तो महाभियोग से पहले ‘यशवंत’ ने ले ली ‘धनखड़’ की बलि …

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तो महाभियोग से पहले ‘यशवंत’ ने ले ली ‘धनखड़’ की बलि …

कौशल किशोर चतुर्वेदी

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा देश ही नहीं पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है। और सबसे कष्टदाई पहलू यह है कि विपक्ष द्वारा जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ दिए गए प्रस्ताव को स्वीकार करना धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाने वाली सरकार को नागवार गुजरा। धनखड़ चाहते थे कि यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की शुरुआत राज्यसभा में हो लेकिन सरकार चाहती थी कि लोकसभा में यशवंत के खिलाफ महाभियोग की शुरुआत हो। और महाभियोग का क्रेडिट भी सत्ता दल और विपक्ष दोनों के खाते में रहे। जबकि यशवंत के खिलाफ कांग्रेस के 63 सांसदों वाला जो प्रस्ताव धनखड़ ने स्वीकार किया उससे सरकार की किरकिरी और विपक्ष की वाहवाही तय थी। इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि यशवंत वर्मा ने पद से इस्तीफा देने से साफ इंकार कर दिया था और उनके खिलाफ महाभियोग आने से पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की बलि भी हो गई।

यह सभी को मालूम है कि जगदीप धनखड़ अक्खड़ स्वभाव के हैं। ऐसे में सरकार चाहती तो थोड़ा बर्दाश्त कर मामले को सही रास्ते पर ला सकती थी। पर जगदीप धनखड़ को इस्तीफा देने की नौबत तक मजबूर कर सरकार ने यह साफ कर दिया है कि अगर अक्खड़पन चलेगा तो सिर्फ सरकार का। और जगदीप धनखड़ ने भी साफ कर दिया है कि अक्खड़पन नहीं जाएगा भले ही कितना भी बड़ा पद कुर्बान क्यों न करना पड़े। इसीलिए जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने में कोई देरी नहीं की। मुख्य कारण जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस माना जा रहा है। राज्यसभा में विपक्ष के 63 सदस्यों के हस्ताक्षर वाले प्रस्ताव को उन्होंने स्वीकार किया जिसकी जानकारी सरकार को नहीं थी। धनखड़ चाहते थे कि महाभियोग का मामला पहले राज्यसभा में चले। बतौर सभापति धनखड़ ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया था जिसमें विपक्ष के 63 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। सरकार के फ्लोर लीडर्स को इसकी जानकारी नहीं थी। इतना ही नहीं धनखड़ की कोशिश थी कि महाभियोग का यह मामला पहले राज्यसभा में ही चले जो स्पष्ट तौर पर विपक्ष के खाते में जाता क्योंकि उनका प्रस्ताव ही स्वीकार किया गया था। इसके बाद तो यह तय ही था कि ऐसी घटनाएं घटेंगीं जो धनखड़ को अक्खड़पन की परीक्षा देने पर मजबूर कर देंगी। मजे की बात यह है कि सरकार की ओर से पहले ही घोषणा की जा चुकी थी कि भ्रष्टाचार के आरोपी जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी है। सरकार की योजना थी कि इसे पहले लोकसभा से पारित किया जाए फिर राज्यसभा जाए।लोकसभा में महाभियोग के नोटिस में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और भाजपा के रविशंकर प्रसाद व अनुराग ठाकुर के साथ-साथ सत्तापक्ष और विपक्ष के 145 सांसदों के हस्ताक्षर से साफ है कि सरकार इस मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में काफी हद तक सफल रही है। लेकिन राज्यसभा में 21 जुलाई 2025 को लगभग 3.30 बजे धनखड़ ने 63 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ महाभियोग का नोटिस मिलने और इसकी प्रक्रिया शुरू करने का एलान कर दिया। और इन सांसदों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों का एक भी सांसद नहीं है। और यह बात सरकार के बर्दाश्त के बाहर हो गई। आखिर उपराष्ट्रपति को बनाने का श्रेय तो सरकार को ही है। सो सहनशीलता की समय सीमा खत्म हो गई थी और पद देने वाली सरकार ने अंततः पद छीन लिया। अब नजरें देश के अगले उपराष्ट्रपति की तरफ हैं।

और बात यहीं खत्म भी नहीं होती। बात इस मुद्दे से भी जुड़ी है कि विपक्ष की ओर से राज्यसभा में ही 50 से ज्यादा विपक्षी सदस्यों ने जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ भी महाभियोग का नोटिस दिया हुआ है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर यादव को कथित ‘घृणास्पद भाषण’ के चलते पद से हटाने के संबंध में प्रस्ताव लाने का नोटिस देने वाले 55 सांसदों में से 45 सदस्यों के हस्ताक्षर का सत्यापन हो गया है। और सरकार का इस मामले में रवैया कुछ नरम सा है। पर यदि राज्यसभा में यशवंत वर्मा के मामले में विपक्ष की जीत होती तो जस्टिस शेखर यादव का मामला भी तूल पकड़ कर सरकार की साख पर बट्टा लगा सकता था।

 

खैर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के मामले में पूरी गेंद धनखड़ के पाले में ही नजर आ रही है और सरकार की किरकिरी हो रही है। सरकार चाहती तो रास्ते पूरी तरह से बंद नहीं करती। धनखड़, अक्खड़पन वाले स्वभाव के साथ एक कोमल दिल भी रखते हैं। वैसे धनखड़ के अक्खड़पन के मामले भी हमेशा चर्चा में रहेंगे। हालांकि सरकार चाहती तो दिल से दिल की बात कर मामले को पटरी पर ला सकती थी। जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई पूरी होने से पहले उपराष्ट्रपति का इस्तीफा सरकार के लिए अपशकुन की तरह नजर आ रहा है। आगे क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल तो यही बात सामने है कि महाभियोग से पहले ‘यशवंत’ ने ले ली ‘धनखड़’ की बलि … आगे महाभियोग चलेगा या यशवंत बने रहेंगे यह भी वक्त ही बताएगा।