कागजी कार्रवाई साबित हुए और वोट बैंक की पॉलिटिक्स के कारण सरकार और प्रशासन ने अपने हाथ वापस खींच लिए। अगर वर्तमान सरकार और मुख्यमंत्री की कोशिशों से झुग्गी वासियों को एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर मिलता है तो इससे अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता। नौकरी पेशा तथा अन्य लोगों का झुग्गी बस्ती में रहने वालों पर बहुत से कार्यों के लिए निर्भरता है। अतः शहर के विकास में उनका भी योगदान है पर सरकार को यह भी कोशिश करनी होगी कि झुग्गी के बजाय लोगों को अच्छे आवास दिए जाएँ जहाँ ना सिर्फ झुग्गीवासी बल्कि उनके बच्चों को भी एक अच्छा वातावरण मिल सके।
देखना यह है कि क्या सरकार का यह संकल्प सिर्फ कागजों में सीमित रहता है या धरातल पर भी ठोस शक्ल में उतरता है?