तो क्या दिग्विजय भी मुख्यमंत्री पद की रेस में….!

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तो क्या दिग्विजय भी मुख्यमंत्री पद की रेस में….!

कांग्रेस में पहली बार कमलनाथ के नेतृत्व को चुनौती मिली है। जो कमलनाथ कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी तक से दो-दो हाथ करने का माद्दा रखते हैं, उन्हें लेकर पार्टी के प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल ने धमाका किया है। एक तरफ प्रदेश कांग्रेस ने अभियान चला रखा है कि प्रदेश में अगली सरकार कांग्रेस की होगी और मुख्यमंत्री होंगे कमलनाथ। इससे अलग हटकर जेपी अग्रवाल ने कह दिया कि अभी पार्टी नेतृत्व ने मप्र के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है।

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कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पार्टी में बराबरी के नेता हैं। किसी एक को छोटा औद दूसरे को बड़ा नहीं कह सकते। मुख्यमंत्री के बारे में फैसला बाद में होगा। इसका मतलब तो यह हुआ कि दिग्विजय सिंह भी मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल हैं। अग्रवाल के इस एक कथन से कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बता कर चलाया जा रहा अभियान टॉय-टॉय फिस्स होकर रह गया। विधानसभा के पिछले चुनाव में मुख्यमंत्री के दो चेहरे थे, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया। बाजी कमलनाथ ने मारी थी। जेपी अग्रवाल का संकेत समझे तो इस बार भी दो चेहरे हैं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह। यदि कांग्रेस को बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री का फैसला इनके बीच ही होगा। इसका मतलब यह भी है कि अरुण यादव, अजय सिंह सहित तमाम अन्य बड़े नेता दौड़ से बाहर हैं।

नेतृत्व परिवर्तन पर मीडिया के पैनल धराशायी….

अति उत्साह में मीडिया कुछ भी करने पर आमादा रहता है। सभी जानते हैं कि भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में किसी भी राज्य में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कभी चर्चा नहीं होती। बावजूद इसके मीडिया नहीं माना। एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन की खबरों को हवा ही नहीं दी, इस बार कुछ वरिष्ठ नेताओं के पैनल जारी कर बता दिया कि इनमें से ही किसी को महत्वपूर्ण जवाबदारी मिलने वाली है।

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कोई मुख्यमंत्री बदलने की अटकलें लगा रहा था और कोई प्रदेश अध्यक्ष बदलवा रहा था। कार्यकारिणी की बैठक से लौटने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई तो बदलाव की खबरों को और हवा दे दी गई। कुछ मित्रों ने तो तारीख ही घोषित कर दी। बता दिया कि 19 जनवरी को कुछ बड़ा बदलाव होने वाला है। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। सभी अटकलों के साथ मीडिया द्वारा घोषित दावेदार नेताओं के पैनल भी धराशायी हो गए। मंत्रियों की बैठक में मुख्यमंत्री ने विकास यात्राओं का रोडमैप तैयार किया। बाद में 26 जनवरी को कौन, कहां ध्वजारोहण करेगा, इसकी सूची जारी कर दी। इतना ही नहीं, आत्मविश्वास का परिचय देते हुए मुख्यमंत्री ने निगम-मंडलों में नियुक्तियों का सिलसिला भी शुरू कर दिया। आखिर पैनल में शामिल दावेदार नेताओं के ‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गए।’

अब सिंधिया की राम, खुद की हनुमान से तुलना….

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी की तुलना भगवान राम से कर खुद की तुलना उनके भाई भरत से कर दी थी। इस पर भाजपा ने बड़ा बवाल मचाया था। आरोप था कि यह भगवान राम का अपमान है। अब यही वाकया मप्र में दोहरा दिया गया। प्रदेश सरकार के एक मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को राम और खुद को हनुमान बता दिया, लेकिन कोई आवाज नहीं उठी। हर तरफ सन्नाटा और चुप्पी।

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सवाल है कि क्या सिंधिया को राम और खुद को हनुमान बताना ठीक है? क्या अब भगवान राम और हनुमान का अपमान नहीं हुआ? यदि अभी अपमान नहीं हुआ तो राहुल गांधी की राम से तुलना करने पर कैसा अपमान? हालांकि इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं, क्योंकि राजनेताओं का दोहरा चरित्र कोई नई बात नहीं। सिसोदिया ने पहली बार विवादित बयान नहीं दिया। हाल ही में राघौगढ़ निकाय चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे सिसोदिया ने लोगों से कहा था कि आप सब इधर आ जाइए, क्योंकि 2023 में चुनाव के बाद भी भाजपा की सरकार ही बनने वाली है। अभी न आए तो मामा का बुलडोजर देखा है, वह चलेगा। इस वीडियो के वायरल होने के बाद सिसोदिया बैकफुट पर थे। संभवत: इससे बचने के लिए ही उन्होंने सिंधिया को राम कह डाला।

कौन तोप, कौन फुस्सी बम, नतीजे तय करेंगे….

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की यह बात सोलह आना सच है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया यदि तोप होते तो भाजपा में जाने के बाद ग्वालियर और मुरैना में उनके महापौर प्रत्याशी चुनाव न हार जाते। इस आधार पर कहना ठीक है कि सिंधिया की जरूरत कांग्रेस को नहीं है। लेकिन कमलनाथ शायद यह भूल गए कि सिंधिया तोप थे, तभी उनके साथ लगभग दो दर्जन विधायकों ने कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन कर ली। उनके तोप होने के कारण ही कांग्रेस की सरकार गिरी और उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ गया। हालांकि ये बीती बातें हो गईं। तोपची होने की असल परीक्षा इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में होगी।

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पिछले चुनाव में कमलनाथ के साथ सिंधिया भी कांग्रेस का एक चेहरा थे। संभवत: इसी कारण ग्वालियर- चंबल अंचल में पार्टी को बड़ी सफलता मिली थी। यह सफलता सिंधिया के कारण थी या नहीं, इस चुनाव में साफ हो जाएगा। सिंधिया भाजपा में आने के बाद भी अपने अधिकांश समर्थकों को चुनाव जिता ले जाते हैं और नतीजे कांग्रेस के लिए पिछले चुनाव से उलट आते हैं तो सिंधिया का तोप होना सिद्ध हो जाएगा लेकिन यदि सिंधिया के पार्टी में न होने के बावजूद कांग्रेस इस अंचल में अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा लेती है तो माना जाएगा कि सिंधिया तोप नहीं, फुस्सी बम हैं।

बिसेन जी! इस तरह नहीं बंटते भाजपा में टिकट….

गौरीशंकर बिसेन भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक हैं। वे अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के नाते संवैधानिक पद पर भी हैं। बिसेन भाजपा की रीति-नीति से वाकिफ न हों, यह संभव नहीं। बावजूद इसके उन्होंने भाजपा के टिकट अपने परिवार के बीच ही बांट लिए। उन्होंने एलान कर दिया कि मेरी बेटी बालाघाट और मैं खुद छिंदवाड़ा में कमलनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा। कमलनाथ ने उनकी चुनौती स्वीकार भी कर ली है। पर सवाल है कि क्या भाजपा में इस तरह टिकट बंटते हैं? वह भी एक ही परिवार में बाप-बेटी दोनों को टिकट। भाजपा में नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी के रहते तो यह संभव नहीं। फिर बिसने ने ऐसी घोषणा क्यों की? क्या उन्हें बालाघाट से भी अपना टिकट कटने का खतरा है? या वे कुछ भी बोलकर चर्चा में बने रहना चाहते हैं।

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इससे पहले एक बैठक के उनके दो-तीन वीडियो वायरल हुए। एक में पार्टी के ही एक कार्यकर्ता से उनकी बहस हो रही है। बिसेन चिल्ला रहे हैं और कार्यकर्ता बोल रहा है कि मैं किसी से नहीं डरता। दूसरे वीडियो में बिसेन आटीओ को गालियां देते और फांसी पर लटका देने की धमकी देते नजर आ रहे हैं। पहले भी बिसेन के विवादित बोलों वाले वीडियो वायरल हो चुके हैं। बिसेन कई बार सांसद, विधायक और मंत्री रह चुके हैं, क्या इस तरह की हरकतें उन्हें शोभा देती हैं?